जिस तरह से दूरसंचार घोटाले में रोज़ ही नयी बातें सामने आ रही हैं उनसे एक बात तो समझ में आती ही है कि कहीं न कहीं इस पूरे मसले में बहुत कुछ गड़बड़ अवश्य है तभी नयी पुरानी नीति को लेकर अब बहुत बड़ा झगडा सामने आ रहा है. जिस तरह से इस पूरे मसले में टाटा समूह को बदनाम करने की साजिश रची गयी और पिछली बातों को कहीं न कहीं पूरी तरह से छिपाने का प्रयास भी जारी है ? जिस तरह से रतन टाटा ने यह भी स्पष्ट किया है कि उनकी किसी भी कम्पनी को कहीं भी किसी भी स्तर पर गलत तरीके से कुछ भी नहीं दिया गया है उससे लगता है कि टाटा समूह पूरे मामले में अब सही गलत को साफ़ करने के लिए कूद पड़ा है और यह देश के लिए बहुत अच्छा है.
टाटा का यह आरोप पूरी तरह से सही है कि दूर संचार नीतियां राजग के समय ही बनायीं गयी थीं और २००८ में इन नीतियों में जो परिवर्तन किये गये हैं उनके अनुसार पुराने दूर संचार आपरेटर पहले से बहुत सारी रियायतें मुफ्त में ही पा रहे हैं जबकि उन सेवाओं के पाने के लिए नयी कम्पनियों को बहुत मोटी रकम चुकानी पड़ी है टाटा का यह भी कहना है कि इन सेवाओं में को पाने में जो लूट मची हुई थी उसको नयी नीति ने पूरी तरह से ख़त्म कर दिया है जिससे अब सभी लोगों को यह पता चल रहा है कि इस पुरानी नीति में किस तरह से कुछ लोगों को फायदा पहुँचाया जा रहा था ?
अब समय आ गया है कि इस पूरे मामले की कई स्तरों पर जांच करायी जाये क्योंकि जिस तरह से इस मसले को लेकर संसद नहीं चल रही है उससे कहीं न कहीं आम लोगों के मन में अब यह संशय आ रहा है कि कहीं सारे दल अपने को बचाने के लिए ही संसद को बंधक तो नहीं बनाये हुए हैं ? अब जब भी संसद चलेगी इस मामले पर बहुत सारे नए सवाल भी नए लोगों का पीछा करते हुए नज़र आयेंगें ? यह सही है कि राजा ने इस मामले में बहुत सारे मुद्दों को अनदेखा कर दिया पर साथ ही यह भी सही है कि पुराने समय नीति निर्धारण करते समय भी बहुत सारे नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गयीं थीं और अब उनको पूरी तरह से बेनकाब करने का समय आ गया है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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