मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 21 अगस्त 2011

अब राजनीति शुरू

अन्ना के आन्दोलन को देशव्यापी समर्थन मिलने से जहाँ राजनैतिक दल भौंचक्के से रह गए हैं वहीं उनको यह भी लगने लगा है कि कहीं न कहीं से इस आन्दोलन में शामिल होने का कुछ श्रेय तो ले ही लिया जाये ? भाजपा ने जहाँ इस बात के लिए अपने ३ साल के संघर्ष का फल बताया है वहीं आज के समय में राजनितिक रूप से हाशिये पर पहुंचे वाम दल तेलगु देशम के साथ जाकर कुछ अन्य दलों के साथ अन्ना की मुहिम का साथ देने के बारे में फैसला कर चुके हैं. वास्तव में आज होना यह चाहिए था कि सभी राजनैतिक दल एक साथ बैठकर अन्ना के जन लोकपाल पर विचार करते और इसे संसद के मानसून सत्र से अलग रखने का निर्णय भी करते. यह एक ऐसा काम है कि इसको किसी सत्र में सामान्य काम की तरह नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि इस पर जितनी बहस की आवश्यकता है वह आम सत्र में नहीं पूरी हो सकती है इसलिए इसके लिए विशेष सत्र को बुलाया जाये और किसी निर्णय तक पहुँचने से पहले उसे स्थगित न किया जाये. सभी सांसदों को पूरी तरह से बहस में भाग लेने को कहा जाये जिससे देश भी जान सके कि जिनको हम संसद में भेजते हैं आख़िर वे कितने पानी में हैं ? पहले संसद के बाहर इस पूरे बिल पर गहन मंथन किया जाना चाहिए था और उसके बाद सभी रानीतिक दलों को एक कड़े लोकपाल को देश की संसद में रखना चाहिए था पर नेताओं के अपने स्वार्थ इसमें हमेशा की तरह आड़े आ गए और देश के सामना एक बहुत अच्छा विकल्प जो बिना संघर्ष के पूरा किया जा सकता था वह ख़त्म हो गया.
   इस आन्दोलन की धार को हर राजनैतिक दल अपने अनुसार कुंद करना चाहता है सरकार के पास संसद में समय मांगने और नियम के अनुसार चलने का बहाना है तो भाजपा अपनी पीठ अपने आप थपथपा ही चुकी है कि अन्ना के आन्दोलन की ऊर्जा उसके परिश्रम का फल है. किसी को किसी भी तरह की ग़लतफ़हमी में जीने की पूरी छूट है पर यदि भाजपा वास्तव में इस आन्दोलन में कहीं से भी होती तो आज उसकी पूरी पार्टी देश में प्रदर्शन करने के लिए संघर्षरत दिखाई देती पर केवल माइक पर बाईट देने और सड़कों पर संघर्ष करने में बहुत बड़ा अंतर होता है. अब देश की जनता सब देख और समझ रही है संप्रग और कांग्रेस को भी अपने नेताओं को इस मुद्दे पर अनावश्यक बयानबाज़ी करने से रोकना चाहिए क्योंकि वह सत्ता में है और उसका उत्तरदायित्व देश के लिए आज सबसे बड़ा है. अन्ना की हर बात अब देश के लोगों को लुभा रही है ऐसे में उनकी अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि लोगों का जो आज समर्थन है वह कल हताशा में अराजकता में भी बदल सकता है. हालांकि अन्ना ने यह अपील बार बार की है कि सब कुछ शांति के साथ होना चाहिए पर इस आन्दोलन को भटकाने के लिए कुछ लोग इसको ढाल बनाकर गड़बड़ कर सकते हैं.
   यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी अन्ना को यह सफाई देनी पड़ रही है कि इनके आन्दोलन का संघ से कोई संबंध नहीं है इसका मतलब यही है कि जो लोग किसी भी प्रकार से इस आन्दोलन को कमज़ोर करना चाहते हैं वे अपनी बात में कुछ हद तक बकवास करके कामयाब भी हो रहे हैं. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आख़िर अन्ना संघ को साथ क्यों नहीं ले सकते या फिर अगर संघ उनको समर्थन देता है तो इसमें बुराई क्या है ? संघ का देश में अपना प्रभाव है और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जो भी साथ खड़ा होना चाहे तो साथ आ सकता है उसे अपनी पहचान खोकर अन्ना के रंग में रंगना पड़ेगा. एक सशक्त आन्दोलन में जुड़ने के लिए सभी लोगों को उसके रंग का सम्मान करना ही पड़ेगा क्योंकि हर व्यक्ति यदि अपने अहम् के साथ यहाँ पर आएगा तो वह किसी न किसी तरह की अराजकता अवश्य फैलाएगा. आज भी आवश्यकता है कि अन्ना और देश के राजनैतिक तंत्र के बीच कुछ लोग सेतु का काम करें क्योंकि जिस तरह से दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े हुए हैं इससे रास्ता आसानी से नहीं मिलने वाला है और इस तरह से देश का ही नुकसान होने वाला है. अब कुछ बुद्धिजीवियों, और पूर्व न्यायाधीशों, अधिकारियों को स्वतः इस मामले में आगे आकर सरकार और अन्ना के बीच सेतु का काम करना चाहिए जिसका देश बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है.
        
