लगता है कि केंद्र सरकार ने अपनी सहयोगी और बंगाल में अभी चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री का पद सँभालने वाली ममता बनर्जी के साथ मिलकर राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने के प्रयास वास्तव में शुरू कर दिए हैं. यह सही है कि ३४ सालों के वाम दलों के शासन में बहुत सारी नीतियां कुछ इस तरह से हो गयीं थीं जिससे राज्य में औद्योगिक विकास और सामाजिक विकास के मुद्दे कहीं बहुत पीछे छूट गए से लगते हैं. अब इस बात को करने से अधिक करने की आवश्यकता है कि बंगाल में नीत्तियों के कारण जो भी पिछड़ापन रह गया है उसे अब दूर करने का प्रयास भी किया जाए. ऐसा भी नहीं है कि राज्य में सब कुछ ठप है पर उसे आज की तेज़ गतिविधियों में शामिल करने की ज़रुरत है नीतियों में कमियां हो सकती हैं पर कोई भी नीति अपने आप में बहुत ख़राब नहीं होती बस उसे सही ढंग से लागू करवाने की आवश्यकता होती है. यह माना जा रहा है कि ममता परिपक्व राजनेता की तरह अपने को छोटे मामलों में अब उलझाने की कोई कोशिश नहीं करेंगीं.
यह सही है कि किसी समय में वामपंथी नीतियों ने बंगाल के जनमानस को ऐसा कर दिया था कि वाम सरकार की हर बात उन्हें सही लगती थी. अब पुरानी बातों को को पीछे छोड़कर बंगाल में आज के हिसाब से आगे बढ़ने की चाह पैदा करना ही ममता सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. जिस तरह से केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब दा ने भी आगे बढ़कर अपने गृह राज्य बंगाल को हर तरह की सरकारी मदद का आश्वासन दिया है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में वहां अपर बहुत कुछ बदलने वाला है. राज्य में सबसे बड़ी बात जो स्थापित की जनि है वह है लोगों का विश्वास और इसके आ जाने के बाद सरकार के लिए कुछ भी करना आसान हो जायेगा. किसी भी स्थिति में अब राज्य में लापरवाहियां बर्दाश्त नहीं की जायेंगीं. जब तक राज्य के समग्र विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाएगी तब तक लोगों का जुड़ाव सरकार से नहीं हो पायेगा. माओवादियों ने ममता सरकार से बात करने की इच्छा जताई है और अगर वे वास्तव में बात करना चाहते हैं तो इसे अविलम्ब बिना किसी शर्त शुरू कर देना चाहिए.
ममता ने जिस तरह से अपनी प्राथमिकतायें तय करना शुरू कर दिया है उससे यही लगता है कि वे भी राज्य के लिए बहुत कुछ करना चाहती हैं. सबसे पहले उन्हें बंगाल की सोयी पड़ी सरकारी मशीनरी को झकझोर कर जगाना होगा क्योंकि इसके बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है. जब तक सरकारी कर्मचारी भी अपने काम करने के तरीके को नहीं बदलेंगें तब तक कुछ भी सुधरने वाला नहीं है. अभी तक सरकार और प्रशासन के नाम पर बंगाल में केवल वाम पंथी दलों का ही राज चला करता था जिससे बहुत बार सही प्रशासनिक फैसले भी नहीं लिए जा पाते थे. अब सबसे पहले ममता को यही ठीक करना होगा कि तृणमूल पार्टी निगरानी का काम करे न कि वह प्रशासन पर दबाव बनाकर हर तरह के फैसले ख़ुद ही करने लगे. जब ये एक दुसरे के पूरक होंगें तभी जाकर कुछ सही किया जा सकेगा. साथ ही ममता को इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उचित राजनैतिक सम्मान भी मिले क्योंकि जो काम करके वाम दल आज विपक्ष में बैठे हैं उसे दोहराने से केवल बंगाल का ही नुक्सान होने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें