भाजपा और लेफ्ट का मानना है कि अन्ना हजारे के आन्दोलन ने संप्रग सरकार के लिए सेफ्टी वाल्व का काम किया है क्योंकि जिस तरह से पिछले कई महीनों से संप्रग सरकार पर भ्रष्टाचार का समर्थन करने के आरोप इन दलों द्वारा लगाये जा रहे थे उसके बाद अचानक ही अन्ना के सामने आ जाने से यह मुद्दा जनता बनाम सरकार का हो गया जिसमे सरकार ने बाज़ी मारते हुए अन्ना की मांगों को स्वीकार कर लिया और जनता में यह संदेश भी दे दिया कि वह भी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ है. अभी तक किसी भी दल की तरफ से इस तरह की कोई भी पहल नहीं की गयी थी जिससे कहीं न कहीं अन्ना के आन्दोलन से सीधे सरकार को भी भ्रष्टाचार पर हमला करने का मौका मिल गया. यह सही है कि अन्ना बनना इतना आसान नहीं है क्योंकि जब तक तंत्र में आवाज़ नहीं सुनी जाती है तब तक किसी भी आन्दोलन के कोई मायने नहीं होते हैं पर अन्ना ने सही तौर पर गाँधीवादी तरीके से आन्दोलन चलाकर अपने को साबित कर दिया है.
इस तरह के किसी भी काम में सभी को विश्वास में लेने से ही काम चलता है और फिलहाल सरकार ने अपने क़दमों से अन्ना का विश्वास जीतने में सफलता प्राप्त की है जिसकी इस देश को बहुत आवश्यकता थी. जिस तरह से अन्ना ने अब यह माना है कि इस देश में संसद ही सर्वोच्च है उससे भी सरकार की परेशानियाँ कम ही हुई है क्योंकि अब उसके सामने संसद में इस मुद्दे पर बहस करना आसान हो गया है. अन्ना का यह कहना कि अगर संसद में यह बिल नहीं पारित हुआ तो वह संसद की बात मान लेंगें. अब अन्ना ने यह कहकर गेंद सरकार के पाले में डाल दी है क्योंकि उन्हें भी पता है कि आन्दोलन के लिए जनता को जगाकर उसके दबाव की आवश्यकता थी और कोई भी बिल पारित करने के लिए संसद की भूमिका सर्वोच्च है. अब यह संसद क्या करती है इसे पूरा देश उत्सुकता से देखेगा ? कानून में पूरी तरह से यह प्रयास किया जाना चाहिए कि कहीं से भी कोई भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बच न सके.
ऐसा नहीं है कि अब सांसदों को अपनी छवि की चिंता नहीं है क्योंकि २०१३ में उन्हें फिर से वोट मांगने के लिए जनता के बीच में तो जाना ही है और इस बिल पर संसद में किसी भी दल के पास इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं होगी क्योंकि तब जनता के बीच उनके लिए गलत संदेश जाने की सम्भावना बन जायेगी. अच्छा ही है कि धीरे धीरे ही सही यह बिल अब सही दिशा में और अच्छे वातावरण के बीच आगे बढ़ रहा है पर अभी भी यह देखना बाक़ी है कि इसके सदस्यों पर भ्रष्टाचारियों द्वारा आरोप लगाकर दबाव बनाने की नीति कहीं से भी सफल न होने पाए क्योंकि जब सबके फंसने की सम्भावना बनती है तो वे किसी भी स्तर तक गिरकर कोई भी काम कर सकते हैं. आज देश को एक प्रभावी लोकपाल बिल की आवश्यकता है और इसके लिए अब सही दिशा में बढ़ने की बहुत ज़रुरत है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस तरह के किसी भी काम में सभी को विश्वास में लेने से ही काम चलता है और फिलहाल सरकार ने अपने क़दमों से अन्ना का विश्वास जीतने में सफलता प्राप्त की है जिसकी इस देश को बहुत आवश्यकता थी. जिस तरह से अन्ना ने अब यह माना है कि इस देश में संसद ही सर्वोच्च है उससे भी सरकार की परेशानियाँ कम ही हुई है क्योंकि अब उसके सामने संसद में इस मुद्दे पर बहस करना आसान हो गया है. अन्ना का यह कहना कि अगर संसद में यह बिल नहीं पारित हुआ तो वह संसद की बात मान लेंगें. अब अन्ना ने यह कहकर गेंद सरकार के पाले में डाल दी है क्योंकि उन्हें भी पता है कि आन्दोलन के लिए जनता को जगाकर उसके दबाव की आवश्यकता थी और कोई भी बिल पारित करने के लिए संसद की भूमिका सर्वोच्च है. अब यह संसद क्या करती है इसे पूरा देश उत्सुकता से देखेगा ? कानून में पूरी तरह से यह प्रयास किया जाना चाहिए कि कहीं से भी कोई भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बच न सके.
ऐसा नहीं है कि अब सांसदों को अपनी छवि की चिंता नहीं है क्योंकि २०१३ में उन्हें फिर से वोट मांगने के लिए जनता के बीच में तो जाना ही है और इस बिल पर संसद में किसी भी दल के पास इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं होगी क्योंकि तब जनता के बीच उनके लिए गलत संदेश जाने की सम्भावना बन जायेगी. अच्छा ही है कि धीरे धीरे ही सही यह बिल अब सही दिशा में और अच्छे वातावरण के बीच आगे बढ़ रहा है पर अभी भी यह देखना बाक़ी है कि इसके सदस्यों पर भ्रष्टाचारियों द्वारा आरोप लगाकर दबाव बनाने की नीति कहीं से भी सफल न होने पाए क्योंकि जब सबके फंसने की सम्भावना बनती है तो वे किसी भी स्तर तक गिरकर कोई भी काम कर सकते हैं. आज देश को एक प्रभावी लोकपाल बिल की आवश्यकता है और इसके लिए अब सही दिशा में बढ़ने की बहुत ज़रुरत है.
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