देश के उत्तरी भाग में सक्रिय मानसून ने जहां किसानों और आम लोगों को गर्मी से राहत पहुँचाने का काम किया है वहीं पर दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में बाढ़ की स्थिति एक बार फिर भयानक दौर में पहुँच गयी है. पिछले कुछ वर्षों से एक दो दिन की बारिश से ही प्रदेश के तराई वाले जिलों में भयंकर तबाही फैलती रही है जिस पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है. इस बार बारिश का असर बरेली शहर में इस कदर है कि आकाशवाणी केंद्र में ३ फीट तक पानी भर चुका है साथ ही प्रसारण गतिविधियों को पूरी तरह से रोक दिया गया है. नेपाल से लगती हुई बहराइच, लखीमपुर-खीरी, सीतापुर, बाराबंकी, गोंडा, बस्ती और गोरखपुर के हालत हमेशा की तरह ही हैं जबकि गंगा और उसकी सहायक नदियों ने भी पूरी तरह से तहलका मचाया हुआ है. गंगा और शारदा दोनों ही खतरे के निशान से ऊपर बह रही है और अगर एक दो दिन में फिर से बारिश होती है तो यह स्थिति और भी विकट हो जाएगी.
यहाँ पर यह बात ध्यान देने की है कि जब मानसून के अलावा और समय होता है तो कोई भी सरकार इस समस्या पर पूरी तरह से ध्यान देना ही नहीं चाहती है और जब बाढ़ के कारण इन क्षेत्रों तक पहुंचन कठिन हो जाता है तो सरकारी तंत्र तरह तरह के बहाने बनाना शुरू कर देता है ? जब नेपाल की नदियों के कारण सभी को पता है कि यहाँ पर इस तरह की तबाही होती ही रहती है तो इससे निपटने के लिए कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनायीं जाती है जो पूरी तरह से न सही पर कुछ हद तक कामयाब तो हो ? प्रदेश में बाढ़ से निपटे के लिए जो भी बाँध बनाये गए हैं उनमें किये गए भ्रष्टाचार के कारण हर वर्ष ये जगह जगह से कट रहे हैं जिससे बाढ़ और भी भयानक रूप से सामने आ रही है. इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार और अवैध वन कटान के कारण भी यह हिस्सा बाढ़ की चपेट में अधिक रहने लगा है जिस पर अभी भी किसी सरकार का ध्यान ही नहीं जाता है. पूरे उत्तर प्रदेश में आज वन का सबसे अधिक क्षेत्र खीरी और बहराइच जिलों के जंगलों में आता है जिस कारण से लकड़ी के अवैध व्यापारी यहाँ पर नेता, पुलिस और प्रशासन की मदद से लकड़ी काट कर पूरे प्रदेश में भेजते रहते हैं. इस तरह के भ्रष्टाचार पर किसी की नज़र इसलिए भी नहीं जाती है क्योंकि सभी का पेट भरने की व्यवस्था इसमें जो रहती है.
अब प्रदेश के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के बारे में सोचने का समय किसी के पास भी नहीं है क्योंकि इनके बारे में अब सोचने से कुछ होने वाला भी नहीं है और सरकार जिस तरह से केवल अपने कर्त्तव्य के नाम पर खानापूरी करती रहती है उससे यही लगता है कि किसी को भी इन लोगों के बारे में सोचने की फ़ुर्सत ही नहीं है. अब भारत सरकार को इस बारे में नेपाल के साथ मिलकर कोई ऐसी कार्य योजना बनानी चाहिए जो लम्बे समय तक इस समस्या से निजात दिला सके. नेपाल में बरसने वाले पानी के सदुपयोग के बारे में दोनों देशों को मिलकर सोचने की आवश्यकता है साथ ही देश में और प्रदेश के स्तर पर जो कुछ भी किया जा सकता है उस पर भी गहन विचार किया जाना चाहिए क्योंकि जब तक इस पानी के बहाव और रुकाव पर ध्यान नहीं दिया जायेगा यह स्थायी समस्या ही बनी रहेगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यहाँ पर यह बात ध्यान देने की है कि जब मानसून के अलावा और समय होता है तो कोई भी सरकार इस समस्या पर पूरी तरह से ध्यान देना ही नहीं चाहती है और जब बाढ़ के कारण इन क्षेत्रों तक पहुंचन कठिन हो जाता है तो सरकारी तंत्र तरह तरह के बहाने बनाना शुरू कर देता है ? जब नेपाल की नदियों के कारण सभी को पता है कि यहाँ पर इस तरह की तबाही होती ही रहती है तो इससे निपटने के लिए कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनायीं जाती है जो पूरी तरह से न सही पर कुछ हद तक कामयाब तो हो ? प्रदेश में बाढ़ से निपटे के लिए जो भी बाँध बनाये गए हैं उनमें किये गए भ्रष्टाचार के कारण हर वर्ष ये जगह जगह से कट रहे हैं जिससे बाढ़ और भी भयानक रूप से सामने आ रही है. इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार और अवैध वन कटान के कारण भी यह हिस्सा बाढ़ की चपेट में अधिक रहने लगा है जिस पर अभी भी किसी सरकार का ध्यान ही नहीं जाता है. पूरे उत्तर प्रदेश में आज वन का सबसे अधिक क्षेत्र खीरी और बहराइच जिलों के जंगलों में आता है जिस कारण से लकड़ी के अवैध व्यापारी यहाँ पर नेता, पुलिस और प्रशासन की मदद से लकड़ी काट कर पूरे प्रदेश में भेजते रहते हैं. इस तरह के भ्रष्टाचार पर किसी की नज़र इसलिए भी नहीं जाती है क्योंकि सभी का पेट भरने की व्यवस्था इसमें जो रहती है.
अब प्रदेश के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के बारे में सोचने का समय किसी के पास भी नहीं है क्योंकि इनके बारे में अब सोचने से कुछ होने वाला भी नहीं है और सरकार जिस तरह से केवल अपने कर्त्तव्य के नाम पर खानापूरी करती रहती है उससे यही लगता है कि किसी को भी इन लोगों के बारे में सोचने की फ़ुर्सत ही नहीं है. अब भारत सरकार को इस बारे में नेपाल के साथ मिलकर कोई ऐसी कार्य योजना बनानी चाहिए जो लम्बे समय तक इस समस्या से निजात दिला सके. नेपाल में बरसने वाले पानी के सदुपयोग के बारे में दोनों देशों को मिलकर सोचने की आवश्यकता है साथ ही देश में और प्रदेश के स्तर पर जो कुछ भी किया जा सकता है उस पर भी गहन विचार किया जाना चाहिए क्योंकि जब तक इस पानी के बहाव और रुकाव पर ध्यान नहीं दिया जायेगा यह स्थायी समस्या ही बनी रहेगी.
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