चीन हमेशा से ही कुछ न कुछ विवाद खड़े करने में लगा रहता है अभी ताज़ा घटना क्रम में उसने उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बी एस जसवाल को वीसा देने से इंकार कर दिया जिसके पीछे उसने यह तर्क दिया है कि यह वरिष्ठ सैन्य अधिकारी चूंकि चीन और पाक से लगती सीमा को देखते हैं इसलिए उन्हें वीसा देना संभव नहीं होगा. भारत ने भी चीन को उसी की भाषा में करारा जवाब देते हुए उनके अधिकारियों को पंचमढ़ी के दौरे के लिए वीसा देना से मना करके ठीक ही किया है. चीन को पता नहीं ऐसा क्यों लगने लगा है कि वह पूरी दुनिया के कान उमेठता रहेगा और कोई भी उसका प्रतिरोध नहीं करेगा ?
जब सैन्य स्तर पर व्यापक समझ विकसित करने की बात होती है तो उसमें सैन्य अधिकारीयों का ही आना जाना होगा या चीन यह चाहता है कि बात तो सैन्य मुद्दों पर हो और कोई राजनेता या राजनयिक चीन का दौरा करे ? हर बात में अपने को आगे समझने वाले इस देश का आगे पता नहीं क्या होने वाला है पर जिस तरह से वह आराम से संदेह की बदली को और घना करने की अपनी नीति का त्याग नहीं करना चाहता है उससे यह तो साबित हो ही जाता है वह अन्य देशों के साथ बराबरी का नहीं बल्कि ऊँच-नीच का रिश्ता रखना चाहता है ? पूरी दुनिया में जिस तरह से विभिन्न तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं उनको देखते हुए सभी देशों को अपने आपसी तालमेल को अच्छा बनाये रखने की बहुत आवश्यकता है पर पता नहीं क्यों चीन इस बात को समझना नहीं चाहता है ?
अब समय आ गया है कि इस तरह की चीनी बदतमीजियों केलिए उसे करारा जवाब भी दिया जाये और उसे साफ़ शब्दों में समझा दिया जाये कि अगर उसे सम्बन्ध रखने हैं तो बराबरी के आधार पर ही रखे जा सकते हैं इस तरह की किसी भी घटना से केवल अविश्वास को ही बढ़ावा मिलता है और किसी भी स्तर पर भारत चीन के साथ इस तरह के अविश्वास भरे माहौल में कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता है. अब चीन के साथ सम्बन्ध बनने या बिगड़ने के बारे में भारत को बहुत नहीं सोचना चाहिए क्योंकि जब दोनों के बीच सम्बन्ध होने हैं तो केवल भारत की ज़िम्मेदारी कैसे ठहराई जा सकती है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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