आख़िर कार रेलवे को जाट आन्दोलनकारियों से पीछा छुड़ाने में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ही कुछ राहत दी. पिछले दो हफ़्तों से काफूरपुर स्टेशन पर कब्ज़ा जमाये जाटों ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा की कोर्ट इस तरह के किसी आदेश के साथ सामने आ सकता है ? अभी तक इस मसले को जितना भी समय मिला वह केवल वोट पाने की घटिया राजनीति के सिवाय कुछ भी नहीं है आन्दोलन करना लोकतंत्र में सभी को मिला अधिकार है पर जब ये अधिकार दूसरों को परेशान करने लगे तो इसको तुरंत ही ख़त्म कर देना चाहिए. अभी तक जो कुछ भी चल रहा था उससे जाटों को क्या लाभ हुआ ये तो कोई नहीं जनता पर महीनों से परदेश में रहने वालों के लिए यह बहुत ही बुरा सपना साबित हुआ क्योंकि इस समय उन लोगों ने अपने घरों को लौटकर त्यौहार मनाने का जो सपना देखा था वो ट्रेनें रद्द होने से टूट चुका है और जिस तरह से इतना विलम्ब से कोर्ट ने कहा है तो उससे भी लोगों के लिए ट्रेन पकड़ कर १ दिन में घर तक पहुँचना असंभव ही है.
जिस तरह से कोर्ट ने सख्त आदेश दिया है उसे वास्तव में कानून बना दिया जाना चाहिए की किसी भी स्थिति में ट्रेन को रोकने वाले दल, समूह या अन्य किसी पर अविलम्ब रासुका भी लगाया जाना चाहिए ? किसी भी आन्दोलन को यह हक किसने दिया है कि वह अपने हिसाब से कुछ भी करने लगे ? कोर्ट ने कमज़ोर राजनैतिक इच्छा शक्ति को समझते हुए इस बात को भी कहा है की अगर आवश्यकता हो तो इन अराजक आन्दोलनकारियों को हटाने के लिए सेना का भी प्रयोग किया जाये ? आजाद भारत के इतिहास में कोर्ट ने शायद पहली बार किसी राज्य कई कानून व्यवस्था पर इतना बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाया है ? केंद्र/राज्य सरकारों को जातो के वोट चाहिए तो वे किसी अन्य कई बात और असुविधा के बारे में क्यों सोचें ? धन्य है हमारी न्यायपालिका जिसने इस पूरे मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए इतना बाद आदेश पारित कर दिया है. फिर भी कोर्ट ने अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए आन्दोलन कारियों को भी आदेश दिया है की वे तुरंत रेल मार्ग खाली कर दें.
आज आवश्यकता ऐसे कानून कई है जो रेल को परिचालन सम्बन्धी पूरी आज़ादी दे सके हमारे देश के आलावा इस तरह का कोई भी प्रदर्शन पूरी दुनिया में कहीं नहीं दिखाई दे सकता है क्योंकि वोट चाहे जैसे मिले घटिया नेता उन्हें लपकने के लिए हमेशा ही तैयार रहा करते हैं. रेल अधिनियम में इस बात का संशोधन कर दिया जाना चाहिए कि जिस क्षेत्र में रेल रोकी जाएगी और उससे उसे जितना भी नुकसान होगा वह उसकी क्षेत्र कई जनता से बढे हुए टिकट के रूप में वसूला जायेगा और जब तक पूरे नुकसान की भरपाई नहीं होगी तब तक ये किराया वसूला जाता रहेगा. बिना कठोर दंड दिए कुछ लोग कभी भी नहीं मानते हैं पर किसी जाति, दल या समूह कई राजनीति में आख़िर रेलवे अपने राजस्व को क्यों खोये ? अच्छा ही हुआ कि इस तरह का आदेश एक बार आ गया है क्योंकि इसके दम पर आगे किसी भी स्थान पर ऐसी घटना होने पर इसको नज़ीर बनाकर तुरंत ही मार्ग को खाली कराया जा सकेगा और जनता की असुविधा और रेल के घाटे को कम किया जा सकेगा.
चलिये किसी ने तो देखा.
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