जिस तरह एटीएस ने मुंबई विस्फोटों की जाँच शुरू कर दी है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में कहीं न कहीं से कुछ सुराग उसे अवश्य मिलने वाले हैं क्योंकि शुरू में जिस तरह से लग रहा था कि इस बार आतंकियों ने बहुत सोच समझ कर अपने इस काम को किया था अब उसमें भी कुछ मिलने लगा है. शक की सुई सबसे पहले आई एम् और जेल में बाद इसके मोड्युलों से पूछ ताछ करने के बाद कुछ इशारा कर रही है और इसी पर चलते हुए एटीएस अपनी आगे की रणनीति बन्ने में लगी हुई है. ऐसे मौकों पर मीडिया को जिस तरह से काम करना चाहिए कई बार उसमें वह चूक जाता है और केवल कुछ ख़बरों को सिर्फ सनसनी बनाकर पहले दिखाने के चक्कर में वे महत्वपूर्ण लोगों के भाग जाने का रास्ता भी साफ़ कर देता है. अब समय है कि ऐसे मामलों में अगर मीडिया को कुछ पता भी चले तो उसे सीधे दिखाने के स्थान पर पहले उसे जांच एजेंसियों से बताना चाहिए पर शायद अपनी पीठ थपथपाने के आदी मीडिया के लिए यह करना मुश्किल ही होगा.
ऐसे मौकों पर हमारे राजनेताओं की जो अपरिपक्वता अभी तक सामने आती रही है इस बार फिर से वाही स्थिति बन चुकी है और नेताओं में फ़ालतू की बयानबाज़ी शुरू हो चुकी है जो इस तरह की किसी भी जांच में लगी हुई एजेंसी के ध्यान को बंटाने में काफी हद तक ज़िम्मेदार रहती है क्योंकि मीडिया ऐसे सवाल पूछने लगता है जिससे सारा ध्यान उस तरफ मुड़ने लगता है. आज के समय में इस तरह की बचकानी हरकतें करने से पता नहीं किसी को क्या मिल जाता है पर कानून में ऐसा कुछ अवश्य होना चाहिए कि कोई मामला उस धारा के तहत जाने के बाद आम तौर पर उस पर बयानबाजी बन्द की जाये और ऐसा करने वालों को कुछ महीनों तक जेल की हवा भी खिलाई जाए. ऐसे अवसरों अपर केवल जांच महत्वपूर्ण होती है पर इन नेताओं के बयान कहीं न कहीं से पूरे मामले को और कठिन बनाने में नहीं चूकते हैं. जो जाँच कर रहा है वह काबिल है और उसे इस तरह के सुरागों की कोई ज़रुरत भी नहीं होती है जो नेताओं द्वारा दिए जाते हैं.
देश ने इस तरह की घटनाओं में जो जान माल की हानि आज तक सही है उसको कभी वापस नहीं लाया जा सकता है पर आगे से अपने तंत्र को मज़बूत करके इनकी तीव्रता और संख्या को घटाया तो जा ही सकता है ? देश में कुछ मसले ऐसे भी होने चाहिए जिन पर केवल विशषज्ञों को ही अपनी राय देने की अनुमति हो जिससे फालतू के लोग हर मामलों में अपनी टांग न अड़ा सकें ? अब भी समय है कि एटीएस को अपना काम करने दिया जाए और समय आने पर उसकी रिपोर्ट की प्रतीक्षा भी की जाये. हमारी जांच एजेंसियों की क्षमता पर कोई संदेह नहीं कर सकता है पर पूरे तंत्र द्वारा सजा दिलाये जाने के बाद भी इन आतंकियों को केवल जेल में बंद रखने से आख़िर किसी को क्या हासिल होने वाला है ? अगर इन्हें सजा नहीं देनी है फिर इस तरह की कवायद करने की क्या ज़रुरत है जो कुछ हो गया उस पर चुप होकर बैठ जाना चाहिए और अगर जाँच करवानी है तो उसके नतीजों पर अमल करने की हिम्मत अब नेताओं को जुटानी ही होगी केवल एक दूसरे पर आरोप लगाना आसान ही पर आवश्यकता पड़ने पर कुछ करके सिखाना बहुत मुश्किल ? अब सारा कुछ इन नेताओं पर है जो देश को पीछे धकेलने में लगे हुए हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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