सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने भड़कते हुए कहा कि लगता है कि आप लोगों को देश की संस्थाओं से अधिक विदेशी संस्थाओं पर भरोसा है. गुजरात दंगों से जुड़े मुद्दों पर विचार करते समय कोर्ट ने यह तीखी टिप्पणी की. कोर्ट ने तीस्ता की अध्यक्षता वाले गैर सरकारी संगठन सीजेपी द्वारा गवाहों की सुरक्षा का मुद्दा जेनेवा स्थित मानवाधिकार उच्चाधिकार आयोग से कहने के बाद यह कड़ी बात कही. कोर्ट ने यह भी कहा कि हम अपने अंदरूनी मामलों को अच्छे से निपटने में सक्षम हैं और ऐसे किसी भी मामले में हमें बाहरी दखल अच्छा नहीं लगता है और अगर भविष्य में इस तरह की कोई बात सामने आई तो कोर्ट उनके संगठन का पक्ष सुने बगैर ही आदेश पारित कर देगी.
लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन को मजबूती और पहचान दिलाने के लिए तीस्ता ने यह घटिया हरकत की है जब देश में ही इस मामले की पूरी जांच चल रही है तो फिर क्या कारण है कि उन्हें इस तरह से जेनेवा को सूचित करने की आवश्यकता पड़ गयी ? अब क्या किसी अन्य देश के कहने पर हम अपने गवाहों की रक्षा करना शुरू करेंगें ? तीस्ता ने जिस तरह से अभी तक गुजरात दंगों में काम किया है वह अपनी जगह है पर कोई काम करने का यह अर्थ तो नहीं हो जाता है कि आप कुछ भी करे के लिए स्वतंत्र हो ? देश में मानवाधिकार की बातें करना अच्छा है पर इसी देश में रहकर देश के खिलाफ इस तरह की बातें करा कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? तीस्ता अगर मानवाधिकारों की इतनी बड़ी पैरोकार हैं तो वे क्यों नहीं उन कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ बोलती हैं जिनको कश्मीरी चरमपंथियों ने वहां से भगा दिया है ?
यह ठीक ही रहा कि कोर्ट ने तीस्ता कि याचिका पर सुनवाई करने के मामले से इसको जोड़ दिया क्योंकि अब उन्हें भी पता चल जायेगा कि जब मामला देश की सर्वोच्च अदालत में है तो वे किस मुंह से बाहरी शक्तियों को सीधे इस तरह से यहाँ के मामलों में हस्तक्षेप करने को कह सकती हैं ? इसमें उनका दोष नहीं है किसी को भी इस तरह के मामलों में प्रसिद्धि मिल जाने के बाद वह अपने को कानून और देश समाज से ऊपर मानने लगता है ठीक वैसा ही तीस्ता के साथ भी हुआ है ? कम समय में दुनिया ने उनका नाम जाना पर भारत की पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करने की उनकी मंशा पर पानी कोर्ट ने ही फेर दिया है. अब उन्हें भी देश के संवैधानिक गरिमा के स्थानों की इज्ज़त करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करके वे केवल अपने मान को ही बढ़ाने का काम करेंगीं ? अगर वे भारत विरोधी लोगों के सुर में बोलती हैं तो उससे उनको कुछ विदेशी संगठनों की हिमायत तो मिल सकती है पर वे कभी भी देश में सम्मान प्राप्त नहीं कर पाएंगीं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन को मजबूती और पहचान दिलाने के लिए तीस्ता ने यह घटिया हरकत की है जब देश में ही इस मामले की पूरी जांच चल रही है तो फिर क्या कारण है कि उन्हें इस तरह से जेनेवा को सूचित करने की आवश्यकता पड़ गयी ? अब क्या किसी अन्य देश के कहने पर हम अपने गवाहों की रक्षा करना शुरू करेंगें ? तीस्ता ने जिस तरह से अभी तक गुजरात दंगों में काम किया है वह अपनी जगह है पर कोई काम करने का यह अर्थ तो नहीं हो जाता है कि आप कुछ भी करे के लिए स्वतंत्र हो ? देश में मानवाधिकार की बातें करना अच्छा है पर इसी देश में रहकर देश के खिलाफ इस तरह की बातें करा कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? तीस्ता अगर मानवाधिकारों की इतनी बड़ी पैरोकार हैं तो वे क्यों नहीं उन कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ बोलती हैं जिनको कश्मीरी चरमपंथियों ने वहां से भगा दिया है ?
यह ठीक ही रहा कि कोर्ट ने तीस्ता कि याचिका पर सुनवाई करने के मामले से इसको जोड़ दिया क्योंकि अब उन्हें भी पता चल जायेगा कि जब मामला देश की सर्वोच्च अदालत में है तो वे किस मुंह से बाहरी शक्तियों को सीधे इस तरह से यहाँ के मामलों में हस्तक्षेप करने को कह सकती हैं ? इसमें उनका दोष नहीं है किसी को भी इस तरह के मामलों में प्रसिद्धि मिल जाने के बाद वह अपने को कानून और देश समाज से ऊपर मानने लगता है ठीक वैसा ही तीस्ता के साथ भी हुआ है ? कम समय में दुनिया ने उनका नाम जाना पर भारत की पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करने की उनकी मंशा पर पानी कोर्ट ने ही फेर दिया है. अब उन्हें भी देश के संवैधानिक गरिमा के स्थानों की इज्ज़त करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करके वे केवल अपने मान को ही बढ़ाने का काम करेंगीं ? अगर वे भारत विरोधी लोगों के सुर में बोलती हैं तो उससे उनको कुछ विदेशी संगठनों की हिमायत तो मिल सकती है पर वे कभी भी देश में सम्मान प्राप्त नहीं कर पाएंगीं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
तीस्ता अगर मानवाधिकारों की इतनी बड़ी पैरोकार हैं तो वे क्यों नहीं उन कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ बोलती हैं जिनको कश्मीरी चरमपंथियों ने वहां से भगा दिया है ?
जवाब देंहटाएंलाख टके की बात कही है..
Manvadhikariyon ko Human Rights ke naam par Rajneet chamkane se Rokne ke liye kanoon Banaye jane ki aur use Sakhti se lagu karne ki awashyakta hai
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