मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार और अन्ना

आज से प्रसिद्द सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे द्वारा दिल्ली में जंतर मंतर पर किये जा रहे आमरण अनशन को लेकर देश में चिंता है क्योंकि आज़ादी के बाद पहली बार भ्रष्टाचार को लेकर इतने बड़े स्तर पर कोई प्रयास किया जा रहा है. अभी तक जितने भी कानून बनाये गए हैं उनकी आड़ में कभी न कभी सत्ताधारी दल अपने लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठने की कवायद करता ही रहता है. देश में कानून महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उनसे महत्वपूर्ण है कि इन कानूनों को किस तरह से लागू कराया जाता है ?  केवल नए कानून किसी भी समस्या का समाधान नहीं दे सकते हैं वर्ना अभी तक बने कानूनों से देश का भला हो गया होता ? अन्ना जैसे व्यक्ति अगर किसी बात पर अड़े हुए हैं तो सरकार को पूरी संसद को विश्वास में लेकर इस बारे में कुछ करने का प्रयास करना चाहिए अपने लाभ के लिए बहुत बार सरकारें संसद का सत्र बुलाती रहती हैं पर जब देश से जुड़ा मसला है तो विशेष सत्र बुलाये जाने की बात क्यों नहीं की जा रही है ? यह सही है की इस बड़े मुद्दे पर कोई भी काम इतनी जल्दी नहीं किया जा सकता है अपर इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का प्रयास तो किया ही जा सकता है ? जिस बात की ज़रुरत है वहां पर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है और फालतू की बातों में समय नष्ट किया जा रहा है.
        आज आचरज की बात तो यह है कि इस मुद्दे पर सरकार के साथ विपक्ष भी कान में तेल डालकर चुप्पी साधे बैठा है जो आमतौर पर भ्रष्टाचार से जुड़े किसी भी मुद्दे पर सरकार की टांग खींचने से बाज़ नहीं आता है ? कारण स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार से सभी दल अपने हित साधते रहते हैं और अगर ऐसा कुछ भी कानून के रूप में सामने आ गया तो आने वाले समय में किसी अन्य दल की सरकार होने पर उसे भी यही सब देखना पड़ेगा ? एक सबल कानून होने के साथ कोई भी कभी भी देश के किसी भी पद पर ऊँगली उठाकर उससे हिसाब मांगने की स्थिति में आ जायेगा जो कि इस देश के नेता नहीं चाहते हैं ? आज समय है कि इस मामले में कुछ ठोस किया जाये क्योंकि कई बार जनता से जुड़ी कोई भी बात इतनी बिगड़ जाया करती है कि वह जन आन्दोलन का रूप ले लेती है. अच्छा हो कि हर मामले पर संसदीय समिति की मांग करने वाले विपक्षी दल और सत्ता पक्ष को बुलाकर लोकसभा अध्यक्ष एक समिति बना दें और इनको जंतर मंतर जाकर अन्ना हजारे से बात करने को कहा जाये जिससे आने वाले समय के लिए उनसे बात करके कोई मज़बूत कानून बनाया जा सके पर आज के समय में शायद किसी के पास इस बात का समय नहीं है क्योंकि देश के ५ राज्य चुनावों में उलझे हैं और सरकार के साथ विपक्षी भी अपने दल को जितवाने में लगे हुए हैं. शायद किसी को देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार और अन्ना हजारे की चिंता नहीं है और अगर किसी को होगी भी तो वह अपने राजनैतिक भवष्य को देखते हुए चुप्पी लगाने में ही अपनी भलाई देख रहा है.



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