केंद्र सरकार ने सिविल सोसाइटी के साथ हुए कटु अनुभवों को देखते हुए अब यह तय कर लिया है कि भविष्य में किसी भी स्थिति में किसी भी तरह का आन्दोलन चलाने वालों से कोई बात नहीं की जाएगी. सरकार के इस रुख़ को स्पष्ट करते हुए सिविल सोसाइटी से बातचीत में शामिल रहे मंत्री कपिल सिब्बल ने यह भी कहा कि इस तरह का प्रयोग असाधारण स्थिति में किया गया था और इसके परिणाम बहुत कड़वे रहे हैं जिससे आगे आने वाले समय में इस तरह के कोई भी प्रयास नहीं किये जायेंगें. यहाँ पर उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने खुली आँखों से यह फैसला लिया था पर इसे एक मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि मंत्रियों के समूह द्वारा किया गया फ़ैसला अंतिम नहीं है और समय आने पर संसद के सामने रखे जाने पर इस पर सभी दलों द्वारा अपने विचार व्यक्त किये जायेंगे जिससे इसमें किसी भी तरह का संशोधन किया जा सकता है. सरकार ने समिति बनाकर उनकी मांगों को भी विचार विमर्श में शामिल करने की कोशिश की थी.
यहाँ पर सरकार के पक्ष को इस तरह से लिया जाना चाहिए कि वह इस पूरे मसले पर कुछ हद तक संजीदा भी थी पर बाद में जिस तरह से सरकार की हर बात पर टांग मारी जाने लगी तो उसने अपने हिसाब से काम करने की ठान ली. बैठकों में रह कर कुछ भी फ़ैसला लेना आसान है पर उसे संसद में पारित करवाना दूसरी बात है. सरकार को यह बात अच्छी तरह से पता है कि कौन सी बातें इस विधेयक में रखी जाएँ तो वह आसानी से पारित करवाया जा सकता है. इस देश में जहाँ गोपनीयता के नाम पर पता नहीं क्या कुछ होता रहता था अब सूचना के अधिकार के बाद उस तंत्र पर चोट भी होने लगी है. हर बात में कमी निकालने वाले लोग यह कहने से भी नहीं चूकेंगें कि उस कानून में कई कमियां हैं जबकि उसे इस तरह से देखना चाहिए कि जहाँ कुछ भी पता नहीं चल पाता था तो अब काफ़ी कुछ पता चलने लगा है ? और समय आने पर जो लोग इस कानून से बाहर हैं अगर वे कुछ गलत करते रहते हैं तो एक बार फिर से उन घटनाओं का उदाहरण देकर इस कानून में संशोधन की मांग भी की जा सकती है.
ठीक इसी तरह से लोकपाल बिल पर जो कुछ देने के लिए सरकार तैयार है उसे तो तुरंत ही लेना चाहिए और आने वाले समय में आगे की स्थिति पर गौर करने के बाद जो लोग इस कानून में छुट गए हैं उनको भी इस दायरे में लाने की कोशिश की जनि चाहिए. इस देश में जहा हर चीज़ पर नेता और अधिकारियों का कब्ज़ा हुआ पड़ा है उस स्थिति में ऐसा कुछ एकदम से नहीं होने वाला है और इसके लिए सभी को प्रयत्न के साथ धैर्य को भी धारण करना होगा. ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल बिल में कुछ भी नहीं है हाँ यह आम लोगों की अपेक्षाओं के उतना करीब भी नहीं है जितना सोचा गया था. देश के लिए बात करते समय सरकार और किसी भी प्रतिनिधि को केवल देश हित की बात सोचनी चाहिए और अनावश्यक रूप से नए विवादों को जन्म नहीं देना चाहिए क्योंकि शांतिपूर्वक अपनी बात कहकर मनवाने में जो असर पड़ता है वह कहीं और नहीं दिखाई देता है..
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यहाँ पर सरकार के पक्ष को इस तरह से लिया जाना चाहिए कि वह इस पूरे मसले पर कुछ हद तक संजीदा भी थी पर बाद में जिस तरह से सरकार की हर बात पर टांग मारी जाने लगी तो उसने अपने हिसाब से काम करने की ठान ली. बैठकों में रह कर कुछ भी फ़ैसला लेना आसान है पर उसे संसद में पारित करवाना दूसरी बात है. सरकार को यह बात अच्छी तरह से पता है कि कौन सी बातें इस विधेयक में रखी जाएँ तो वह आसानी से पारित करवाया जा सकता है. इस देश में जहाँ गोपनीयता के नाम पर पता नहीं क्या कुछ होता रहता था अब सूचना के अधिकार के बाद उस तंत्र पर चोट भी होने लगी है. हर बात में कमी निकालने वाले लोग यह कहने से भी नहीं चूकेंगें कि उस कानून में कई कमियां हैं जबकि उसे इस तरह से देखना चाहिए कि जहाँ कुछ भी पता नहीं चल पाता था तो अब काफ़ी कुछ पता चलने लगा है ? और समय आने पर जो लोग इस कानून से बाहर हैं अगर वे कुछ गलत करते रहते हैं तो एक बार फिर से उन घटनाओं का उदाहरण देकर इस कानून में संशोधन की मांग भी की जा सकती है.
ठीक इसी तरह से लोकपाल बिल पर जो कुछ देने के लिए सरकार तैयार है उसे तो तुरंत ही लेना चाहिए और आने वाले समय में आगे की स्थिति पर गौर करने के बाद जो लोग इस कानून में छुट गए हैं उनको भी इस दायरे में लाने की कोशिश की जनि चाहिए. इस देश में जहा हर चीज़ पर नेता और अधिकारियों का कब्ज़ा हुआ पड़ा है उस स्थिति में ऐसा कुछ एकदम से नहीं होने वाला है और इसके लिए सभी को प्रयत्न के साथ धैर्य को भी धारण करना होगा. ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल बिल में कुछ भी नहीं है हाँ यह आम लोगों की अपेक्षाओं के उतना करीब भी नहीं है जितना सोचा गया था. देश के लिए बात करते समय सरकार और किसी भी प्रतिनिधि को केवल देश हित की बात सोचनी चाहिए और अनावश्यक रूप से नए विवादों को जन्म नहीं देना चाहिए क्योंकि शांतिपूर्वक अपनी बात कहकर मनवाने में जो असर पड़ता है वह कहीं और नहीं दिखाई देता है..
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