देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों के बारे में जिस तरह से दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों ने अपने विचार जनता के सामने रखे हैं उससे लगता है कि आने वाले समय में इन संस्थानों में कुछ बड़े बदलाव भी हो सकते हैं. अभी तक भारत के इन चुनिन्दा तकनीकी और प्रबंधन संस्थानों के बारे में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का यह कहना कि इन संस्थानों की पूछ इनके छात्रों से है न कि इनके अध्यापकों से. अभी तक यही माना जाता है कि आईआईटी और आईआईएम में जो भी गुणवत्ता बनी हुई है वह वहां के शिक्षकों के कारण ही है पर अब जब सरकार के मंत्रियों ने भी इन पर ऊँगली उठाना शुरू कर दिया है तो इस बात पर विचार मंथन करने की आवश्यकता है क्योंकि अगर यह सब केवल छात्रों के बल पर ही वास्तव में है तो हमारे पास शिक्षकों के स्तर को ऊंचा उठाकर इन संस्थानों को आगे बढ़ाने के बहुत सारे अवसर खुले पड़े हैं. यह सही है कि ये सभी बहुत अच्छे संस्थान हैं पर भारत के आम लोगों और भारत के लोगों के हितों के लिए इनके पास करने के लिए कुछ भी नहीं होता है और सरकार के मंत्रियों की चिंता यहीं पर आकर अटकी हुई है.
इस मामले में जयराम रमेश के बाद कपिल सिब्बल ने भी इस बात से सहमति दिखाई है इससे लगता है कि अब हो सकता है कि सरकारी स्तर पर भी इनमें कुछ गुणवत्ता परक सुधार के लिए कुछ कड़े कदम भी उठाये जाएँ क्योंकि यह सारा कुछ सिब्बल के मंत्रालय के कार्य क्षेत्र में ही आता है और वहां से इस तरह के संकेत मिलने से इस बात की आशा और बढ़ जाती है. आईआईटी के पूर्व छात्रों ने इन सभी संस्थानों में शिक्षकों के लिए नये और उच्च वेतन मान की मांग कि है क्योंकि उनका यह मानना है कि जब तक यहाँ पर विश्व स्तरीय वेतन नहीं दिया जाएगा तब तक इन जगहों पर विश्वस्तरीय शिक्षक कहाँ से आयेंगें ? इनका यह कहना बिलकुल सही है क्योंकि जब सिब्बल को भी यह लगता है कि इनमें सुधार की आवश्यकता है तो अब सुधार करने की दिशा में बढ़ा जा सकता है. अभी तक जो कुछ भी हो रहा है उस पर ध्यान देकर आगे के लिए अच्छी नीतियां बनायीं जा सकें जिससे आने वाले समय में ये सभी संस्थान भारत के लिए गौरव का विषय बन सकें.
इन संस्थानों को देश में शिक्षा के मंदिरों का स्थान मिला हुआ है और जब इनके और इनकी कमियों के बारे में कुछ कहा जा रहा है तो यही सही समय है कि अब कुछ भी किया जा सकता है. कपिल सिब्बल ने जिस तरह से कई कानूनों को समयबद्ध तरीके से बनाने और लागू करवाने में दिलचस्पी दिखाई है उससे यही लगता है कि अब वे इस विषय पर भी सोच सकते हैं. शिक्षा का अधिकार कानून अपने आप में भारत में बहुत बड़े बदलाव करने में सक्षम है पर आवश्यकता इस बात की है कि इस विधेयक को बनाए में जो मंशा रखी गयी थी अब उस पर पूरी तरह से अमल किया जाए. सभी जानते हैं कि ये संस्थान देश के लिए गौरव की बात हैं और देश का गौरव बनाये रखने की ज़िम्मेदारी पूरे देश की होती है तो इसीलिए कानूनों में बदलाव से लेकर इनकी उन्नति के लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए वह अभी ही करना चाहिए क्योंकि इस समय सब इस बारे में बातें कर रहे हैं. आशा की जानी चाहिए कि अब हम ऐसा कुछ कर सकेंगें कि जिसके बाद भविष्य में इन संस्थानों के बारे में किसी को ऐसा कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस मामले में जयराम रमेश के बाद कपिल सिब्बल ने भी इस बात से सहमति दिखाई है इससे लगता है कि अब हो सकता है कि सरकारी स्तर पर भी इनमें कुछ गुणवत्ता परक सुधार के लिए कुछ कड़े कदम भी उठाये जाएँ क्योंकि यह सारा कुछ सिब्बल के मंत्रालय के कार्य क्षेत्र में ही आता है और वहां से इस तरह के संकेत मिलने से इस बात की आशा और बढ़ जाती है. आईआईटी के पूर्व छात्रों ने इन सभी संस्थानों में शिक्षकों के लिए नये और उच्च वेतन मान की मांग कि है क्योंकि उनका यह मानना है कि जब तक यहाँ पर विश्व स्तरीय वेतन नहीं दिया जाएगा तब तक इन जगहों पर विश्वस्तरीय शिक्षक कहाँ से आयेंगें ? इनका यह कहना बिलकुल सही है क्योंकि जब सिब्बल को भी यह लगता है कि इनमें सुधार की आवश्यकता है तो अब सुधार करने की दिशा में बढ़ा जा सकता है. अभी तक जो कुछ भी हो रहा है उस पर ध्यान देकर आगे के लिए अच्छी नीतियां बनायीं जा सकें जिससे आने वाले समय में ये सभी संस्थान भारत के लिए गौरव का विषय बन सकें.
इन संस्थानों को देश में शिक्षा के मंदिरों का स्थान मिला हुआ है और जब इनके और इनकी कमियों के बारे में कुछ कहा जा रहा है तो यही सही समय है कि अब कुछ भी किया जा सकता है. कपिल सिब्बल ने जिस तरह से कई कानूनों को समयबद्ध तरीके से बनाने और लागू करवाने में दिलचस्पी दिखाई है उससे यही लगता है कि अब वे इस विषय पर भी सोच सकते हैं. शिक्षा का अधिकार कानून अपने आप में भारत में बहुत बड़े बदलाव करने में सक्षम है पर आवश्यकता इस बात की है कि इस विधेयक को बनाए में जो मंशा रखी गयी थी अब उस पर पूरी तरह से अमल किया जाए. सभी जानते हैं कि ये संस्थान देश के लिए गौरव की बात हैं और देश का गौरव बनाये रखने की ज़िम्मेदारी पूरे देश की होती है तो इसीलिए कानूनों में बदलाव से लेकर इनकी उन्नति के लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए वह अभी ही करना चाहिए क्योंकि इस समय सब इस बारे में बातें कर रहे हैं. आशा की जानी चाहिए कि अब हम ऐसा कुछ कर सकेंगें कि जिसके बाद भविष्य में इन संस्थानों के बारे में किसी को ऐसा कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.
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