उत्तर प्रदेश में जहाँ से निरंतर ही कोई अजीब सी ख़बर आने का सिलसिला चला करता है वहां के किसी जनपद से जनहित से जुड़ी कोई ऐसी ख़बर अचानक ही आने पर गर्मी में ठंडी फुहार जैसी लगती है. प्रदेश का नेपाल से लगता हुआ तराई इलाका हमेशा से ही हर वर्ष बाढ़ की चपेट में आता रहता है जिससे वहां पर किसी भी तरह की सरकारी सहायता कभी भी सही समय से काम नहीं कर पाती है और जैसा कि हमारे देश में सरकारी तंत्र आम तौर पर आवश्यकता निकल जाने पर ही सक्रिय होता है वैसा ही यहाँ पर भी हुआ करता है. बाढ़ प्रभावित एक जिले के जिलाधिकारी ने केवल कुछ सोचकर एक ऐसा काम कर दिया जिसमें सरकार को कोई अधिक धन खर्च नहीं करना पड़ा और बाढ़ के समय लोगों को पीने के पानी की सुविधा भी आसानी से हो गयी. एक ऐसा काम जिसके बिना हर वर्ष बाढ़ प्रभावित लोग संक्रामक रोगों की चपेट में आ जाया करते थे उनको भी इससे बचने में बहुत बड़ी सहायता मिलने लगी. अगर देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अपने स्तर से प्रदेश की स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार काम करना शुरू कर दें तो देश के लोगों को बहुत आसानी हो जाने वाली है.
इस पूरी प्रक्रिया में बाढ़ वाले स्थानों पर अधिकतम जलस्तर के बारे में आंकड़े जुटाए गए और उसक बाद आदेश जारी कर दिया गया कि इस क्षेत्र में अब जो भी इंडिया मार्का नल लगाये जायेंगें उनको इस बाढ़ के स्तर से एक दो फीट ऊंचा चबूतरा बनाकर ही लगाया जायेगा और इस तरह के नलों तक पहुँचने के लिए सुविधाजनक सीढ़ियों का भी निर्माण किया जायेगा. इस पूरी प्रक्रिया को पिछले कुछ वर्षों में प्रायोगिक तौर पर लागू किया गया और बाढ़ के समय इनकी उपयोगिता को देखते हुए इस अभिनव प्रयोग के बारे में लखनऊ में अधिकारियों को बताया गया जिन्होंने इसकी उपयोगिता को देखते हुए अब बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में आगे से सभी नल इसी तरह से लगाने के आदेश भी जारी कर दिए हैं. जहाँ तक खर्च की बात की जाये तो एक नल को इस तरह से लगाने का खर्च केवल ५० हज़ार रूपये ही आया जो कि इसकी उपयोगिता को देखते हुए बहुत ही कम कहा जा सकता है. सबसे बड़ी बात जो इससे हुई वह स्थानीय बाढ़ प्रभावित लोगों को समय से साफ़ पानी मिलने की सुविधा हुई जो कि कोई भी सरकार चाहते हुए भी नहीं कर पाती थी और लोगों के सामने पीने के पानी का संकट बाढ़ के दौरान हमेशा ही बना रहता था.
सवाल यहाँ पर यह नहीं है कि आखिर आज तक इस बात पर क्यों नहीं सोचा गया और जिन भारी भरकम सरकारी विभागों पर इन ग्रामीणों की ज़िम्मेदारी रहा करती है वे आख़िर इस तरह से क्यों नहीं सोच सकते हैं ? उत्तर केवल एक ही हो सकता है कि हर व्यक्ति केवल अपने से मतलब रखना सीख चुका है और किसी को भी किसी अन्य की पीड़ा से आज कोई मतलब नहीं रह गया है. देश के नागरिकों तक आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी पहुँच नहीं हो पाती है और उनके पास संकट के समय पीने का साफ़ पानी भी नहीं होता है यह सब स्थितियां केवल यही बताती हैं कि अधिकारयों और नेताओं ने अपने हिसाब से चलना और जीना सीख लिया है जिसमें अब और लोगों के बारे में सोचने और कुछ करने की गुंजाईश ही कम बची है फिर भी कहीं न कहीं से कोई इस तरह के अभिनव प्रयोगों के माध्यम से कम खर्च में लोगों के जीवन को थोड़ा सा ही सही पर सरल बनाए की तरफ सोच तो रहा है बस आम नागरिकों के लिए यही बहुत संतोष की बात है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है..
bahut badiya saarthak chintan manan yogya prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंसवाल यहाँ पर यह नहीं है कि आखिर आज तक इस बात पर क्यों नहीं सोचा गया और जिन भारी भरकम सरकारी विभागों पर इन ग्रामीणों की ज़िम्मेदारी रहा करती है वे आख़िर इस तरह से क्यों नहीं सोच सकते हैं ?
जवाब देंहटाएंNice post.
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अगर आपकी सोच को एप्लाई किया जाए तो सुधार हो सकता है. अच्छा, सीधा और खरा लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंदुनाली पर देखें-
अन्ना को मनमौन की जवाबी चिट्ठी