मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 2 जुलाई 2011

४० हज़ार रु० महीना और आतंक

      लगता है कि पाक की सरकार ने अपनी ग़लतियों से कुछ भी न सीखने की क़सम खा रखी है तभी जो ख़बरें वहां के समाचार पत्रों को पता चल जाती हैं उन्हें जानने में सरकार को कोई दिलचस्पी नहीं रहती है. हाल में ही जिस तरह से उर्दू अख़बार जंग ने जिस तरह से खैबर-पख्तूनख्वा प्रान्त के बारे में यह खुलासा किया है कि वहां पर आतंकी संगठन बेरोजगार युवाओं को ४० हज़ार रु० महीने का प्रलोभन देकर अपना आतंकी  ढांचा तैयार करने में लगे हुए हैं ? पत्र ने जिस तरह से इस पूरे मामले में यह लिखा है क्या उसके बाद भी पाक सरकार को लगता है कि पूरे पाक में सारा कुछ ठीक चल रहा है. जिस तरह से पाक में बेरोज़गारी बढ़ रही है और लोगों के सामने मंहगाई का मुकाबला करने के लिए कुछ भी नहीं हैं तो ऐसे में अगर वे इस आसान राह को चुन रहे हैं तो इसमें कोई क्या कर सकता है ? इस तरह से पाक सरकार अपने यहाँ की आने वाली पूरी पीढ़ी को ख़तरे में डालने के साथ ही पाकिस्तान का भविष्य भी ख़तरे में डालने में लगे हुए हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पाक पूरी तरह से इन आतंकियों के चंगुल में होगा. 
    आज जिस तरह से पूरी दुनिया यह जान चुकी है कि आतंक की असली दुकान पाक ने ही लगा रखी है फिर भी कोई इस मामले पर बोलने को तैयार नहीं होता है. पाक में तो चुप रहना मजबूरी हो सकती है पर पश्चिमी देशों की इस मामले पर चुप्पी संदेह को जन्म देती है. जब सभी जानते हैं कि पाक इस तरह की गतिविधियों को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है तो फिर क्यों पाक को अपने सहयोगी के रूप में ये सभी देश स्वीकार करने में भी नहीं चूक रहे हैं ? आख़िर कितनी लाशों का और सबूत इन देशों को चाहिए होगा जिससे पूरी दुनिया में इस तरह के नेटवर्क का सफ़ाया किया जा सके ? लगता है कि इन सभी देशों को पाकिस्तान के हाथ अपने हथियार बेचने में ही दिलचस्पी है क्योंकि शांत और स्थिर पर पाक उनके लिए कोई व्यापारिक हित पैदा नहीं कर पायेगा ? आज वे अपने हथियार पाक को बेचते हैं जो धीरे धीरे किसी न किसी माध्यम से आतंकियों तक पहुँचते रहते हैं जिससे पाक सेना इन आतंकियों को प्रशिक्षण देकर पूरी दुनिया में आतंक का व्यापार करने के लिए भेज देती है. जिस तरह से आतंक का अर्थ शास्त्र भी विकसित होता जा रहा है उससे यही लगता है कि अब यह सेना जैसा हुआ जा रहा है पहले जहाँ आतंकियों को बनाने के लिए ज़न्नत के सपने दिखाए जाते थे अब आर्थिक माहौल में पैसे ने उसकी जगह ले ली है.
     इन सभी मामलों से भारत को बहुत दिक्कत हो सकती है क्योंकि जब कभी भी ये आतंकी दुनिया के किसी अन्य देश में जाकर अपने नेटवर्क का उपयोग नहीं कर पायेंगें तो वे किसी न किसी तरह से जम्मू और कश्मीर में अपनी आतंकी घटनाओं में बढ़ोत्तरी करने में भी नहीं चूकेंगें. भारत पाक का पड़ोसी देश है और कश्मीर घाटी के कारण दोनों देशों के बीच में हमेशा से ही तनाव बना रहता है. जिस तरह से पाक में आतंकी अपने नेटवर्क को फ़ैलाने में लगे हुए हैं तो वह दिन दूर नहीं जब पाक पर ही आतंकियों का कब्ज़ा हो जाये ? हो सकता है कि पाक सरकार से अपने हितों को अधूरा मानकर पश्चिमी देश ही एक दिन आतंकियों को ही पाक सरकार के ख़िलाफ़ हर तरह की सहायता देकर वहां के घातक हथियारों को इन आतंकियों तक पंहुचाने का इंतज़ाम ख़ुद ही कर दें ? आज समय है कि इन ख़तरों पर पूरी तरह से विचार किया जाये और आने वाले समय के लिए कोई ठोस कार्य योजना भारत के पास हो क्योंकि जब तक पाक की बागडोर किसी भी तरह की सरकार के हाथ में है तब तक तो सारा कुछ ठीक रह सकता है पर जिस दिन भी आतंकियों के हाथ वहां की बागडोर आएगी वे सबसे पहले परमाणु हथियारों का प्रयोग करके कुछ देशों को सबक सिखाना चाहेंगें. भारत को अब इन खतरों के बारे में गंभीरता से सोचना ही होगा.     
 
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