मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 11 जून 2011

राजनीति और दिल्ली मेट्रो

    लगता है कि दिल्ली मेट्रो में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है तभी एक बार फिर से मेट्रो मैन श्रीधरन ने सरकार से ६ महीने पहले ही खुद को रिटायर करने का अनुरोध किया है. जिस तरह से १९९७ में दिल्ली मेट्रो की परिकल्पना से अब तक मेट्रो श्रीधरन के संरक्षण और कुशल मार्गदर्शन में निरंतर आगे बढ़ती जा रही है उस परिस्थिति में उनका अचानक से इस तरह की बात करना चिंताजनक है. हालांकि वे अपनी सेहत और उम्र का हवाला देते हुए पहले भी अपने पद को छोड़ने का अनुरोध कर चुके हैं पर उनकी विशेषज्ञता को देखते हुए फिलहाल सरकार उन्हें दिल्ली मेट्रो के साथ बनाये रखना चाहती है. पूरी दुनिया में जिस तरह से दिल्ली मेट्रो अपने आप में समय से पूर्व हर प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए मशहूर है उसमें सबसे बड़ा योगदान श्रीधरन का ही है क्योंकि उन्होंने अपने कोंकण रेलवे के हर अनुभव को पूरी तरह से इस प्रोजेक्ट में झोंक दिया और साथ ही काम करना वाले लोगों को प्रोत्साहन के साथ निकम्मे लोगों को भी काम करना सिखा दिया. जिस तरह से उन्होंने सरकारी विभाग में काम करने का सन्देश दिया और उसे करवा कर भी दिखा दिया वह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है.
        भारत में आम तौर पर सरकारी काम जिस गति से होता है उसे देखते हुए दिल्ली मेट्रो किसी सपने से कम नहीं है और इस पूरे सपने को धरातल पर उतारने का काम जिस व्यक्ति ने किया है उसके बिना मेट्रो को शुरू में बहुत दिक्कतें आने वाली है. अभी इसके तीसरे चरण के बारे में प्रोजेक्ट बन रहा है और अभी तक इसे सरकार कि मंज़ूरी नहीं  मिली है और जापान से भी अभी तक ऋण मिलने के बारे में भी कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है वैसी स्थिति में श्रीधरन का अचानक मेट्रो को छोड़ना कैसे संभाला जा पायेगा ? इस तीसरे चरण में बहुत तकनीकी विशेषज्ञता कि बहुत आवश्यकता होगी क्योंकि यह कई जगहों पर वर्तमान स्टशनों और पटरियों के नीचे से नयी पटरी बिछाने जैसे महत्वपूर्ण और चुनौती भरे कामों से भरा पड़ा है. जिसमें चलती हुई मेट्रो के साथ ही पोर काम करना होगा कि इसके परिचालन पर कोई असर न पड़े और काम भी समय से पूरा होता चले. ऐसी स्थिति में श्रीधरन के मेट्रो में न होने का मतलब आसानी से समझा जा सकता है ? 
     श्रीधरन का यह कहना कि वे चाहते हैं कि उनका उत्तराधिकारी कम से कम ३ महीने उनके साथ काम कर ले जिससे उनके जाने के बाद किसी भी तरह कि बड़ी समस्या सामने न आने पाए बिलकुल सही है. मेट्रो को श्रीधरन ने अपनी मेहनत से इतनी ऊंचाइयों तक पहुँचाया है और वे इसके हित के लिए सदैव ही चिंतित रहते हैं ऐसे में उनका इस तरह से मेट्रो के भविष्य के बारे में इस तरह से सोचना ही बहुत सुखद है. दिल्ली सरकार को चाहिए कि अगर कोई राजनैतिक खेल इसमें नहीं चल रहा हो तो उनकी इच्छा का सम्मान किया जाये और उन्हें दिल्ली मेट्रो के मुख्य सलाहकार के पद पर बनाये रखा जाये जिससे उनकी बहुमूल्य सेवाएं आगे आने वाले समय में भी मेट्रो को मिलती रहें. दिल्ली मेट्रो एक ऐसा सरकारी सपना है जिसे कोई भी तोड़ना नहीं चाहेगा और इसके भले के लिए जो भी कदम आवश्यक हैं उनके बारे में सरकार को पूरी गंभीरता से विचार करना चाहिए. श्रीधरन की गंभीरता और शीला कि इच्छा शक्ति ने दिल्ली को एक ऐसा साधन दे दिया है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. अब इसे संजोकर रखना सरकार पर निर्भर करता है.         
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