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5 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तव में आज होना यह चाहिए था कि सभी राजनैतिक दल एक साथ बैठकर अन्ना के जन लोकपाल पर विचार करते और इसे संसद के मानसून सत्र से अलग रखने का निर्णय भी करते.

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  2. सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. आखिर ऐसा क्यों करेंगे. क्यों अपने पैर पे कुल्हाड़ी मरेंगे.
    आज सभी घोटाले बाज सांसद कि गरिमा को बढ़ा रहे हैं

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  3. अन्ना जी ने कहा है कि मैं रहूं या न रहूं लेकिन आज़ादी की यह दूसरी जंग चलती रहनी चाहिए।
    इसके बावजूद उनके चरित्र पर उंगलियां उठाई जा रही हैं जबकि चोर-जार संसद में बैठ जाएं तो उन पर ये आरोप नहीं लगाते।
    इससे समझा जा सकता है कि हमारे ब्लॉग जगत के मार्गदर्शकों की तरह ही इन नेताओं की मंशा भी केवल अपना स्वार्थ साधना है और जो आड़े आए उस पर इल्ज़ाम धर दो, यह इनकी नीति है।
    अन्ना हजारे के आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ बताना ‘क्रिएट ए विलेन‘ तकनीक का उदाहरण है। इसका पूरा विवरण इस लिंक पर मिलेगा-
    ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)

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  4. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आख़िर अन्ना संघ को साथ क्यों नहीं ले सकते या फिर अगर संघ उनको समर्थन देता है तो इसमें बुराई क्या है ?
    @ इस देश में हर किसी को सेकुलर दिखने की बीमारी जो लगी हुई है !!

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  5. लोकपाल बिल बनने से कुछ हो या न हो लेकिन लोगों को कुछ पा लेने का अहसास तो हो ही जाएगा।
    हम तो शुरू से ही कह रहे हैं कि सच्चे रब से डरो, जैसी उसकी ढील है वैसी ही सख्त उसकी पकड़ है।
    अभी इंटेलेक्चुअल बने घूम रहे हैं लेकिन अगर भूकंप, बाढ़ और युद्धों ने घेर लिया तो कोई भी फ़िलॉस्फ़र बचा न पाएगा।
    ईमानदारी के लिए ईमान चाहिए और वह रब को माने बिना और रब की माने बिना मिलने वाला नहीं है।
    लोग उससे हटकर ही अपने मसले हल कर लेना चाहते हैं,
    यही सारी समस्या है।
    ख़ैर ,
    आज सोमवार है और ब्लॉगर्स मीट वीकली 5 में आ जाइये और वहां शेर भी हैं।

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