मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 29 जून 2011

पाक की स्वीकारोक्ति

      पाक के रक्षा मंत्री चौधरी अहमद मुख़्तार ने जिस तरह से इस सच्चाई को स्वीकार किया है कि भारत के मुकाबले पाक की सेना कहीं भी नहीं टिकती है उससे यही लगता है कि भले ही दिखने के लिए ही सही पर पाक कहीं से इस बात को अन्दर तक समझता भी है. हो सकता है कि भारत के साथ अभी हुई विदेश सचिव स्तर की बातचीत के बाद माहौल को सुधारने के लिए उन्होंने ऐसा कहा हो ? पर यह एक ऐसी सच्चाई है जिसको पाक जितनी जल्दी समझ लेगा उसका और इस क्षेत्र का उतनी जल्दी ही भला हो जायेगा. आज पूरी दुनिया में इस्लामी आतंकियों को किसी भी देश की सरकार द्वारा अगर सबसे ज्यादा सहयोग किया जा रहा है तो वह पाक ही है और साथ ही सबसे बड़ी विडंबना यह भी है कि वह आतंक के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में उसका एक सहयोगी भी है. पाक की सेना और वहां के चंद नेताओं की बातों को अगर छोड़ दिया जाए तो एक बात तो सभी जानते हैं कि भारत के सामने आज पाक कहीं भी नहीं ठहरता है फिर भी कुछ लोग भारत से आखिरी सांस तक लड़ने का मंसूबा पाले बैठे हैं.
          अहमद मुख़्तार ने अपनी बात को रखने के लिए जिस तरह से भारत के आर्थिक स्वरुप का बखान किया उससे तो यही लगता है कि हो सकता है कि पाक सरकार आम जनता के बीच में फैला यह भ्रम तोड़ने की कोशिश कर रही हो कि पाक भारत को २४ घंटे में धूल चटा सकता है जैसा कि अभी तक वहां की सेना और चंद नेता कहते रहते हैं ? यह सही है कि दोनों देशों की सोच और नेतृत्व में भिन्नता के कारण ही एक साथ आज़ाद हुए देशों के बीच आज विकास की इतनी बड़ी खाई खुद चुकी है ? पाक ने जहाँ हमेशा भारत को नीचा दिखाने की सोची वहीं भारत ने पाक द्वारा थोपे गए युद्धों को छोड़कर अपनी तरफ से पाक से कोई उलझाव पैदा ही नहीं किया और पाक द्वारा भेजे जा रहे आतंकियों की कमर तोड़ने की अपने स्तर से पूरी कोशिश की. आज भारत की छवि दुनिया में एक ज़िम्मेदार राष्ट्र की बन चुकी है जबकि पाक आज भी अपने हर काम के लिए अमेरिका और बाहर से आयातित वस्तुओं पर निर्भर है. भारत में तो चीन की कंपनियों को स्थानीय लोगों द्वारा कड़ी चुनौती दी जा रही है पर पाक के पास ऐसे संसाधन भी नहीं हैं जिससे चीन पाक के बाज़ारों का दोहन करने में लगा हुआ है.
      अब भी समय है कि पाक आतंक को पोषित करने की नीति का पूरी तरह से त्याग कर दे क्योंकि जब तक वह इस तरह की दोगली बातों पर जुटा रहेगा तब तक किसी भी सार्थक और प्रभावी बातचीत की आशा नहीं की जा सकती है. भारत ने कई बार पाक से नए सिरे से बात करने की कोशिशें भी की हैं पर पाक अपने यहाँ फैले आतंकी ढांचे में इतना घिर चुका है कि वह अब चाहकर भी इन लोगों से पीछा नहीं छुड़ा पा रहा है ? अब पाक की सरकार को यह तय करना है कि वह कैसे आगे के सुरक्षित और मज़बूत पाकिस्तान की नींव को मज़बूत करना चाहती है ? क्योंकि जब तक वहां के आम लोगों की समस्याओं को कम नहीं किया जा सकेगा तब तक गरीबी और धर्म के नाम पर डराए गए लोग हमेशा की तरह आतंकियों की हर बात पर अपनी हामी भरते नज़र आयेंगें और पाक के मासूम बच्चों को आतंकी बनाकर ज़न्नत के सपने दिखाकर इसी तरह से जिहाद में लगाया जाता रहेगा ? अब पाक सरकार के कुछ बोलने का समय ख़त्म हो चुका है अगर वह वास्तव में कुछ करना चाहती है तो अपने यहाँ से आतंकी ढांचे को पूरी तरह से उखाड़ फेंकें वरना दूसरों को ज़न्नत दिखाते दिखाते पाक खुद पूरी तरह से दोज़ख बन जायेगा...   
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