कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने जिस तरह से एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे सम्बन्धी बयान पर सुबूत के तौर पर अपने फ़ोन के काल्स की डिटेल्स प्रस्तुत की हैं उससे लगता है कि उनकी वास्तव में करकरे से कुछ बात हुई थी. अब यह कहा जाना कि क्या बात हुई थी केवल दिग्विजय पर ही निर्भर करता है. दिग्विजय ने यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि करकरे ने अपनी मौत से कुछ पहले ही उनको फ़ोन पर यह बताया था कि उनकी जान को दक्षिणपंथी हिन्दू संगठनों से खतरा है. जिस तरह से अभी तक यह सारी बातें सामने आ रही थीं उससे कई लोगों ने यह भी कहा था कि दिग्विजय करकरे से हुई बात का झूठा दावा कर रहे हैं ? उनकी किसी से भी कोई बात नहीं हुई थी पर जिस तरह से उन्होंने भारत संचार निगम द्वारा दिए गए अपने बिल को दिखाया है उससे यह साबित हो जाता है कि उनकी बात तो हुई थी.
जिस तरह से दिग्विजय ने इस बात को उठाया उसका कोई औचित्य नहीं था क्योंकि आज करकरे अपनी बात कहने के लिए मौजूद नहीं हैं और उनके बारे में कोई भी ऐसी बात करके उनको किसी भी विवाद में घसीटना बिलकुल भी उचित नहीं कहा जा सकता है. हो सकता है कि करकरे ने ऐसी कोई बात उन्हें बताई भी हो पर अब उन बातों को करने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है. महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री ने जिस तरह से एकदम से दिग्विजय की बात को झूट साबित करने की कोशिश की थी उससे अब उनकी स्थिति भी अजीब सी हो गयी है. एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास गृह जैसा मंत्रालय हो वह बिना किसी बात की पुष्टि किये आख़िर कैसे बोल सकता है ? शायद इस तरह के मंत्री और अन्य लोगों के होने के कारण ही आज देश में सुरक्षा का माहौल बन ही नहीं पाता है ? इन सब फालतू की बातों में सर खपाने से अच्छा हो कि ये नेता देश के सामने आ रही गंभीर चुनौतियों का सामना करें और देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने का काम करें.
इस मामले को यहीं पर ख़त्म किया जान चाहिए और अगर पुणे या अन्य किसी मामले में दिग्विजय के बयान की आवश्यकता हो तभी उन्हें भी अपना मुंह खोलना चाहिए क्योंकि जिन हेमंत करकरे ने अपनी जान लगा दी है इस देश के लिए उनके लिए अगर नेता संवेदना नहीं रख सकते तो कोई बात नहीं पर उनके बारे में कोई ऐसे राज खोलने की आवश्यकता भी नहीं है जिससे इन शहीद हुए लोगों की छवि पर आंच आये ? राजनीति अपनी जगह पर ठीक है पर जब वह इस तरह से संवेदनाएं खोने लगे तो ऐसी राजनीति की कोई भी आवश्यकता इस देश को नहीं है. देश है तो सब है हाँ अगर दिग्विजय के पास कुछ पक्के सुबूत हैं जो यह साबित कर सकते हों कि वास्तव में करकरे ने अपनी जान को कुछ दक्षिणपंथियों से खतरा बताया हो तो उन्हें वे सब तुरंत ही जांच एजेंसियों को देने चाहिए वरना इस तरह की सनसनी फ़ैलाने वाली बातों को अब बंद कर देना चाहिए. देश हित को अब सर्वोच्च माना जाना चाहिए और इस तरह से कोई भी आरोप नहीं लगाने चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आप किसी के आफिस में फोन करें तो अव्वल यह नहीं सिद्ध होता कि आपकी उससे बात हुई या नहीं. किसी और से भी हो सकती है. और होल्ड पर भी फोन रखा जा सकता है. दूसरा यह कि क्या बात हुई इसे बताने करकरे तो वापस आ नहीं सकते. इसलिये राजनीतिक रोटियां सेंकने में क्या हर्ज है..
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