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मंगलवार, 28 जून 2011

उत्तर प्रदेश और कानून का राज


       लगता है कि प्रदेश में चल रही व्यापक अराजकता को संज्ञान में लेते हुए माया सरकार ने कुछ करने की सोच ली है इस सम्बन्ध में सरकार की तरफ से पूरे प्रदेश को नयी प्रशासनिक प्रशासनिक व्यवस्था के तहत पूर्वी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में बांटा गया है. यह सही है कि काम काज की अधिकता के कारण बहुत बार ऐसा हो जाता है कि जिन मामलों पर पुलिस को ध्यान देना चाहिए वह उन पर भी ध्यान नहीं दे पाती है जिसका असर सामान्य प्रशासन पर साफ़ तौर पर दिखाई देने लगता है. अभी तक जो भी व्यवस्था प्रदेश में चली आ रही है उससे भी कोई बड़ी समस्या तो नहीं आ रही थी पर शायद शासन की मंशा जनता को कुछ दिखाने की भी है कि वह हर स्तर पर इसे सुधारने में प्रयासरत हैं. कानून चाहे जितने कड़े बना लिए जाएँ पर जब तक उनका अनुपालन सही ढंग से नहीं किया जायेगा तब तक कुछ भी ठीक नहीं रह सकता है और जनहित से जुड़े मुद्दों को देखने और समझने की आवश्यकता होती है उसमें कानून की बहुत कम ज़रुरत पड़ती है.
    यह सही है कि इतने बड़े प्रदेश में सारा कुछ एक जगह से नहीं हो सकता है पर जब सरकार खुद ही हर मामले में फैसला मुख्यमंत्री के स्तर से करने में विश्वास रखती है तो पता नहीं कितनी परियोजनाएं और कितने अति आवश्यक काम उनकी व्यस्तता के कारण ही लंबित रह जाया करते हैं ? माया सरकार ने पूरी कार्यपालिका और विधायिका को केवल एक जगह से संचालित करने का मन बना रखा है जिससे पूरा मंत्रिमंडल और पूरा सचिवालय किसी भी स्तर पर कोई भी फैसला नहीं ले सकता है जबकि आम तौर पर बड़े नीतिगत फैसलों को छोड़कर मंत्रियों को काम काज की पूरी छूट मिलनी चाहिए जिससे वे पूरे प्रदेश के समग्र विकास की तरफ ध्यान दे सकें. बिलकुल नयी नीति बनाते समय या फिर नीतियों में संशोधन के समय कैबिनेट की मंज़ूरी आवश्यक होती है तो उससे इसका अनुमोदन करा देना चाहिए जिससे सामान्य प्रशासनिक काम आसानी से चलता रहे पर एक केंद्र से साड़ी व्यवस्था संचालित होने के कारण ही प्रदेश को यह दिन देखने पड़ रहे हैं.
  पूरे देश में अगर मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों के हकों के बारे में कोई सूचना एकत्र की जाये तो संभवतः उत्तर प्रदेश के मंत्री /अधिकारी ही ऐसे मिलेगें जो पिछले ४ सालों में अपने ही मंत्रालय में अपने स्तर से कोई भी फ़ैसला ले पाए हों ? वहां पर हर बात के लिए मुख्यमंत्री से पूछना ज़रूरी है या फिर ऐसा कहा जा सकता है कि जितना मुख्यमंत्री के स्तर से आदेश हो उतना ही बोलना और करना है. जब इतने बड़े प्रदेश में पूरी व्यवस्था का इस तरह से अपहरण कर लिया गया हो तो किसी से भी काम के लिए उत्तरदायी होने या न होने का सवाल किससे पूछा जाये ?  सबसे बड़ी बात जो इस सरकार को करनी ही होगी कि पुलिस और प्रशासनिक कामों में नेताओं का दखल बिलकुल ही बंद करना होगा क्योंकि जब तक सत्ता पक्ष इस तरह से हावी रहेगा तब तक निष्पक्षता की बातें सोचना ही बेमानी है. पर लगता है कि एक व्यक्ति पर आधारित यह पार्टी किसी अन्य पर भरोसा नहीं कर सकती है जिससे पूरे प्रदेश में सब कुछ चौपट होता जा रहा है. अधिकारियों द्वारा नेताओं की चरण वंदना के कारण भी आज सब कुछ बिगड़ता जा रहा है. अगर मायावती वास्तव में कुछ सही करना चाहती हैं तो इस दखल को बंद कर दे वरना सत्ता विरोधी लहर के चलते आधे से अधिक विधायक तो वैसे भी अगली बार विधान सभा तक नहीं पहुँचने वाले हैं तब सरकार का क्या होगा ?
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