केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार आख़िरकार गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर एक स्वायत्तशासी क्षेत्रीय प्रशासन के त्रिस्तरीय फार्मूले पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं जिससे लगता है कि आने वाले समय में इस क्षेत्र में व्यापक शांति आ सकती है पर अभी यह सब कहना अपने आप में बहुत जल्दबाजी होगी क्योंकि १९८८ में एक बार इसी तरह के समझौते के बाद बाद में मामला फिर से बिगड़ गया था. सुभाष घिसिंग के साथ हुए समझौते के बाद इस क्षेत्र में वास्तव में शांति तो आई थी पर घिसिंग की अपनी महत्वकांक्षाएं पूरे आन्दोलन पर भारी पड़ने लगी तो एक बार फिर से विद्रोह सामने आने लगा. किसी भी क्षेत्र के पिछड़ेपन का कारण अधिकतर वहां के शासन में कमी के कारण ही होता है जबकि लोग इसके लिए पूरी शासन व्यवस्था को ज़िम्मेदार बताने से नहीं चूकते हैं ? देश में अधिकांश जगहों पर ऐसा ही हुआ है. जो लोग छोटे राज्यों की मांग करने नहीं थकते हैं उनको यह नहीं दिखाई देता है कि कितने छोटे राज्य वास्तव में तरक्की में बड़े और विकास की पटरी पर चल रहे राज्यों की बराबरी कर पा रहे हैं ?
यह सही है कि देश में कुछ राज्यों की भौगोलिक स्थति ऐसी है कि उन्हें पूरी तरह से विकास की मुख्या धारा में शामिल करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की बहुत आवश्यकता है जो कि आज के हमारे राजनेताओं में लगातार कम होती जा रही है किसी व्यक्ति विशेष की कमी को पूरे तंत्र की असफलता के रूप में नहीं लिया जा सकता है. इस मामले में बिहार और झारखण्ड का नाम लिया जा सकता है कहा यह जाता था कि झारखण्ड बनने के बाद उसका पिछड़ापन दूर हो जायेगा जबकि इतने वर्षों बाद भी कुशासन के कारण आज झारखण्ड की हालत पहले के बिहार से कहीं से भी अच्छी नहीं कही जा सकती है और सिर्फ़ अच्छे शासन के दम पर आज बिहार एक तेज़ी से बढ़ता हुआ प्रदेश बनने के लिए रोज़ ही नए सपनों को पूरा करने में लगा हुआ है. देश और राज्य में कोई भी अच्छी तरह से शासन चला सकता है और कोई भी इसका दुरूपयोग कर सकता है अगर काम करने की इच्छशक्ति बची हो तो पूरे भारत में कुछ किया जा सकता हा और जिन्हें काम नहीं करना है वे केंद्र से झगड़े करते हुए आपसी लड़ाई में जनता को पीसने में कोई कसर नहीं उठाये हुए है.
यह अच्छा ही हुआ है कि ममता बनर्जी ने शुरू से ही गोरखा अन्द्लन के बारे में कुछ सोचा और वे अब इस क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए कुछ् करना चाहती हैं जिसके परिणाम के रूप में यह समझौता होने जा रहा है. दार्जिलिंग का क्षेत्र ऐसा है जो राज्य और देश को पर्यटन और चाय से बहुत राजस्व दिला सकता है पर जब वहां पर इस तरह से अस्थिरता बनी रहती है तो पर्यटक भी वहां जाने से कतराते रहते हैं जिस कारण से राजस्व हानि के साथ लोगोंके लिए जीना और भी कठिन हो जाता है. अच्छा हो कि जो भी समझौता हो उस पर कानून के अनुसार चला जाये और किसी भी व्यक्ति को समाज और राष्ट्र से बड़ा मानने की कोशिश न की जाये क्योंकि जब इस तरह की बातें की जाने लगेंगीं तभी कहीं से फिर से असंतोष के स्वर से सामने आने लगेंगें जो कि इस क्षेत्र के लिए कहीं से भी ठीक नहीं होंगें और यहाँ का भविष्य एक बार फिर से अन्धकार की तरफ चला जायेगा. जो भी समझौता हो रहा है उसका अक्षरशः पालन करना अब सभी पक्षों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिससे अब वहां पर वास्तव में शांति आ जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बहुत सटीक !!
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