हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी रेल बजट में घोषित की गयी नयी ट्रेनों को चलाने और पुरानी के मार्गों में विस्तार के साथ ही नयी रेल समय सारिणी लागू होने का समय आज से शुरू हो गया है. यह ऐसे स्मामी पर हो रहा है जब रेल विभाग के पास एक पूर्ण कालिक मंत्री भी नहीं है और इसे तृणमूल के असमंजस के कारण अभी मनमोहन सिंह के नियंत्रण में रखा गया है. देश में जिस तरह से रेल के परिचालन को सँभालने के लिए इसके विभिन्न क्षेत्रों में बांटा गया है ठीक उसी तर्ज़ पर अब समय आ गया है कि पूरे रेल विभाग को कम से कम ५ राज्य मंत्री भी दिए जाएँ क्योंकि इस मंत्रालय का जितना बड़ा आकार है उसे देखते हुए दो या तीन लोगों द्वारा इसके साथ न्याय नहीं किया जा सकता है. हर सरकार और हर रेल मंत्री अपने महत्त्व को दिखने के लिए हमेशा से ही अपने प्रभाव के राज्यों में नयी रेल परियोजनाओं पर काम शुरू करवा देते हैं जबकि वास्तव में उसकी आवश्यकता नहीं होती है. इस तरह के बचकाने प्रयासोंको अब तुरंत प्रभाव से बंद कर देना चाहिए क्योंकि इससे रेलवे को बहुत राजस्व हानी होती है.
अब समय आ गया है कि राजनेता अपनी ज़रूरतों को रेलवे बोर्ड तक पहुँचाने का काम करना शुरू करें और उनमें से कितनी वास्तव में रेल हित में शुरू की जा सकती है इस बात का फैसला केवल तकनीकी क्षमता में माहिर लोगों को ही करने देना चाहिए. देश में आज भी रेल के बिना यातायात की परिकल्पना नहीं की जा सकती है फिर भी अभी तक इसे पूरी तरह से सुधारने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किये जा सके हैं. अगर इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी किया जा सकता है इस बात को दिल्ली मेट्रो ने पूरी तरह से साबित कर दिया है आज पूरी दुनिया में दिल्ली मेट्रो ने अपनी जो पहचान बनाई है उसे देखते हुए पूरे रेल विभाग को भी झकझोर कर जगाने की आवश्यकता है. आम तौर पर यह देखा गया है कि परिचालन लागत अधिक होने के बावजूद भी रेल मंत्रियों के दबाव में कुछ जगहों पर खुले आम रेल के हितों को चोट पहुंचाई जाती है और जहाँ से रेलवे को अधिक राजस्व मिल सकता है वह क्षेत्र खाली रह जाता है. इस मसले पर अब गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है और रेलवे बोर्ड को अब नेताओं की उल जलूल मांगों पर कान देना बंद करना ही होगा क्योंकि नेता तो आज हैं और कल नहीं पर कर्मचारियों को तो अपनी पूरी जिंदगी इसी जगह काटनी है.
आज जिस तरह से पेट्रोलियम पदार्थों के दाम रोज़ ही बढ़ते जा रहे हैं उसे देखते हुए अब हमारे देश को भी सार्वजानिक परिवहन व्यवस्था पर पूरी तरह से ध्यान देना ही होगा क्योंकि जब तक परिवहन के साधन सुलभ और आरामदायक नहीं होंगें तब तक कोई भी उनका उपयोग नहीं करना चाहेगा ? दिल्ली में मेट्रो ने यह बात साबित कर दी है कि अगर विकल्प हों तो लोग उसे आसानी से अपना लेते हैं. रेलवे को अब लोक लुभावने रुख को छोड़कर परिचालन सम्बन्धी खर्चों को पूरा करने के लिए अपने किराये में अविलम्ब बढ़ोत्तरी करनी चाहिए क्योंकि पिछले ७ वर्षों में किराया बढ़ने के स्थान पर घटा ही है और रेलवे को अपने परिचालन पर पहले की तुलना में अधिक व्यय करना पड़ रहा है. आज के समय में उपलब्ध तकनीक का पूरी तरह से प्रयोग करने से रेल अपने राजस्व में बढ़ोत्तरी कर सकती है जो इसके दीर्घकालिक हितों के लिए बहुत अच्छा होगा. जब तक रेल के पास अपने परिचालन के बाद पैसे बचेंगें ही नहीं तब तक किस मद से और कितने दिनों तक वह विकास और संरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दे पायेगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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