दुनिया भर में चीन ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ पर वे अपने राष्ट्रीय मुद्दों से कभी भी हटने का नाम भी नहीं लेते हैं. वर्तमान में चीन के राष्ट्रपति अमेरिका की यात्रा पर हैं और उन्होंने जिस तरह से उन्होंने अमेरिका को वहीं पर यह कह दिया है कि उसे चीन और अपने रिश्तों का सम्मान करना चाहिए वह अपने आप में चीन की दृढ़ता को ही दिखता है. चीन को इस बात की पूरी आशंका है कि अमेरिका तिब्बत, ताईवान और लियु श्याबाओ के मुद्दे ज़रूर ही उठाएगा. इस बात को सोचकर ही उसने खुद ही पहल कर दी कि अगर ये मुद्दे उठाये जाते हैं तो चीन वार्ता में इस मुद्दे को लेकर आक्रामक हो सकता है ? चीन अपने निजी हितों के सामने कभी भी किसी की परवाह नहीं किया करता है और शुरू में आक्रामक होकर वह एक निर्णायक बढ़त बना लिया करता है.
भारत को इस मामले में चीन से बही बहुत कुछ सीखना चाहिए हमारे देश की विदेश नीति बराबरी अपर चलायी जाती है फिर भी कई बार हम औपचारिकताओं में इतना उलझ जाते हैं कि हमारा ध्यान वास्तविक बातों और समस्याओं से हट जाता है जिससे सामने वाले पक्ष को पूरे मन की करने की छूट मिल जाया करती है ? देश से जुड़े मुद्दों पर जब भी बात कीजये तो उस समय समग्र बातचीत पर ध्यान होना चाहिए पर आम तौर पर हम लोगों की आव-भगत में ही फँस कर रह जाते हैं ? हमारे संस्कार भी हमें कभी आक्रामक नहीं होने देते हैं अभी तक दुनिया में अगर भारत का इतिहास उठाकर देखा जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत ने हमेशा ही दूसरों का सम्मान करने की नीति आदि काल से ही अपनाई है वहीं कुछ देश केवल आक्रामकता अपर ही विश्वास किया करते हैं ?
हमें हमेशा ही आक्रामक होने की आवश्यकता नहीं होती है पर जब समय आता है तो हमारे चुप रहने से बात बिगड़ती जाती है ? देश चलने के लिए कभी गर्म कभी नर्म वाली नीति अपनाई जानी चाहिए पर शुरू से ही सह अस्तित्व के सिद्धांत पर चलने के कारण हमारी हर नीति दूसरे का ध्यान रख कर ही बनाई जाती है जिसका कई बार देश को भुगतान भी करना होता है. अब पाक के साथ बात शुरू करने के लिए जिस दृढ़ता से २६/११ के अपराधियों पर कार्यवाही करने के लिए भारत ने अपनी दृढ़ता दिखाई है उसकी बहुत आवश्यकता है और बिना इसके कुछ भी नहीं होने वाला है ? पाक जैसे दुष्टों को कभी भी प्यार से कुछ नहीं समझ आने वाला है वे केवल लड़ाई की बात समझते हैं और वार्ता करना चाहते हैं
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारत को इस मामले में चीन से बही बहुत कुछ सीखना चाहिए हमारे देश की विदेश नीति बराबरी अपर चलायी जाती है फिर भी कई बार हम औपचारिकताओं में इतना उलझ जाते हैं कि हमारा ध्यान वास्तविक बातों और समस्याओं से हट जाता है जिससे सामने वाले पक्ष को पूरे मन की करने की छूट मिल जाया करती है ? देश से जुड़े मुद्दों पर जब भी बात कीजये तो उस समय समग्र बातचीत पर ध्यान होना चाहिए पर आम तौर पर हम लोगों की आव-भगत में ही फँस कर रह जाते हैं ? हमारे संस्कार भी हमें कभी आक्रामक नहीं होने देते हैं अभी तक दुनिया में अगर भारत का इतिहास उठाकर देखा जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत ने हमेशा ही दूसरों का सम्मान करने की नीति आदि काल से ही अपनाई है वहीं कुछ देश केवल आक्रामकता अपर ही विश्वास किया करते हैं ?
हमें हमेशा ही आक्रामक होने की आवश्यकता नहीं होती है पर जब समय आता है तो हमारे चुप रहने से बात बिगड़ती जाती है ? देश चलने के लिए कभी गर्म कभी नर्म वाली नीति अपनाई जानी चाहिए पर शुरू से ही सह अस्तित्व के सिद्धांत पर चलने के कारण हमारी हर नीति दूसरे का ध्यान रख कर ही बनाई जाती है जिसका कई बार देश को भुगतान भी करना होता है. अब पाक के साथ बात शुरू करने के लिए जिस दृढ़ता से २६/११ के अपराधियों पर कार्यवाही करने के लिए भारत ने अपनी दृढ़ता दिखाई है उसकी बहुत आवश्यकता है और बिना इसके कुछ भी नहीं होने वाला है ? पाक जैसे दुष्टों को कभी भी प्यार से कुछ नहीं समझ आने वाला है वे केवल लड़ाई की बात समझते हैं और वार्ता करना चाहते हैं
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
चीन से सीखना चाहिए कि अपनी नीति पर दृढ़ रहना चाहिए, पूरी भारतीय विनम्रता के साथ और समझौता विहीन हो कर।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही लिखा है.
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