एक हफ्ते के भीतर ही अफ़गानिस्तान में आतंकियों ने राष्ट्रपति हामिद करज़ई
के दो करीबी लोगों की हत्या करके यह संदेश तो दे ही दिया है कि आने वाले
समय में गठबंधन सेनाओं के जाने के बाद फिर से अफ़गानिस्तान किस दिशा में
जाने वाला है ? अभी तक कुछ लोगों को लग रहा था कि तालिबान में शांति के
पक्षधरों से बात करके वहां पर सुरक्षा को और मज़बूत किया जा सकता है पर अब
जिस तरह से आतंकियों ने वहां पर महत्वपूर्ण लोगों को अपना निशाना बनाना
शुरू कर दिया है उसके बाद पहले से ही कमज़ोर पड़ चुकी अफगान सरकार क्या कर
पायेगी ? अफ़गानिस्तान में जिस तरह का भौगोलिक वातावरण है उसको देखते हुए
आतंकियों के लिए वहां पर छिपना बहुत आसान है जिसके कारण बहुत प्रयासों के
बाद सोवियत संघ भी पूरी तरह से अफ़गानिस्तान पर अपना कब्ज़ा बनाये नहीं रख
सका था और आज वही सबसे बड़ी बाधा के रूप में अमेरिका के सामने आ रहा है.
स्थानीय लोग तो इसके बारे में सब कुछ जानते हैं पर बाहर से आये लोगों के
लिए यह स्थिति ही जानलेवा बन जाया करती है.
एक तरफ अमेरिका शांति की बड़ी बड़ी बातें तो करता है पर उसके लिए यह
संभव नहीं है कि वह हर कही गयी बात पर अमल कर पाए ? कहीं पर भी आतंकियों या
इस तरह के विद्रोहियों से बात करने में सबसे बड़ी समस्या यही रहती है कि
आख़िर किस तरह से और किससे बात की जाये क्योंकि ऐसे मामलों में इनका कोई एक
सर्वमान्य प्रतिनिधि होता भी नहीं है जिस पर ये सभी एक मत हो जाएँ जो कि
किसी भी वार्ता के लिए बहुत आवश्यक होता है. इन चरमपंथियों में से किसी एक
के भी बिदक जाने पर वह पूरी शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने की क्षमता
भी रखता है. ऐसी स्थिति में किसी भी वार्ताकार के लिए किसी भी स्तर पर
सुचारू ढंग से प्रभावी बात कैसे संभव हो सकती है ? इस मामले में किसी स्तर
पर सभी गुटों के लिए एक न्यूनतम साझा शर्त लगायी जा सकती है कि अगर वे इस
पर अमल करते हैं तो अमेरिका भी अन्य देशों के साथ मिलकर कितनी रियायत दे
सकता है इसके बाद ही वार्ता में प्रगति की संभावनाएं बन सकती है. पर क्या
अमेरिका भी वास्तव में यह चाहता है कि अफ़गानिस्तान में वास्तविक शांति आ
जाये क्योंकि उसके बाद अमेरिका के पास अफ़गानिस्तान में टिके रहने का कोई
कारण भी तो नहीं बचेगा ?
अब समय है कि अमेरिका पाक को भी इस बात के लिए कैसे भी राज़ी करे क्योंकि
पूरे क्षेत्र में जिस तरह से आतंकियों के पोषण और प्रशिक्षण में पाक पूरे
मनोयोग से लगा हुआ है ऐसे में कहीं से भी वह यह नहीं चाहेगा कि शांति आसानी
से आ जाये क्योंकि तब उसकी रोज़ी रोटी पर ही संकट आ जायेगा. आज जो अमेरिका
क्षेत्र में सुरक्षा के नाम पर अरबों डॉलर खर्च करने में लगा हुआ है अगर
शांति हो गयी तो पाक का यह बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा ? पाक ने आज तक जो
कुछ भी ग़लत किया है आज वह इसे भुगत रहा है पर उच्च सुरक्षा में रहने वाले
नेता और सैन्य अधिकारी आम पाकिस्तानी नागरिक की इस समस्या को समझते हुए भी
उन्हें धर्म की अफीम चटाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं. पाक की
जनता के पास आज अधिकार के नाम पर कुछ भी नहीं है और वो हर बात के लिए सरकार
की मोहताज़ है जबकि सरकार इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने में लगी हुई है.
ऐसी स्थिति में केवल एक तरफ ध्यान देकर ही अमेरिका किस तरह से अफ़गानिस्तान
को सुरक्षित बना पायेगा ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
ओसामा और तालिबान को यूएसएसआर के खि़लाफ़ जंग के मैदान में उतारने वाला और हथियार देने वाला अमेरिका था। यूएसएसआर को अपने देश से बेदख़ल करने के बाद उन्होंने अमेरिका से भी अरब मुल्कों से अपना क़ब्ज़ा हटाने की मांग की। यही मांग अमेरिका की नाराज़गी का कारण बन गई। कल तक प्रिय ओसामा और तालिबान पर उसने आतंकवादी का ठप्पा लगा दिया। इनके संघर्ष में दुनिया भर के कमज़ोर पिस कर रह गए। समय गुज़रा और अमेरिका ने अरबों डालर ख़र्च करके यह सबक़ हासिल किया कि आतंकवादी कहकर मासूमों को मारने समस्या हल होने वाली नहीं है। अमेरिकी हितों को नुक्सान होते देखकर अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 14 तालिबान नेताओं के नाम प्रतिबंध सूची से हटा दिए हैं। आज के अख़बार की अहम ख़बर है यह। इनके घर की खेती है। जिसे चाहते हैं, आतंकवादी घोषित करते हैं। जिसका नाम चाहे सूची में ‘इन‘ कर दिया और जब उसमें अपना नुक्सान नज़र आया तो उसे सूची से ‘आउट‘ कर दिया। अगर आप अपने देश के प्राकृतिक संसाधन इन पश्चिमी देशों को आराम से लूट लेने दें तो फिर आपसे अच्छा कोई भी नहीं है। सऊदी अरब से इसीलिए अमेरिका ख़ुश है और इसीलिए सद्दाम से नाराज़ हुआ और अब चीन और ईरान से भी इसीलिए नाराज़ है। पर्दानशीन औरतों पर जुर्मान आयद करना क्या सांस्कृतिक आतंकवाद नहीं है। लीबिया और अफ़ग़ान शहरियों पर बमबारी करने पर भी लोग अमेरिका को कुछ नहीं कहते लेकिन उनका विरोध करने वालों पर लेख लिखकर ख़ुद को सत्यान्वेषी और तटस्थ सा दिखाने की कोशिश करते हैं।
जवाब देंहटाएंजब भी ज़ुल्म होगा तो फिर उसके खि़लाफ़ आक्रोश के स्वर ज़रूर उभरेंगे और फिर बहुत से हालात पैदा होंगे। अपनी रक्षा में उठा हुआ कमज़ोर का हाथ आतंकवादी का हाथ कह दिया जाता है और ताक़तवर यही काम करता है तो उसे न्याय और शान्ति व्यवस्था की बहाली कह दिया जाता है।
इस पर विचार कीजिए और गवाही सत्य की दीजिए ताकि दुनिया में हरेक को उसका वाजिब हक़ मिले और शांति सचमुच आए।
आतंकवादी कौन और इल्ज़ाम किस पर ? Taliban