मंगलवार को राहुल गाँधी के अचानक एक बार फिर से भट्टा परसौल गाँव पहुँचने के बाद से फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल सा आ गया है अभी तक अन्य दल जिस तरह से राहुल की इस तरह की किसी भी गतिविधि को महज़ नौटंकी बताते नहीं थकते थे अब उनके माथे पर भी चिंता की लकीरें उनकी उलझनों को बयान करने से नहीं चूक रही है. राहुल ने जिस तरह से गाँव में पहुंचकर लोगों से मिलना शुरू किया और बाद में यह कहा कि वे इसी तरह पदयात्रा करते हुए अलीगढ़ तक जायेंगें और किसानों की वास्तविक समस्या को समझने का प्रयास करेंगें ? अच्छा ही है कि कांग्रेस द्वारा भविष्य में पीएम पद के उम्मीदवार और इसी बात के लिए विपक्षी दलों की आलोचना झेलने वाले राहुल भले ही नौटंकी के तहत ही सही पर आम किसानों के बीच तो हैं ही ? इस बात से भले ही राजनीति कितनी भी उबल जाये पर एक बात तो तय ही है कि अब इन किसानों के बारे में कुछ भी सोचने से पहले सरकार को दस बार सोचना पड़ेगा.
अगर देश के पीएम के तौर पर तैयारी कर रहे राहुल इस तरह से जनता के बीच में जाते हैं तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसका होने वाला है ? ज़ाहिर है कि जो भी नुकसान होगा वह सबसे पहले माया सरकार का ही होगा फिर अन्य दल भी इसी पंक्ति में आते चले जायेंगें. माया सरकार की तरह से इसे महज़ एक नौटंकी कहा गया है पर हैरत की बात यह है कि सबसे बेचैनी भरी प्रतिक्रिया भाजपा की तरफ से आई है क्योंकि शायद बीच में काफ़ी दिनों तक सत्ता से जुड़े रहने कि कारण भाजपा में भी वही राजनैतिक पूर्वाग्रह आ गए हैं जो कभी अन्य दलों में हुआ करते थे ? जिनके चलते ही आज वह उत्तर प्रदेश में हाशिये पर चली गयी है. एक समय था जब भाजपा किसी भी तरह के ज़मीनी आन्दोलन को पूरी तेज़ी से चलाने का माद्दा रखती थी पर आज सत्ता के करीब पहुँच चुके और सत्ता का सुख भोग चुके नेताओं को यह लगता है कि अगर राहुल जैसे नेता ने गलियों और गाँवों की धूल छाननी शुरू कर दी तो कल को उन पर भी इस बात का दबाव केंद्रीय नेतृत्व द्वारा डाला जाने लगेगा कि जब इतने आराम से पले बढ़े राहुल ऐसा कर सकते हैं तो देश से जुड़े होने का दावा करने वाले दल के लोगों के लिए ऐसा करने में क्या परेशानी है ?
भले ही यह राहुल की नौटंकी ही हो पर इससे आम किसानों की बात तो राष्ट्रीय मीडिया और पूरे देश की जनता के सामने तक पहुँचाने में बहुत बड़ी मदद मिलने वाली है क्योंकि अभी तक इन किसानों को विकास विरोधी बताया जा रहा था जबकि इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कह रखा है कि देश में कहीं पर भी उपजाऊ ज़मीन का इस तरह से व्यावसायिक हितों के लिए प्रयोग न किया जाये. अब इस बारे में सारे दलों को एक बार फिर से विचार करना ही होगा कि आख़िर किस तरह से भूमि अधिग्रहण किया जाये जिससे लोगों और संसाधनों की कम हानि हो और जो विकास से जुड़े काम कराये जाने की तैयारी की जा रही है वह भी किसी अनावश्यक विवाद में न उलझ कर रह जाये ? किसी भी राजनैतिक दल से देश बहुत ऊंचा स्थान रखता है और किसी को भी इसकी प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं है. विकास होना चाहिए पर इस तरह से हर जगह खून बहाकर और प्रदर्शनकारियों पर लाठी चलाकर किये जाने वाले विकास को क्या कहा जाये ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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