केरल के श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर में अकूत ख़ज़ाने के बाद से इस बात की अटकलें तेज़ हो गयी हैं कि आने वाले समय में हो सकता है कि यहाँ का प्रबंधन पूरी तरह से सरकार के हाथों में चला जाये. अभी तक जिस तरह से यहाँ पर तहखानों में रखी बहुमूल्य सम्पदा का पता चला है उससे यह बात एक बार फिर से साबित होती है कि भारत किसी समय वास्तव में सोने की चिड़िया था और देश के राजाओं को मंदिरों पर बहुत भरोसा था जिसके चलते वे एक निश्चित संपत्ति वहां के प्रबंधन के लिए छोड़ा करते थे. अब इस बात पर विवाद उठाया जा रहा है कि इस संपत्ति का क्या किया जाये क्योंकि जितनी बड़ी मात्रा में यह मिली है उससे इसकी सुरक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्न लग जाता है हालाँकि इस खुलासे के बाद से सरकार ने यहाँ पर सुरक्षा के विशेष प्रबंध कर दिए हैं फिर भी अब इस संपत्ति के सही देखरेख और उचित प्रबंधन के बारे में ठोस नीति बनाये जाने की आवश्यकता है. जनता की भावनाओं को समझते हुए केरल सरकार एक बार इस पर नियंत्रण न करने के बारे में कह भी चुकी है.
देश में मंदिर प्रबंधन की सबसे अच्छी मिसाल जम्मू कश्मीर में स्थित माता वैष्णो देवी स्थापना बोर्ड में देखी जा सकती है जहाँ पर सरकारी तंत्र का बहुत अच्छे से धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि अन्य जगहों पर मंदिर का प्रबंधन ठीक नहीं हो रहा है पर देश में मंदिरों को जिस तरह से काम करना चाहिए उतना नहीं हो प् रहा है. देश के आम श्रद्धालु जितना धन और चढ़ावा किसी भी मंदिर को देते हैं उसके पीछे उसकी मंशा धर्म लाभ के साथ इन देवालयों के खर्च चलाने और जनहित के काम किये जाने की होती है. दान वहीँ श्रेष्ठ होता है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो सके पर देश के अधिकांश बड़े धर्म स्थलों पर इसी तरह के प्रबंधन के लिए आम श्रद्धालु तरस जाते हैं. अगर मंदिर के प्रबंधन को लोक कल्याण से जुड़ा हुआ माना जाये तो चंद बड़े नाम लेने के बाद हम यह नहीं कह सकते कि अन्य जगहों पर भी इतना अच्छा प्रबंध है.
देश के हर मामले में दख़ल देने का सरकार को पूरा हक़ है पर इस तरह से बड़ी संपत्ति रखने वाले मंदिरों पर ही सरकार की नज़र क्यों जाती है ? वैसे भी उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण में मंदिरों को बेहतर प्रबंधन के लिए ही जाना जाता है तिरुपति बालाजी और सिद्धि विनायक जैसे मंदिरों का नाम इस बारे में बड़े आदर के साथ लिया जाता है पर उत्तर भारत में कहीं पर भी मंदिरों का ऐसा प्रबंधन देखने को नहीं मिलता है ? आज पद्मनाभ स्वामी मंदिर की संपत्ति की देखरेख की बात की जा रही है तो यह कहना भी आवश्यक होगा कि मंदिर प्रबंधन में त्रावणकोर राज्य के उत्तराधिकारियों के साथ मिलकर पूर्व न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों कि मिली जुली समिति बनायीं जाये जिसमें पूरी तरह से पारदर्शिता रखी जाये और समय आने पर इस धन के बारे में केरल उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित किसी व्यक्ति की अध्यक्षता में इसका सञ्चालन किया जाये. मंदिर के ख़ज़ाने में बंद पड़े धन के स्थान पर इससे जनहित के ठोस कामों के बारे में कुछ शुरू किया जाये जिससे आम लोगों तक मंदिर की सेवाएं पहुँच सकें.
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सार्थक और सटीक बातें आपने कही है. शनि शिगनापुर के मंदिर में जब आप दान देते है तो आपसे यह पूछा जाता है कि आप इस पैसे को किस क्षेत्र में देना चाहते है .अमीर मंदिरों या धार्मिक ट्रस्टों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे धन को लोकहित में खर्च करें .
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