मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

बिनायक सेन और देश द्रोह

         प्रसिद्द सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक बिनायक सेन को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी ज़मानत के बाद अब यह बात फिर से बहस का मुद्दा बन चुकी है कि आख़िर किन परिस्थितियों में और कैसे किसी पर देश द्रोह का मुक़दमा चलाया जा सकता है ? कोर्ट ने स्पष्ट रूप से इस पूरे मामले में राज्य सरकार की बातों और तर्कों से असहमति दर्शायी और कहा कि इस तरह से किसी पर भी देश द्रोह का आरोप कैसे लगाया जा सकता है ? कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि जैसे किसी के पास गाँधीवादी साहित्य मिलने से वह गाँधीवादी नहीं हो जाता है ठीक उसी प्रकार से किसी के पास प्रतिबंधित सामग्री मिलने को ही देश द्रोह का एक मात्र कारण नहीं माना जा सकता है. यह सही है कि सेन के पास से कुछ प्रतिबंधित सामग्री मिली थी पर जिस तरह से उसकी विवेचना करके सेन को पाबंद किया जा सकता था उसके स्थान पर उन्हें सज़ा देने का काम किया गया और आज वे आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. कोर्ट ने आदेश की प्रति निचली अदालत को भेजते हुए कहा है कि वह देखे कि किन शर्तों पर सेन को ज़मानत दी जा सकती है.
     इस आदेश के बाद केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने भी आरोप लगाने के कारणों पर छत्तीसगढ़ सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि जब किसी भी कोर्ट में कोई केस जाये तो चुनी हुई सरकारों को पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपने आरोपों की गंभीरता को लेना चाहिए. साथ ही मोइली ने यह भी कहा कि वर्तमान में जो देशद्रोह का कानून है उसका उपयोग अंग्रेजों के समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के ख़िलाफ़ भी किया गया था और आज के समय में यह कानून पूरी तरह से देश द्रोह की परिभाषा को समेट नहीं पाता है इसलिए इसमें आवश्यक बदलाव की आवश्यकता है और शीघ्र ही वे केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और विधि आयोग की राय इस मसले पर लेने की दिशा में आगे बढ़ने वाले हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यदि गृह मंत्रालय सहमत होता है तो पुराने पड़ चुके इस कानून की समीक्षा और इसमें आवश्यक बदलाव के बारे में भी सोचा जायेगा. भारतीय दंड संहिता में बदलाव या सुझाव के लिए गृह मंत्रालय ही कोई कदम उठा सकता है और उसकी तरफ़ से सहमति मिलने के बाद इस कानून की समीक्षा आसान होने वाली है.
    यह सही है कि देश की आज़ादी के समय हमारे पास करने के लिए इतना कुछ था जिसके कारण हम अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था को काफ़ी हद तक अपनाने को मजबूर हुए थे पर आज भी बहुत सारे ऐसे कानून हमारे देश में बने हुए हैं जिनकी कमी का लाभ उठाकर लोग बराबर ही देश के ख़िलाफ़ काम किया करते हैं और उनको कानून की कमी से लाभ भी मिल जाता है. अंग्रेजों ने हमेशा से ही इस देश पर राज करना चाहा था और इसके लिए उन्होंने बहुत सारे दमनात्मक कानून भी बनाये हुए थे. आज के समय में उन कानूनों से देश की जनता को बहुत हानि हो जाया करती है. आज देश को आवश्यकता है कि सभी लोग मिलकर ऐसे पुराने पड़ चुके कानूनों को बदलने के लिए एक अभियान चलायें क्योंकि जब तक समय के अनुसार कानून नहीं होंगे तब तक कभी केंद्र/राज्य सरकारें या फिर कभी कोई देश विरोधी तत्व भी इनका दुरूपयोग करने से नहीं चूकेगा.        

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3 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो, यह न्याय की जीत है पर इससे एक सवाल तो खड़ा हो ही गया कि सरकार चाहे तो न्यायप्रिय लोगों को भी परेशान कर के रख देती है।

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  2. jab desh anek prakar ke andaruni atankvad se jugh raha hai ase samay mein Sen jaise logon ko keval takniki sabuton ke adhar par jamanat mil jana kai muddon par fir se vichar karne ki avashyakta ko darshata hai.violence ko active or passive support ko kya sweekara ja skta hai ?

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