मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 31 मई 2011

ममता का आत्मबल

        लगता है कि बहुत साधारण से कपड़े पहनने और हवाई चप्पलों में ही रहने वाली ममता दी ने अपने आत्म बल से पूरे भारत को झकझोरने का मन बना लिया है. उन्होंने ने जिस तरह से अपने कार्यालय के नवीनीकरण के लिए आई २ लाख रुपयों की लागत को चेक के माध्यम से पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव समर घोष को सौंपा वैसा उदाहरण उच्च राजनैतिक जीवन मूल्यों के साथ जीने वाला कोई अन्य नेता अभी तक नहीं कर पाया था. यह अपने आप में एक ऐसी घटना है जो पूरे देश की आँखें खोलने के लिए काफ़ी है फिर भी ममता दी को इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है ? ममता दी ने इससे पहले बंगाल की खस्ता आर्थिक स्थिति को देखते हुए अपने चित्रों की प्रदर्शनी से हुई १ करोड़ की धनराशि भी राज्य सरकार को दी थी. यह सही है कि किसी भी राज्य में इतनी धनराशि से कुछ भी नहीं होता पर इससे जो सन्देश पूरे राज्य में जाता है उससे बहुत बड़ी बचत और वित्तीय मितव्ययता के बारे में सभी को जागरूक करने की प्रेरणा तो मिलती ही है.
     सवाल यहाँ पर दो लाख रुपयों का नहीं वरन इस बात का है कि आख़िर देश के सभी राजनेताओं में यह गुण क्यों नहीं है ? आज जिस तरह से नेताओं-अधिकारियों के जमघट ने देश के उन संसाधनों को लूटना शुरू कर दिया है जो देश की गरीब जनता के लिए निर्धारित किया जाता है. जब जनता के पैसे से अधिकारियों और नेताओं को हर तरह की सुविधा मिलती है तो फिर ये क्यों इसके बाद भी देश के संसाधनों की लूट मचाते रहते हैं ? अगर देश में इस तरह का वित्तीय अनुशासन लागू हो जाए तो देश का बहुत सारा पैसा जो केवल दिखावे में ही खर्च हो जाया करता है उसमें भी बहुत सारी बचत हो सकती है ? आख़िर क्यों नहीं इन बातों के लिए कुछ निर्धारण कर दिया जाता है कि किस मद में कौन कितना खर्च करने का अधिकारी है ? एक बात तो स्पष्ट है कि जब ममता दी ने इस काम के भी पैसे दिए हैं तो वहां पर जो काम दो लाख रुपयों में हो गया है वह अन्य जगहों पर १० लाख रूपये खर्च करके भी नहीं हो पाता क्योंकि अब उनके शासन में कोई भी इस तरह से भ्रष्टाचार फ़ैलाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहेगा.
      ममता दी ने ऐसा करके उन नेताओं के गाल पर बहुत ज़ोरदार तमाचा मारा है जो सड़क पर होते हैं पर विधायक या सांसद बनते ही जिनके पास अकूत संपत्ति आने लगती है फिर भी कोई सरकार या सरकारी तंत्र से जुड़ा व्यक्ति उनसे यह पूछने की हिम्मत नहीं कर पाता है कि आख़िर इसके पीछे उनको कौन सा जुगाड़ मिल गया है ? उत्तर प्रदेश में जिस तरह से जनता के पैसे की लूट मचाई गयी है उससे कहीं से भी यह नहीं लगता है कि प्रदेश में कोई वित्तीय संकट भी है ? जबकि यहाँ का हाल बंगाल से कम नहीं है पर नेता की सोच से सब कुछ बदल जाता है आज ममता दी बंगाल के लिए चिंतित हैं तो वहीँ उत्तर प्रदेश में सरकार केवल दिखावे अपर ही सारा पैसा बर्बाद किये दे रही है ? क्या देश में किसी भी नेता ने कभी अपने निजी पैसों से किसी सरकार को मदद की है ? शायद कभी नहीं आज देश को ज़रुरत है ममता दी जैसे नेताओं की जो सादगी से रहना और चलना पसंद करते हैं पर देश को लूटने में लगे अधिकांश लुटेरे नेताओं के पास इस तरफ सोचने की दृष्टि का अभाव है...    
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