मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 28 नवंबर 2010

अरुंधती-गीलानी पर केस

आख़िरकार अक्टूबर में देश विरोधी भड़काऊ बयान देने के कारण अरुंधती और गीलानी के खिलाफ़ दिल्ली की एक अदालत ने केस दर्ज़ करने का आदेश दे ही दिया. सुधीर पंडित की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पुलिस को इस मामले में कानून सम्मत कार्यवाही न करने के कारण झाड़ भी पिलाई. कोर्ट ने यह भी कहा की उचित समय पर विवेचना करके दिल्ली पुलिस कोई अभियोग दर्ज नहीं कर पाई यह बात उचित नहीं है. देश के विरुद्ध बातें करने वाले लोगों को इस तरह से कैसे छोड़ा जा सकता है. कोर्ट ने ६ जनवरी को सही धाराओं में अभियोग पंजीकृत करके  फिर से सुनवाई की बात कही है.
     इस मामले में चूंकि कश्मीर का मुद्दा जुड़ा हुआ है इस लिए कोई भी बात बोलने से पहले अरुंधती को यह सोचना चाहिए था कि वे लोगों की वकालत करते करते अलगाव वादियों के हाथों में न खेलने लगें ? जो कश्मीर को अनसुलझा विवाद मानते हैं उनके क्या यह पता भी है कि कश्मीर का भारत में विलय सम्पूर्ण था और अब इस तरह की बातें करना देश द्रोह है ? जी हाँ उन्हें सब कुछ पता है पर विवादित मुद्दों पर इस तरह की संवेदन शील बातें करके अभिव्यक्ति की आज़ादी की बातें करना क्या बुद्धिजीवी होने का संकेत है ? कश्मीर के भारत में विलय के बाद पाकिस्तान के मन में खोट आया तभी तो उसने अपने सैनिकों को कबाइली बनाकर भेजा और इसे आज़ादी की लड़ाई का झूठा नाम दिया ? क्या पाक को सिंध में चल रहे आज़ादी के आन्दोलन दिखाई नहीं देते ? अगर इस तरह के मुद्दों को उखाड़ा जाता रहेगा तो कभी भी पूरी दुनिया में शांति नहीं रह पायेगी ?
     आज जब विकास के नाम पर सब कुछ किया जाता है तो केवल धर्म के नाम पर विकास कैसे किया जा सकता है ? आज के विश्व की सच्चाई के साथ चलाकर ही सब सामान्य रखा जा सकता है. यदि इस तरह से जगह जगह पर कुछ लोगों या देशों द्वारा अपने हित लाभ के लिए जो आन्दोलन चलाये जा रहे हैं उन्हें समर्थन दिया जा सकता है ? कभी नहीं क्योंकि यह एक नए विवाद को जन्म देगा. अच्छा हो कि कश्मीरी नेताओं समेत सभी लोग इस बात का ध्यान रखें कि भारत में कश्मीर का विलय अंतिम है और इसमें कुछ भी नहीं किया जा सकता है. फिर अनावश्यक रूप से इस तरह की बयान बाज़ी करके आखिर किस उद्देश्य की पूर्ति अरुंधती जैसे लोग करना चाहते हैं ? क्या अरुंधती इतनी भोली हैं कि उन्हें कश्मीर घाटी के अत्याचारों उजड़े कश्मीरी पंडितों के परिवार नहीं दिखाई देते ?  
 

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