ट्युनिसिया से शुरू हुए आज़ादी समर्थक आन्दोलन ने आख़िर धीरे धीरे ही सही पर पूरे अरब जगत पर अपनी छाप छोडनी शुरू कर दी है. अभी तक कुछ लोगों को यही लग रहा था कि कहीं न कहीं से इस विद्रोह को दबा दिया जायेगा और आने वाले लम्बे समय तक अरब जगत में सुल्तान, शाह और तानाशाहों की हुकूमत चलती रहेगी ? आख़िर कहीं भी किसी भी स्तर पर यह कैसे कहा जा सकता है कि कुछ हद के बाद इतने समय से दबी कुचली जनता चुप हो जाएगी ? असल राह तो ट्युनिसिया के बाद मिस्र ने दिखा दी है जिसके बाद वहां पर बदलाव की बयार बहने की पूरी सम्भावना बनने लगी है. यह भी सही है कि केवल इस्लाम के नाम पर बहुत जगह पर शासकों ने बहुत सी ज्यादतियां की हैं और कुछ जगहों पर समय के साथ बदलने की कोशिशें भी की गयी हैं लेकिन ये कोशिशें जनता के हित में कम और सहायता देने वाले देशों के लिए अधिक लगती हैं.
अब इन सभी हुक्मरानों को यह समझने का समय आ गया है कि अगर वे समय से सुधार लागू नहीं राज़ी होते हैं तो उनके सिंघासन भी हिलने में बहुत देर नहीं लगने वाली है, फिर भी जिन पश्चिमी देशों के बल बूते पर ये सभी अपने को सँभालने का भ्रम पाले हुए हैं उन्होंने किस तरह से रंग बदलना शुरू कर दिया है यह भी दुनिया देख ही रही है. अब यह बिलकुल सही समय है कि जनता के साथ खड़े होकर इन लोगों को लोकतंत्र का साथ देना चाहिए. पर जिस तरह से इन लोगों को सत्ता का सुख भोगने की आदत बनी हुई है उसे देखते हुए कहीं से भी यह नहीं लगता है कि ये किसी भी तरह के सुधारों को लागू करेंगें और यह सोचते सोचते इनको बहुत देर हो जाएगी और जिस देश के वे बाशिंदे हैं उन्हें उसे ही छोड़कर भागना पड़ेगा ? फिर भी मुंह में लगा हुआ सत्ता का स्वाद उन्हें आसानी से यह सब छोड़ने नहीं देगा ?
जनता की आकांक्षाओं पर फालतू की रोक नहीं लगायी जा सकती है और अब ये सारे आन्दोलन बिना किसी बड़ी शक्ति के केवल जनता द्वारा ही चलाये जा रहे हैं जिससे इन शासकों के पास किसी को पकड़ने के लिए बहुत कम अवसर बचते हैं. बेशक यह इन देशों के अंदरूनी मामले हैं पर निर्दोष जनता पर चलती हुई गोलियां देखकर कहीं से भी लोकतंत्र के समर्थकों और मानवाधिकारों के लिए लड़ने वालों को खुलकर बोलना चाहिए. केवल शासकों के साथ सम्बन्ध रखने से काम नहीं चलने वाला है क्योंकि वे आज हैं और हो सकता है कि कल न हों पर ये देश किसी न किसी रूप में मौजूद ही रहेंगें. कहीं से भी जनता पर ज़ुल्म करने वाले लोगो का समर्थन नहीं किया जा सकता है और यह तो तय है कि इनका समर्थन करने वालों को एक न एक दिन मुंह की खानी ही पड़ेगी. अच्छा हो कि जो देश इन देशों को सहायता करते रहते हैं वे इस समय जनता के साथ खड़े हों और इन शासकों को कहीं न कहीं से यह संदेश भी दे दें कि अब इस तरह से नहीं चलने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अब इन सभी हुक्मरानों को यह समझने का समय आ गया है कि अगर वे समय से सुधार लागू नहीं राज़ी होते हैं तो उनके सिंघासन भी हिलने में बहुत देर नहीं लगने वाली है, फिर भी जिन पश्चिमी देशों के बल बूते पर ये सभी अपने को सँभालने का भ्रम पाले हुए हैं उन्होंने किस तरह से रंग बदलना शुरू कर दिया है यह भी दुनिया देख ही रही है. अब यह बिलकुल सही समय है कि जनता के साथ खड़े होकर इन लोगों को लोकतंत्र का साथ देना चाहिए. पर जिस तरह से इन लोगों को सत्ता का सुख भोगने की आदत बनी हुई है उसे देखते हुए कहीं से भी यह नहीं लगता है कि ये किसी भी तरह के सुधारों को लागू करेंगें और यह सोचते सोचते इनको बहुत देर हो जाएगी और जिस देश के वे बाशिंदे हैं उन्हें उसे ही छोड़कर भागना पड़ेगा ? फिर भी मुंह में लगा हुआ सत्ता का स्वाद उन्हें आसानी से यह सब छोड़ने नहीं देगा ?
जनता की आकांक्षाओं पर फालतू की रोक नहीं लगायी जा सकती है और अब ये सारे आन्दोलन बिना किसी बड़ी शक्ति के केवल जनता द्वारा ही चलाये जा रहे हैं जिससे इन शासकों के पास किसी को पकड़ने के लिए बहुत कम अवसर बचते हैं. बेशक यह इन देशों के अंदरूनी मामले हैं पर निर्दोष जनता पर चलती हुई गोलियां देखकर कहीं से भी लोकतंत्र के समर्थकों और मानवाधिकारों के लिए लड़ने वालों को खुलकर बोलना चाहिए. केवल शासकों के साथ सम्बन्ध रखने से काम नहीं चलने वाला है क्योंकि वे आज हैं और हो सकता है कि कल न हों पर ये देश किसी न किसी रूप में मौजूद ही रहेंगें. कहीं से भी जनता पर ज़ुल्म करने वाले लोगो का समर्थन नहीं किया जा सकता है और यह तो तय है कि इनका समर्थन करने वालों को एक न एक दिन मुंह की खानी ही पड़ेगी. अच्छा हो कि जो देश इन देशों को सहायता करते रहते हैं वे इस समय जनता के साथ खड़े हों और इन शासकों को कहीं न कहीं से यह संदेश भी दे दें कि अब इस तरह से नहीं चलने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस्लाम की आड़ लेकर निरंकुश शासन किया है..
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