लगता है कि विभिन्न स्टारों पर अलग अलग मोर्चे खोलने के बाद अब सिविल सोसाइटी ने यह तय कर लिया है कि आने वाले लोकपाल बिल को संघर्ष के चलते लटकाए रखने के स्थान पर अब सभी से बातचीत फिर से शुरू की जाये जिससे देश के हित में यह बिल अच्छी तरह से और कड़े स्वरुप में सामने आ सके. मनमोहन सिंह ने अपने संवाददाता सम्मलेन में जिस तरस से साफ़ तौर पर कहा कि उन्हें लोकपाल के दायरे में आने में कोई परेशानी नहीं है बस आवश्यकता है कि सभी को इस मसले पर सहमत किया जा सके. उन्होंने अपनी व्यक्तिगत राय में कहा कि उन्हें लोकपाल के दायरे में आने में कोई आपत्ति नहीं है पर पार्टी और सहयोगी दलों का यह मानना है कि इससे आने वाले समय में अस्थिरता पैदा होगी. मनमोहन को गूंगा बताने वालों ने उनके एक बयान के बाद ही यह कहना शुरू कर दिया है कि अब इस मसले पर सोनिया गाँधी से बात की जाएगी और उन्हें भी इस बात के लिए मनाया जायेगा. बात यहाँ पर मनाने की है ही नहीं क्योंकि जिस तरह से अच्छे माहौल में अन्ना की टीम की बात सरकार से चल रही थी उस पूरे मामले में बाबा रामदेव ने आकर सारा खेल बिगाड़ दिया और आने वाले समय में कोई ऐसा फिर से नहीं करेगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है.
अभी तक राजनेताओं के साथ कोई बात न करने पर तय अपने रुख़ से हटकर अन्ना हजारे की जिस तरह से सभी दलों के नेताओं के साथ जो बैठकें शुरू हुई हैं वास्तव में वे ड्राफ्ट बनाना शुरू करने से पहले ही होनी चाहिए थीं क्योंकि जब वे देश के लिए सोचने की बात करते हैं तो बात देश की ही होनी चाहिए यह सही है कि बाबा रामदेव के मसले को सरकार ने आनन फानन में ही निपटा लिया जिससे लोगों में यह संदेश गया कि यह सरकार लोकपाल और भ्रष्टाचार के मसले पर इन लोगों की विरोधी है जबकि सच्चाई यह है कि अगर मनमोहन सिंह की जगह पर कोई और होता तो शायद वह बात चीत को इस तरह से समय सीमा में बांधने का कोई भी प्रयास नहीं करता और एक बार फिर से संसद में बहस की लम्बी चौड़ी बातें की जातीं और इतने वर्षों से लटक रहा यह बिल भी महिला आरक्षण बिल की तरह केवल राजनैतिक दांव पेंच से बढ़कर कुछ भी नहीं होता. आज आवश्यकता है कि पूरे समाज के लोग इस तरह के प्रयास अपने स्तर से शुरू कर दें जिससे आने वाले समय में क्या होने वाला है इसके बारे में सभी को सारा कुछ पता रहे.
अब सरकार को भी यह चाहिए कि वह अपने सहयोगियों द्वारा उठाई जाने वाली समस्याओं के बारे में सोचना शुरू करे क्योंकि सरकार को उनकी आवश्यकता है फिर भी ये दल किस तरह से सरकार पर दबाव डालना चाहते हैं और सरकार किस हद तक दबाव झेलना चाहती है यह अब एक बार फिर से मनमोहन ही तय करेंगें. पी एम को कमज़ोर मानने वाले अन्ना ने भी आख़िर में उनकी मज़बूती को मान ही लिया और यह कहकर उनसे आशा की कि वे इस मसले पर परमाणु विधेयक जितना दृढ रुख़ बनायें जिससे देश का हित हो सके. पूरा देश जानता है कि मनमोहन सिंह की सोच हमेशा से देश हित की रही है और कई बार उन्होंने दबावों की राजनीति में भी अपने पर आये दबाव को बहुत आसानी से हटा भी दिया है. अब इस मसले पर बात चीत के दरवाज़े अगर फिर से खुल रहे हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए और देश में केवल अब ऐसी बातें नहीं होनी चाहिए जिससे लोगों को यह लगने लगे कि कहीं न कहीं कुछ बड़ा गड़बड़ चल रहा है ? अब समय है कि मनमोहन की इस पहल का सार्थक उत्तर दिया जाये और संघर्ष की राह को छोड़कर विमर्श शुरू किया जाये जिससे देश में एक कड़ा और प्रभावी लोकपाल बैठ सके. अभी तक राजनेताओं के साथ कोई बात न करने पर तय अपने रुख़ से हटकर अन्ना हजारे की जिस तरह से सभी दलों के नेताओं के साथ जो बैठकें शुरू हुई हैं वास्तव में वे ड्राफ्ट बनाना शुरू करने से पहले ही होनी चाहिए थीं क्योंकि जब वे देश के लिए सोचने की बात करते हैं तो बात देश की ही होनी चाहिए यह सही है कि बाबा रामदेव के मसले को सरकार ने आनन फानन में ही निपटा लिया जिससे लोगों में यह संदेश गया कि यह सरकार लोकपाल और भ्रष्टाचार के मसले पर इन लोगों की विरोधी है जबकि सच्चाई यह है कि अगर मनमोहन सिंह की जगह पर कोई और होता तो शायद वह बात चीत को इस तरह से समय सीमा में बांधने का कोई भी प्रयास नहीं करता और एक बार फिर से संसद में बहस की लम्बी चौड़ी बातें की जातीं और इतने वर्षों से लटक रहा यह बिल भी महिला आरक्षण बिल की तरह केवल राजनैतिक दांव पेंच से बढ़कर कुछ भी नहीं होता. आज आवश्यकता है कि पूरे समाज के लोग इस तरह के प्रयास अपने स्तर से शुरू कर दें जिससे आने वाले समय में क्या होने वाला है इसके बारे में सभी को सारा कुछ पता रहे.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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