मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

कश्मीर पर वार्ताकार

केंद्र सरकार अपनी एक नीति के तहत जल्दी ही कश्मीर के लोगों से बात करने के लिए वार्ताकारों की नियुक्ति करने जा रही है. यह सही है कि कश्मीर में लोगों की अपेक्षाओं पर आज के समय में खरा उतरना बहुत बड़ी चुनौती है फिर भी सरकार सर्व दलीय प्रतिनिधिमंडल के निष्कर्षों के आधार पर कुछ करना चाह रही है तो यह एक अच्छा संकेत है. इस बारे में सबसे पहले यह बात दिमाग़ से निकाल देनी चाहिए कि इस के लिए किसी वार्ताकार का धर्म देख कर उसे नियुक्त किया जायेगा क्योंकि घाटी में जो समस्या है वह हर बात को धर्म से जोड़कर देखने से ही शुरू होती है. ऐसा नहीं है कि देश में सही बात कहने वालों की कमी है पर पता नहीं क्यों ऐसे लोगों को इस तरह की वार्ताओं से दूर रखा जाता है ? लोग यह कहते रहते हैं कि इस समूह में कुछ मुसलमान भी रखे जायेंगें ? आखिर ऐसा क्यों है कि किसी वार्ताकार की पहचान उसके धर्म से की जाये ?
                    अच्छा होगा कि ऐसे व्यक्तियों को इसमें शामिल किया जाये जो वास्तव में इसके लिए समय दे सकें केवल बड़े बड़े नाम वहां पर नहीं होने चाहिए जो व्यक्ति हर कुछ एक निश्चित समय सीमा में करना चाहते और जानते भी हों. हम कश्मीर के मामले में कोई ऐसे समिति या समूह नहीं झेल सकते जो केवल बैठक ही करते रहें और उनके पास करने के लिए कुछ भी ठोस न हो ? इस सारे मसले की सफलता केवल इस बात पर निर्भर करेगी कि कश्मीर के लोग इसको कितना समझते हैं ? मुझे नहीं पता कि मेरे विचार कहाँ तक काम कर सकते हैं पर यदि मनमोहन सरकार चाहे तो राजीव गाँधी कि मंत्रिमंडल में शामिल रहे अरुण नेहरु की सेवाएं ले सकते हैं. वे कश्मीरी हैं और नेहरु परिवार के हैं साथ ही उनके सोचने का दायरा बहुत बड़ा है. अरुण में जो सबसे बड़ी और खास बात है कि वे कभी भी सही बात कहने से नहीं चूकते हैं. पिछले २ दशकों से उन्होंने कुछ भी सक्रिय राजनीति में नहीं किया है और उनकी राजनैतिक आकांक्षाएं बहुत बड़ी नहीं हैं इसलिए वे राजनीति से निरपेक्ष होकर सोच भी सकते हैं. एक नाम और जो कुछ कर सकता है उत्तर प्रदेश से आरिफ मोहम्मद खान जो आज भी अपने समाज सेवा के काम में चुपचाप लगे हुए हैं.
            इन सारी बातों के बीच कश्मीर रियासत के वारिस डॉ० कर्ण सिंह को भी इसमें अवश्य ही शामिल किया जाना चाहिए. एक गलती जो आज तक हम सभी करते आये हैं कि घाटी का ज़िम्मा मुसलमानों को जम्मू का हिन्दुओं को और लद्दाख राम भरोसे ? अब यह स्थिति नहीं चल पायेगी एक क्षेत्र के लोगों को दूसरे क्षेत्र की ज़मीनी हकीकत देखने और समझने के लिए सभी क्षेत्रों का दौरा करने की बात आवश्यक की जानी चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति जो केवल अपने क्षेत्र के बारे में सोचता है उसे दूसरों के दुःख दर्द दिखाई ही नहीं देते हैं ? ज़रुरत है कि केवल घाटी में रहने वाले दूर दराज़ के लोगों की परेशानियों के बारे में भी समझने का प्रयास करें. इस समस्या का कोई भी हल तब तक नहीं निकाल पायेगा जब तक इसको राजनीति और धर्म के चश्मे लगाकर देखा जाता रहेगा.           

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