मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

आतंक कब तक

देश में मुंबई पर एक बार फिर से आतंकी हमलों के बाद से यह बातें जोर पकड़ने लगी हैं कि आख़िर हमारा देश इतनी आसानी से आतंकियों के निशाने पर कैसे रहता है ? इसके पीछे कोई एक कारण नहीं कहा जा सकता है आज के समय में जिस तरह से मुंबई के माफियाओं और आतंकियों में सांठ-गांठ होने लगी है उससे तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है. मुंबई ही हर बार केवल इस लोए निशाने पर रहा करती है क्योंकि देश की आर्थिक राजधानी पर चोट कर के आतंकी पूरी दुनिया में यह संदेश भी देना चाहते हैं कि भारत में कहीं भी कुछ भी सुरक्षित नहीं है. चूंकि आतंकियों को हमेशा ही पूरा समर्थन पाक से मिलता रहता है तो आतंकी भी पाक के कहने से भारत की आत्मा पर चोट करने से नहीं चूकते हैं. इस सबके लिए हमें खुद ही आत्म मंथन करने की आवश्यकता और समय अब आ गया है क्योंकि अपनी गलतियों को हम दूसरों पर नहीं थोप सकते हैं. अगर हमारा तंत्र पूरी तरह से सड़ गया है तो इसके लिए हम पाकिस्तान को कैसे ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं हाँ पर अब भी चेतने से आगे आने वाले समय के लिए हम अपने को सुरक्षित करने के प्रयास तो कर ही सकते हैं.  
     कश्मीर को लेकर पाक पूरी इस्लामी दुनिया में जिस तरह का भ्रम फैलाये रहता है उससे अन्य देशों के मुसलमानों को लगता है कि भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ना बिलकुल सही है पर जिस तरह के हालात पूरे पाक में हर समय रहते हैं हमारा कश्मीर उससे लाख गुना ज्यादा खुशहाल और सुरक्षित है. पाक ने २ दशकों तक कश्मीरियों को पूरी तरह से बरगलाये रखा और उनके विकास के पहिये को थाम दिया. पूरी दुनिया में इस्लामी मुल्कों से जिहाद के नाम पर आने वाले लोग केवल इस्लाम पर अत्याचार के पाकिस्तानी दुष्प्रचार के नाम पर ही भारत के खिलाफ कुछ करने की ठान लेते हैं जिसका भारत के पास अभी तक कोई तोड़ नहीं है. यह तो भारत में आतंकियों की दिलचस्पी का एक बहुत बड़ा कारण हुआ पर जिस तरह से हमारी पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का राजनैतिक करण कुछ वर्षों से किया जा रहा है उससे भी उनमें देश के लिए कुछ करने से ज्यादा शायद अपनी कुर्सी बचाने और भविष्य में अच्छी कुर्सी हथियाने की प्रवृत्ति भी बढ़ने से रोज़ का काम काज प्रभावित होता जा रहा है. जिन पर देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है वे भी राजनेताओं की तरह से लामबंदी करने में जुटे हुए हैं तो वे अपने पद के साथ किस तरह से न्याय कर पायेंगें ?
   किसी भी ऐसे हमले के बाद हम पूरी तरह से सतर्क हो जाते हैं पर यही सतर्कता अगर सेना सीमा पर हमेशा बनाये रख सकती है तो फिर नागरिकों के साथ मिलकर हमारी पुलिस क्यों नहीं ऐसे काम कर सकती है ? आज सबसे बड़ी आवश्यकता पुलिस सुधार की है क्योंकि कम वेतन इ साथ २४ घंटे काम करने वाले पुलिस वाले आख़िर अपने खर्च कैसे चल पायेंगें इसका कोई भी जवाब सरकार के पास नहीं होता है. आज पुलिस को पूरी तरह से अच्छे वेतन देने के बारे में विचार किया जाना चाहिए लोग पुलिस के भ्रष्टाचारी होने की बातें तो बहुत करते हैं पर उनकी सुविधाओं में सुधार करने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं होता है. सांसदों की निधि बढ़ाये जाने के लिए सरकार के पास पैसे होते हैं पर जब सुरक्षा की बात आती है तो अचानक ही हाथ तंग हो जाता है ? देश में कुकुरमुत्ते की तरह से उगने वाले क्षेत्रीय दल भी केवल अपने स्वार्थ के लिए काम करते है और उनके पास अखिल भारतीय दृष्टि का अभाव हमेशा से ही रहता है जिससे भी क्षेत्रीय दलों की सरकारें अपने हितों से आगे कुछ भी सोच नहीं पाती हैं. अब सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सामूहिक रूप से पुलिस और नागरिकों के पास जानी चाहिए जिससे रोज़मर्रा की जिंदगी में होने वाले अपराधों से लगाकर आतंकी हमलों पर जनता और पुलिस की निगाहें ज़मी रहें और आने वाले समय में इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगायी जा सके. 

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो यही कहेंगे
    अब तो दो चार हाँथ कर लो इन ख़ूनी दरिंदों से ,
    अब बस लाल हो चुका है अमन का यह परचम |

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  2. जय हिंद!
    जब हर धड़कन में बसा है हिन्दुस्तान।
    तो क्यों होते हैं धमाको से परेशान?
    एक मशाल आप भी उठाईये
    आतंक को जड़ से हिलाईये

    यह काम किसी भी इंसान का नही है न किसी जाति या धर्म का ये मानसिक रोगी हैं जो नही जानते बहने वाला खून उनके भाईयों का ही है। मरने वालों मे हिन्दू भी थे तो मुसलमान भी थे।

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