मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 17 अप्रैल 2011

काली पोशाक में साफ़ लोग

       सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एच एस कपाड़िया ने देश में कानून के क्षेत्र में साफ़ लोगों के होने की अपनी मंशा को ज़ाहिर किया है साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि न्यायपालिका को साफ़ रखने की पूरी ज़िम्मेदारी इससे जुड़े लोगों पर ही अधिक है क्योंकि किसी भी तंत्र को सुधारते समय उसमें उस तंत्र के लोगों का बहुत बड़ा हाथ होता है. आज के समय में जो कुछ भी देश में हो रहा है उसके पीछे कहीं न कहीं से व्यापत भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ है. न्यायमूर्ति कपाड़िया ने जिस तरह से न्याय पालिका को ख़ुद ही अपने को सुधारने की बात कहीं  हैं वे अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जब किसी भी तंत्र में घुन अन्दर से लगता है तभी उसका पतन जल्दी हो जाता है. ऐसा नहीं है कि पहले ऐसी बातें नहीं कही जाती थीं पर आज के समय में जिस तरह से न्यायपालिका पर आक्षेप लगने लगे हैं उसको देखते हुए इस के अन्दर से ही इस तरह की आवाज़ आने की बहुत ज़रुरत है.
       जब कोई भी व्यक्ति सामजिक परिवेश में रहता है तो उसका बहुत सारे लोगों से मिलना जुलना होता रहता है जिसके चलते कई बार समाज में मौजूद ग़लत तत्व अपने फ़ायदे के लिए इन सूत्रों का दुरूपयोग करने लगते हैं. न्यायमूर्ति कपाड़िया ने जिस तरह से अपनी निज़ी बातों को सबके सामने रखते हुए कहा कि उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बहुत सारे लोगों से मिलना जुलना इसीलिए नहीं रखा क्योंकि वहां जाने से बहुत लोगों से अनावश्यक रूप से मिलना जुलना होता है और कोई अपने लाभ के लिए उनके पद का लाभ भी उठा सकता है ? उन्होंने जिस तरह से आज न्यायपालिका में व्यापत कमियों की तरफ़ न्याय जगत का ध्यान दिलाया है उसकी बहुत आवश्यकता थी. जिस तरह से उन्होंने यह कहा कि न्यायपालिका को रोज़ के प्रशासनिक कामों में भी दख़ल देना बंद करने के लिए कहा वह भी अपने आप में महत्वपूर्ण है फिर भी उन्होंने यह कहने में गुरेज़ नहीं किया कि राजनेताओं को भी अनावश्यक रूप से ऐसी स्थितियां उत्पन नहीं करनी चाहिए जिससे कोर्ट को अनावश्यक रूप से सरकारी काम में दखल देना पड़े.
     यह बिलकुल सही समय है जब देश में लोकतंत्र के चारो स्तंभों को अपनी ज़िम्मेदारियों के साथ आगे आना चाहिए और कहीं से भी कोई एक दूसरे का रास्ता रोकने के बजाय अपने रास्ते पर चलते हुए देश की तरक्की में अपना योगदान देना चाहिए क्योंकि जब सभी अपने हिस्से के कर्तव्यों को ठीक से निभायेंगें तभी देश में कानून और संविधान सम्मत राज चल पायेगा. आज देश में न्यायपालिका पर जनता को बहुत भरोसा है और आने वाले समय में यह बना रहे इसलिए न्यायमूर्ति कपाड़िया की बातों पर न्याय जगत को ध्यान देना ही होगा. एक दूसरे के मामलों में अडंगा लगाने के स्थान पर यदि सभी पहले की तरह अपनी सीमाओं को समझने लग जाएँ तो हर स्तर पर पूरा सुधार हो सकता है.     

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