तिब्बत के सर्वोच्च धार्मिक और अध्यात्मिक नेता दलाई लामा के सन्यास लेने की घोषणा के बाद से ही यह प्रश्न सबके सामने आ गया है कि आने वाले समय में तिब्बत का भविष्य क्या होगा ? अभी तक निर्वासित जीवन जी रहे दलाई लामा तिब्बतियों की हर आकांक्षा पर खरे उतरे हैं और उन्होंने पूरे विश्व में तिब्बत के मसले को ५ दशक बाद भी जीवित रखा है. आज तिब्बती निर्वासित सरकार और संसद के लिए होने वाले चुनावों के लिए वोट डालने वाले हैं इसमें पूरी दुनिया में रहने वाले तिब्बती अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगें. अभी तक तिब्बत के सामने एक ही मुद्दा था कि किस तरह से चीन की ज्यादतियों के बारे में दुनिया को बताया जाये पर दलाई लामा ने चीन के साथ सार्थक बातचीत की पहल भी की जिससे अब युवा तिब्बती के मन में कहीं न कहीं तिब्बत के भविष्य की चिंता तो है पर वह आर्थिक रूप से महाशक्ति बन चुके चीन से कोई अनावश्यक विवाद भी नहीं चाहता है.
जब सारी बात और झगड़ा चीन से ही है तो किस तरह से चीन के प्रति सहानुभूति दिखाई जा सकती है ? अभी तक किसी को भी यह नहीं पता है कि आने वाले समय में तिब्बती आन्दोलन किस करवट बैठने जा रहा है पर एक बात तो तय ही है कि तिब्बत की निर्वासित युवा पीढ़ी अब अलग ढंग से सोचना शुरू कर चुकी है. अब सारा कुछ चीन पर निर्भर करता है कि वह इस पीढ़ी की शक्ति का उपयोग करना चाहता है या उसे केवल अपनी ही चिंता है ? अब समय है कि चीन को तिब्बत को कुछ फैसले लेने की आज़ादी देते हुए सारा विवाद ख़त्म करने की तरफ सोचना चाहिए क्योंकि जब तक चीन और तिब्बतियों के बीच का विवाद नहीं निपटता है तब तक किसी भी सार्थक पहल की आशा नहीं की जा सकती है. चीन और भारत में हुए युद्ध भी केवल तिब्बत के कारण ही हुए थे वैसे चीन ने भारत का भरोसा तोडा था और आज भी वह भारत का पूरा भरोसा नहीं जीत पाया है पर आज के समय में उसे अपना कच्चा माल बेचने के लिए भारत जैसे विशाल और पड़ोसी बाज़ार की बहुत ज़रुरत है जिसके कारण वह अब भारत के खिलाफ उतना तीखा नहीं बोलना चाहता है.
भारत को चीन शंका की दृष्टि से देखता है और तिब्बती सबसे भरोसे वाला देश मानते हैं, बस यहीं से यह समस्या और उलझ जाती है क्योंकि जब तक दोनों पक्षों के बीच में कोई तीसरा नहीं आएगा इस समस्या का कोई हल नहीं निकलने वाला है. भारत के बिना तिब्बतियों को हर बात अधूरी लगती है तो चीन को भारत का होना ही हस्तक्षेप लगता है ? अब समय है कि इस मसले पर चीन की तरफ से ही कोई पहल हो और चीन और भारत इसमें अपनी भूमिका का सही निर्वहन करें. दूसरी समस्याओं की तरह यह भी निपट जाती पर भारत और चीन इस मामले में किसी अन्य देश को भी नहीं देखना चाहते हैं और इस क्षेत्र में किसी अन्य देश की उपस्थिति दोनों को कभी भी रास नहीं आने वाली है. फिलहाल इस समस्या के समाधान की तरफ नयी निर्वाचित निर्वासित सरकार के आने के बाद ही बढ़ा जा सकेगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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