मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 17 मार्च 2011

उ० प्र०-एक और दुराचारी विधायक

                               लगता है कि उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी विधायकों ने कानून को ठेंगा दिखने के लिए कमर कस ही ली है प्रदेश में महिला मुख्यमंत्री के होने के बाद भी उनकी पार्टी के माननीय जिस तरह से महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचार में लगातार फंसते चले जा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अब बसपा में भी माया की हनक कम हो गयी है. एक समय था जब माया के नाम से पार्टी और सरकारी कर्मचारियों को कंपकंपी छूट जाया करती थी और अब यह स्थिति है कि हर कोई अपनी मनमानी करने में लगा हुआ है ? यह सही है कि मुख्यमंत्री हर विधायक के तौर तरीकों पर नज़र नहीं रख सकती हैं पर अपनी पार्टी के लोगों के माध्यम से विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तो बनवा ही सकती हैं ? आज प्रदेश में बसपा ही ऐसी पार्टी है जिसके पास समर्पित कार्यकर्ताओं की लम्बी चौड़ी फौज है. अगर इतने सशक्त लोगों के होने के बाद भी पार्टी अपने चंद विधायकों कि इस तरह की गतिविधियों पर रोक नज़र नहीं रख पा रही है तो उसका भविष्य समझा ही जा सकता है.
         यह सही है कि किसी के मन में क्या चल रहा है जान पाना बहुत कठिन होता है पर अपने तंत्र को जागरूक करके सही गलत का निर्णय तो किया ही जा सकता है ? हो सकता है कि इसमें बहुत सारे मामले राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के कारण भी हों पर इससे आरोपों की गंभीरता तो नहीं ख़त्म होती है ? सबसे बड़ी बात यह है कि हर मामले में इन विधायकों ने अपने पद का दुरूपयोग करके हर बार पुलिस को प्रभाव में लेने की कोशिश की जिससे लोगों का पुलिस पर सरकार से भरोसा भी उठा. आखिर सरकारें किस लिए होती हैं अगर हर बात की ज़िम्मेदारी हाई कोर्ट ही निभाएगा तो सरकार की क्या ज़रुरत है ? इस तरह के मामलों में जब संवेदन शीलता का परिचय दिया जाना चाहिए तो उस समय पुलिस बर्बर हो कर केवल पद और प्रभाव वालों की ही सुनती है क्या हर व्यक्ति में इतना दम है कि वह इस तरह के मामलों को कोर्ट तक घसीट सके ? शायद नहीं.... क्योंकि लड़की के मामले में पुलिस का रवैया और सामाजिक बदनामी का भय बहुत बड़े हिस्से को विरोध करने से रोकता रहता है.
         अच्छा हो कि इस तरह के मामलों में संवेदना का परिचय दिया जाये जिससे पीड़ित के साथ न्याय हो सके और कहीं से भी समाज में यह सन्देश नहीं जाने पाए कि पुलिस केवल प्रभावशाली लोगों के लिए ही है ? पर सत्ता की धमक किसे अच्छी नहीं लगती और इसे दिखाने के चक्कर में ही बहुत सारे गलत काम होते रहते हैं ? सरकार की छवि की चिंता तो पार्टी मुखिया और पार्टी को होनी चाहिए पर यहाँ तो जब कोर्ट कहती है तभी महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचार करने वालों के ख़िलाफ़ कुछ किया जाता है ? सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि यह सब तब हो रहा है जब प्रदेश में व्यापक परिवर्तन का दावा करने वाली माया की सरकार चल रही है. अब भी समय है कि सरकार जाग जाये और पूरे प्रदेश में किसी भी माननीय के ख़िलाफ़ लगे हर आरोप की ठीक से जांच कराये क्योंकि नेताओं की छवि जनता में वैसे ही नाकारा लोगों के रूप में है  और इस तरह से चुप रहने से इसका और पतन होने वाला है.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. कानून के रखवाले ही इन्हें युक्तियां बताते हैं और कानून के पंजे से दूर कर देते हैं.

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  2. ये माया की सरकार तो दिखावी है असल सरकार तो उस 'माया' की है और इसीलिये ये सभी कुछ जायज है ।

    ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?

    अरे... रे... आकस्मिक आक्रमण होली का !

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