मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 4 जून 2011

डीज़ल पर नियंत्रण कब तक ?

         प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति का मानना है कि अब यह सही समय है जब सरकार डीज़ल को भी पेट्रोल की तरह बाज़ार के साथ मूल्य निर्धारित करने के लिये तेल कम्पनियों को छूट दे सकती है. पहले यह माना जा रहा था कि जब तक मुद्रा स्फीति की दर ७ % तक नहीं आती तब तक ऐसा करने में दिक्कत होगी और सरकार भी उस स्तर के लिए प्रतीक्षा करने के मूड में लग रही थी. पर जिस तरह से तेल कम्पनियों का घाटा भी बढ़ता जा रहा है और उसे पूरा करने के लिए अब सरकार के पास कोई और तरीका नहीं बचा है तो डीज़ल को बाज़ार के द्वारा ही मूल्य नियंत्रित करने की छूट अब तेल कंपनियों को मिलनी ही चाहिए. इसके लिए सरकार द्वारा जितनी देर की जाएगी तेल कंपनियों के लिए आने वाले समय में अपने संसाधन जुटाने में उतनी ही समस्या आने वाली है. इस पहलू पर अविलम्ब विचार करके सरकार को डीज़ल के मूल्यों को बाज़ार के आधीन कर देना चाहिए.
   यह सही है कि देश में डीज़ल की मूल्य वृद्धि से बहुत सारी अन्य आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई आदि मंहगी हो जाएगी जिससे एक बार फिर से मुद्रा स्फीति बढ़ने का खतरा रहेगा और यही कारण है कि सरकार भी मुद्रा स्फीति को और नीचे आने देना चाहती है जिससे आर्थिक तंत्र इस बढ़े हुए मूल्य को आसानी से झेल सके. देश में सार्वजानिक क्षेत्र की तेल कम्पनियों को ढंग से चलते रहने के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि मूल्यों को सरकार नहीं बल्कि उसके अंतर्राष्ट्रीय मूल्य निर्धारित करें ? अभी लोगों तक सस्ता तेल पहुँचाने की सस्ती लोकप्रियता वाला फार्मूला आने वाले समय में इन तेल कम्पनियों का दीवाला ही निकाल देगा जिससे फिर भारत की ये नवरत्न कम्पनियाँ ख़त्म हो जाएँगी और तब निजी क्षेत्र के व्यापारी अपने हितों को पूरी तरह से साधने का काम कर पायेंगें. देश में ऊर्जा का संकट उस समय नहीं आना चाहिए जब देश विकास में अन्य देशों को भी बहुत पीछे छोड़ने की ताकत दिखा रहा हो. हमें देश में भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अभी से तैयारी करनी ही होगी. 
   तेल मूल्य में वृद्धि का राजनैतिक कारणों से विरोध करने वालों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि अगर उनकी बात मान ली जाये और तेल के मूल्यों को नियंत्रित रखा जाये तो उससे देश और इन सार्वजानिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को क्या लाभ होने वाला है ? जब तक देश में सार्वजानिक क्षेत्र की तेल कम्पनियाँ हैं तभी तक सरकार आवश्यकता पड़ने पर मूल्यों को अपनी इच्छा से निर्धारित कर सकती है अपर इनके समाप्त हो जाने के बाद आख़िर देश में कौन सस्ते मूल्यों पर तेल देगा ? आज आवश्यकता के अनुसार चलने की और सख्त क़दम उठाने की आवश्यकता है फिर भी केवल विरोध के लिए विरोध हमेशा ही जारी रहेगा. देश कि अब यह समझना चाहिए कि केवल सस्ती लोकप्रियता से देश नहीं चला करते हैं और हमें भी तेल के उपयोग पर ध्यान देना चहिये जहाँ तक संभव हो सके इसकी बचत करनी चाहिए क्योंकि ऊर्जा के ये भंडार सीमित हैं और आने वाले समय में इनको समाप्त ही होना है. अब यह हम पर है कि इनका अँधा धुंध दोहन पर रोक लगायें या फिर इनके उपयोग में ही कमी लाने का प्रयास करें.   
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