पिछले ९ दिनों से हड़ताल कर रहे एयर इंडिया के पायलटों और नगर विमानन मंत्रालय के बीच हुई वार्ता के बाद अब इसके समाप्त होने की सम्भावना बनने लगी है. जिस तरह से इतने लम्बे समय तक सार्वजनिक क्षेत्र की इस कम्पनी को जान बूझकर नुकसान पहुँचाने की कोशिशें की गयी हैं अब इसकी भी जांच होनी चाहिए ? आख़िर क्या कारण रहा कि जब देश में छुट्टियों के चलते लोगों का आवागमन पूरे देश में बढ़ता है और भारतीय पर्यटक विदेश यात्रा पर भी निकलते हैं तो ठीक उसी समय पर इतनी लम्बी चलने वाली हड़ताल की गयी ? जिस तरह से सरकार ने पहले इस मामले को एयर इंडिया प्रबंधन पर छोड़ा और वह इतने दिनों तक कोई भी रास्ता नहीं निकाल पाया उससे भी यही लगता अहिकी कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ भी हो सकता है ? अब इस मामले की तह तक जाने की आवश्यकता है और यह भी देखना चाहिए कि इस पूरे मामले में किस निजी क्षेत्र की विमान सेवा को सबसे अधिक लाभ हुआ है ?
इतने दिनों तक समय देने के बाद जब कोई रास्ता नहीं निकला तो सरकार ने नागर विमान मंत्रालय को पूरा मामला देखने के लिए कहा और अब बातचीत में हड़ताल समाप्त करने पर सहमति बन गयी है. यहाँ पर सवाल किसी हड़ताल का नहीं है वरन पूरे मामले को इस नज़रिए से देखने का है कि आख़िर सरकार द्वारा समर्थित किसी भी निगम या कम्पनी में लोग इस तरह से कैसे कर सकते हैं ? शायद उन्हें यह लगता है कि सरकार अपने नियम और कानून के चलते कुछ कर नहीं पायेगी और कुछ दिनों के बाद हड़तालियों की बातें ही मानी जाएँगी ? आख़िर क्यों हम इन निगमों और कंपनियों को अपना नहीं मान पाते हैं ? क्यों कुछ दिन बाद कहीं न कहीं से इस तरह की आवाजें बार बार सुनाई पड़ती हैं ? शायद इतनी ऊंचा भुगतान पाने वाले इन हड़ताली पायलटों को यह लगता है कि सरकार और एयर इंडिया बहुत मुनाफा काट रही हैं और इनको कम वेतन दिया जा रहा है ?
आज के युग में जब देश में निजी विमान सेवाओं ने बहुत अच्छे से काम करना शुरू कर दिया है तो सरकार को इस तरह से विमान कम्पनी चलाने की कोई ज़रुरत नहीं है. आज सरकार को एयर इंडिया के विनिवेश के बारे में भी सोचना चाहिए क्योंकि कब तक जनता के पैसे से इन पायलटों को ऐश करवाई जाती रहेगी ? अगर उन्हें एयर इंडिया के साथ काम करना है तो उन्हें भी इसकी सेहत का ध्यान रखना होगा क्योंकि जब तक वे सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनी में हैं तब तक कुछ भी करते रहें कोई पूछने वाला नहीं है पर जब एक बार किसी निजी क्षेत्र की कम्पनी में काम करना पड़ेगा तो सारी अकड़ निकल जाएगी. हो सकता है कि पायलटों की कुछ मांगें जायज़ भी हों तो भी इस तरह से हड़ताल करके अपने सेवा प्रदाता को आर्थिक चोट पहुँचाने का काम कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? फिलहाल इस तरह के किसी भी काम को करने से पहले अब हड़ताली निगमों और कम्पनियों के विनिवेश के बारे में सोचने का सही समय आ गया है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें