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शुक्रवार, 3 जून 2011

बाबा रामदेव और सरकार

   भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जिस तरह से योगगुरु बाबा रामदेव और सरकार के बीच तनातनी और बातचीत चल रही है उससे यही लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर सही विचार विमर्श के बाद ही कोई ठोस कदम उठाना चाहती है. यह सही है कि देश में भ्रष्टाचार बहुत गहरे तक अपनी पैठ बना चुका है फिर भी कहीं न कहीं से देश में इस पर चोट करने की मंशा भी साफ़ है. जिस तरह से बाबा रामदेव अपने अनशन की ज़िद पर अड़े हुए हैं उससे सरकार को कुछ असहज स्थिति का सामना तो करना ही पड़ रहा है. इस स्थिति को टालने के लिए ही सरकार ने बाबा से बात करने का प्रयास किया और सुबोध कान्त सहाय जैसे मंत्रियों को इस काम पर लगाया गया है. अभी तक ऐसे किसी भी आन्दोलन के बारे में बातें करने वालों के बारे में सरकार बहुत लापरवाह हुआ करती हैं पर इस बार सरकार ने बाबा से बात करने का मन बनाया क्योंकि सरकार भी इस बात से सहमत है कि इस मसले पर बहुत कुछ करने की ज़रुरत है. 
     सरकार की इस बात के लिए आलोचना हो रही है कि उसने बाबा को ज़रुरत से ज्यादा भाव दे दिए हैं जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है. अगर बाबा रामदेव जैसे ख्याति प्राप्त व्यक्ति से मिलने के लिए सरकार के कुछ मंत्री एयरपोर्ट चले गए तो उससे क्या बिगड़ गया ? वैसे जिस तरह से अभी तक सरकार ने बाबा को पूरा सम्मान दिया है उसको देखते हुए उन्हें भी सरकार की स्थिति के बारे में सोचना चाहिए. जिस तरह से आजकल लोकपाल बिल पर सरकार चर्चा करने में व्यस्त है और उसे ३० जून तक तैयार करने के लिए कृत संकल्प भी दिखाई दे रही है उससे यही लगता है इस तरह की किसी भी बात से उसका ध्यान ही बंटना है. पहले बाबा को लोकपाल बिल पर सरकार की मंशा और रुख की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी और अगर इस पर उसका रुख सकारत्मक नहीं होता तो फिर वे किसी भी अनशन के लिए तैयारी करते और तब यह कहा जा सकता था कि लोकपाल मुद्दे पर सरकार का रुख़ ठीक नहीं रहा है इसलिए उस पर विश्वास करने का मतलब नहीं बनता है.
    सरकारों के लिए कुछ भी करना जितना आसान दिखाई देता है वास्तव में वह उतना आसान नहीं होता है क्योंकि किसी भी बड़े संविधान सशोधन के लिए उसे सभी राजनैतिक दलों के बारे में सोचना होता है और संसद में उस बिल को पास करने की ज़िम्मेदारी भी लेनी होती है. वैसे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जो माहौल बना हुआ है उसे देखते हुए कहीं से भी यह नहीं लगता है कि कोई भी दल इस तरह के किसी भी प्रयास का विरोध कर पायेगा पर जिस तरह से बाबा और सरकार अपने रुख़ पर अड़े हैं उससे कहीं न कहीं यह सन्देश तो चला ही जाता है कि इन बातों में इस तरह के विवादों की कोई ज़रुरत नहीं होती है. फिलहाल तो यही लगता है कि बाबा अपने अनशन को रोकने वाले नहीं हैं और इससे सरकार के सामने असहज स्थिति भी आने वाली है. फिलहाल बाबा को इस बारे में पूरी तरह से फिर से विचार करना चाहिए और अगर सरकार किसी समय सीमा में कुछ करने का आश्वासन देती है तो उस पर भरोसा करके कुछ समय भी देना चाहिए.        
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