देश के ५ राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों से एक बात तो स्पष्ट हो ही गयी है कि आने वाले समय में केवल परिवार, जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने वालों के लिए बहुत कठिन समय आने वाला है. केवल कुछ बातों पर ही जनता का ध्यान लगाकर अभी तक चुनाव जीत रहे नेताओं के लिए अब यह बहुत बड़ा संकेत बनकर सामने आ रहा है कि सभी अन्य बातों को पीछे छोड़कर अब जनता ने बेहतर और स्वच्छ प्रशासन पर ध्यान देना सीख लिया है. देश में पिछले काफ़ी समय से हो रहे चुनावों में यह बात सामने आती ही जा रही है कि अब केवल काम करने वाले ही मैदान में टिके रह पायेंगें और केवल बातें करके मुख्य मुद्दों से भटकने वालों को अब जनता माफ़ करने वाली नहीं है. वैसे तो देखा जाये तो जनता ने धीरे धीरे अच्छे बुरे का अंतर समझना शुरू कर दिया है और प्रदेश/देश हित में किसकी सोच यथार्थ पर टिकी है यह भी अब चुनाव में मुद्दा होने लगा है.
जिस तरह से तीन राज्यों में बदलाव की बयार आई उससे यही लगता है कि अब केवल जनता के मुद्दों पर ध्यान देने वाले दलों और नेताओं को पसंद किया जाने लगा है. २००९ के लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही हुआ था और उसके पहले और बाद में भी जनता ने यह सोच बनाये रखी है जिससे यह पता चलता है कि अब देश में जनता की फिर से चलने वाली है. पुदुच्चेरी और असोम में सत्ताधारी दलों ने अपनी सरकारें बचा ली हैं तो उसके पीछे उनके काम का असर अधिक है. बंगाल में तो शायद पिछले चुनाव में ही वाम दलों से सत्ता छिन जाती पर ममता और कांग्रेस के आपसी वोटों के बंटवारे ने उनको ५ साल और इंतज़ार करवाया था. यह सही है कि आज के युग के हिसाब से वाम दलों ने अपने को बदलना नहीं सीखा और वे केवल उन सिद्धांतों से चिपके रहे जिनका आज के समय में उतना महत्त्व नहीं रह गया है. फिर लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने से उनमें कुछ अभिमान भी था जिसका बंगाल के हित में टूटना भी ज़रूरी था.
ममता बनर्जी में सब कुछ बहुत अच्छा है पर जिस तरह से वे अचानक ही किसी बात पर जिद पकड़कर उसे करने पर तुल जाती हैं वह कहीं तो उनके वोटों में बढ़ोत्तरी कर देता है और कहीं पर उनका बहुत बड़ा नुकसान भी हो जाता है. अब जब सत्ता उनके हाथ में है तो उन्हें सबको साथ लेकर बंगाल के विकास के लिए २० वर्षों कई योजना तैयार करनी चाहिए क्योंकि किसी भी प्रदेश में कुछ ठोस विकास और जनता के हित में कुछ अच्छे करने के लिए केवल ५ वर्ष ही बहुत नहीं होते हैं. साथ ही अब तुरंत ही उन्हें पूरे तंत्र में व्यापत कमी को सबके सामने लाकर इसे सुधारने के लिए एक समय सीमा तय करनी होगी क्योंकि इसके बिना जनता को कुछ भी समझ में नहीं आने वाला है. इसके साथ उनके लिए लोगों की आकांक्षाओं का बोझ उठाना भी बहुत भारी पड़ने वाला है क्योंकि ३४ साल बाद सभी को कुछ बदलाव की आशा है पर वह रात भर में तो नहीं आ सकता है फिर भी लोगों को यह तो लगना ही चाहिए की कुछ प्रयास तो शुरू कर ही दिए गए हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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