मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

संसद का विशेष सत्र

भाजपा की मांग कि जेपीसी बने या फिर मनमोहन इस्तीफ़ा दें पर प्रणब मुखर्जी ने विपक्ष को २ जी मामले में पूरी बहस करने के लिए कहा और साथ ही यह भी कहा कि सरकार इस मामले पर पूरी बहस चाहती है और सरकार यह भी चाहती है कि दोषी व्यक्ति सामने लायें जाएँ जिससे उन्हें कड़ी सजा दी जा सके. अभी तक संसद में जेपीसी की मांग करते हुए विपक्ष ने पूरी संसद की कार्यवाही को ठप कर रखा था और इसी बीच सत्र भी समाप्त हो गया. अब प्रणब की यह पेशकश वैसे तो विपक्ष को ठुकरानी ही है क्योंकि विपक्ष नहीं चाहेगा कि संसद मने इस मामले पर खुलकर बहस हो जाये और मामला ठन्डे बस्ते में चला जाये. विपक्ष बोफोर्स वाला दांव फिर से चलने की फ़िराक़ में है जबकि सरकार उसकी इस मंशा को समझती है इसलिए वह इस पूरे मामले को जांच एजेंसियों के हाथों में सौंपना चाहती है.
        प्रणब ने यह भी कहा कि सरकार इस मसले पर संसद के अन्दर और बाहर बहस के लिए तैयार है पर विपक्ष ही संसद को बंधक बनाना चाहता है. अगर इस मामले में कुछ ठोस करना है तो वह किया ही जाना चाहिए. यह तो निश्चित है कि गठबंधन के कारण मनमोहन ने संचार मंत्री को पूरी तरह से पाने नियंत्रण से मुक्त रखा पर अब यह कहकर सरकार या वे नहीं बच सकते हैं कि वे पाक साफ़ हैं. नि:संदेह वे इस मामले में दोषी नहीं हैं पर उन्होंने जिस तरह से राजा पर नियंत्रण नहीं रखा वह अपने आप में उनकी कमजोरी को भी दर्शाता है. मंत्रियों को काम करने की छूट देना एक बात है और उनको निरंकुश होने देना बिलकुल दूसरी. अब सरकार को अपनी और प्रधान मंत्री की गरिमा बचाने के लिए बहुत कुछ करना ही पड़ेगा क्योंकि जिस तरह से इस मामले में सरकारी कोष को चोट पहुंचाई गयी है वह अक्षम्य है.
      यह तय करना विपक्ष का काम है कि वह सरकार की इस पेशकश को किस तरह से लेती है वैसे देश हित में यही उचित रहेगा कि संसद में सरकार पर उसकी कमियों के लिए पूरी ताकत से प्रहार किये जाएँ और साथ ही सरकार को भी इस तरह के मामले में अपनी गलती स्वीकारते हुए निष्पक्ष जांच के लिए तैयार हो जाना चाहिए. अभी तक देश में संयुक्त संसदीय समितियों ने किसी भी काम के लिए बहुत अधिक समय लेने के बाद भी कोई बहुत ठोस निष्कर्ष नहीं दिया है इसलिए लोकलेखा समिति से ही इसकी जांच करना कर दोषियों को शीघ्रता शीघ्र दण्डित किया जाना चाहिए क्योंकि अगर यह नूरा कुश्ती चलती रही तो देश के संसदीय तंत्र से आम लोगों का विश्वास उठने में देर नहीं लगेगी. संस्थाओं की मर्यादा बनी रहे और देश की तरक्की होती रहे बस आज समय की यही मांग है.      
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