मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

हम कितने भ्रष्ट ?

निवर्तमान केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रत्युष सिन्हा ने अपने पद से हटने के बाद जो कुछ कहा है वह हर भारतीय के लिए बहुत शर्म की बात है. उन्होंने कहा कि हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट है और आधी आबादी बार्डर लाइन पर है जो कभी भी भ्रष्टाचार की तरफ मुड़ सकती है. एक संस्था के अनुसार भारत इस मामले में ८४ वें स्थान पर है जबकि सबसे ईमानदार देश के रूप में न्यूज़ीलैंड सामने आया है. क्या कारण है कि आज हमारा समाज इस कदर भ्रष्ट हुआ जा रहा है ? कुछ न कुछ तो अवश्य है जो हमें निरंतर पतन की तरफ लिए जा रहा है ?
                 एक समय था जब भ्रष्ट लोगों को ख़राब नज़रों से देखा जाता था पर आज के युग में समाज में इज्ज़त की परिभाषा बदल सी गयी है जिसके पास पैसा है वह ही अधिक इज्ज़तदार है ? भौतिकतावादी समाज ने अब शायद नैतिकता की तरफ से आँखें मूँद ही ली हैं तभी तो हर भ्रष्टाचारी को इज्ज़त मिलने लगी है और ईमानदार व्यक्ति आज भी परेशान ही है ? अब चूंकि देश में लोगों का नज़रिया बदल गया है तो लोगों की सोच भी बहुत बदल गयी है. आज कोई भी किसी से यह नहीं पूछता कि वो अचानक ही कैसे इतना अमीर हो गया है ? बस समाज में एक वर्ग तैयार हो गया है जो किसी भी प्रकार से अपने को अमीर बनाना चाहता है भले ही उसके लिए कैसा भी काम उसे क्यों न करना पड़े ? देश में सरकार के पास विकास के लिए अब बहुत बड़ी मात्रा में पैसा है जो देश के दूर दराज़ के इलाकों तक पहुँच रहा है, गाँव के प्रधान जो कल तक एक अदद छत के लिए तरसते थे आज शानदार गाड़ियों में घूमते नज़र आते हैं ? एक आम आदमी जो जनता से जुड़ा होता है उसके विधायक/ सांसद या किसी सरकारी नौकरी के मिलने के कुछ अरसे बाद ही वह अचानक धन्ना सेठ हो जाता है ? आख़िर क्या है वह जादू जिससे इनका कायाकल्प ही हो जाता है ? भ्रष्टाचार ?????
             कुछ नहीं इन सभी लोगों ने अपनी नैतिकता को कहीं छोड़ दिया है और सबसे परेशानी की बात यह है कि आज भी समाज में कोई ऐसा नियम नहीं बन पाया है जिससे इन लोगों पर अंकुश लगाया जा सके. सरकारें अपने चहेते लोगों की हर तरह के भ्रष्टाचार से रक्षा करने लगी हैं इसमें सभी दल बराबर के हिस्सेदार हैं कोई भी अपने को यह नहीं कह सकता कि वह दूसरों से अलग है ? क्या कमी हो गयी जिसके बाद हमारा इतना नैतिक पतन हो गया कि जिस देश के पुनर्निर्माण की बातें हमारे मन में होनी चाहिए उसी को हम हर तरफ से दीमक की तरह चाटने में लगे हुए हैं ? दूसरों पर हमें उँगली उठाने का कोई हक नहीं है पहले अगर हम ही सुधर जाएँ तो कम से कम एक एक करके कुछ कड़ी तो देश में मज़बूत तो हो ही जायेंगीं ? और शायद इन मज़बूत कड़ियों से ही कुछ ऐसा निकले जो बाकी लोगों के लिए प्रेरणा बन सके ?        

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