३१ अगस्त की समय सीमा समाप्त होने के बाद भी अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देने वाले मंत्रियों पर शिकंजा कसते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्पष्ट किया है कि अब सभी मंत्रियों के ब्योरे वेबसाइट पर डाले जायेंगें. अभी तक मंत्रियों से यह आशा की गयी थी कि वे स्वतः ही नियत तिथि तक अपना ब्यौरा कार्यालय को दे देंगें जिससे सरकार के मंत्रियों की संपत्ति के बारे में जनता को पता चल सके. इस काम में कुछ मंत्री अभी भी आना कानी कर रहे हैं जिससे पीएमओ ने जानकारी देने वाले मंत्रियों के नाम जल्दी ही सार्वजनिक करने के बारे में अहम् फैसला ले लिया है जिससे यह ख़ुद ही पता चल जायेगा कि आख़िर वे कौन से मंत्री हैं जिन्होंने अभी तक अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं उपलब्ध कराया है. पीएमओ की तरफ से उठाया गया यह एक ऐसा क़दम है जो पूरी तरह से जनता को पसंद आने वाला है फिर भी पता नहीं क्यों मंत्रियों को यह सब अच्छा नहीं लग रहा है ? शायद अभी तक ऐसा कोई दबाव उन पर नहीं आया था और पहली बार वे ऐसा करने के लिए मजबूर किये जा रहे हैं इसीलिए कुछ लोगों के गले से यह बात आसानी से नहीं उतर रही है.
इस काम को करने के लिए मंत्रियों के संसद के चुनाव लड़ते समय दिए जाने वाले ब्योरे को उनके मंत्री बनाये जाते समय ही उनके मंत्रालय और पीएमओ की वेबसाइट पर डाल दिया जाना चाहिए क्योंकि वहां पर संपत्ति का जो ब्यौरा दिया जाता है वह चुनाव आयोग के दबाव में होता है जिसमें कोई भी ग़लत जानकारी देकर खतरा मोल नहीं लेना चाहता है जो कि उनके मंत्री बनने तक कमोबेश वैसा ही रहता है और साल में एक बार इस जानकारी को मंत्रियों द्वारा दिए गए ब्योरे के अनुसार नवीनीकृत कर दिया जाना चाहिए. निश्चित तौर पर यह एक ऐसा कदम है जो जनता के बीच मंत्रियों की साख़ को बढ़ाएगा. यदि किसी मंत्री का कोई बड़ा व्यापार भी चल रहा है तो उसके काग़ज़ खुद ही सार्वजनिक हो जाते हैं फिर भी निजी संपत्ति के बारे में इस तरह के कदम बहुत अच्छे हैं. जिस तरह से आज देश के राजनैतिक ढांचे के सामने पहचान का संकट बना हुआ है उससे तो यही लगता है कि इस तरह के कदमों से जनता में इनके बारे में बनी हुई भ्रांतियां कुछ हद तक कम अवश्य हो जायेंगीं. अब यह नेताओं पर निर्भर करता है कि वे अपनी डूबती हुई साख़ को बचाना चाहते हैं या फिर उसे पूरी तरह से ही डुबाना चाहते हैं ?
अभी मंत्रियों को जिस तरह से यह जानकारी देने के लिए बाध्य किया जा रहा है ठीक उसी तरह से संसद को भी एक संकल्प पारित करके सभी सांसदों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने के आदेश जारी करने चाहिए. अपने हितों पर होने वाली हर चोट के समय यही सांसद हमेशा यही कहते हैं कि संसद ही सर्वोच्च है तो यह भी देखा जाना चाहिए कि इस सर्वोच्च संसद के लिए उनके मन में क्या आदर है ? सभी सांसदों की संपत्ति का ब्यौरा चुनावी वर्ष में उनके जीतने के बाद चुनाव आयोग से लेकर सार्वजनिक कर देना चाहिए और साल में एक बार उन्हें यह अवसर दिया जाना चाहिए कि वे उस तिथि तक अपने ब्योरे को फिर से सही करवा दें जिससे लोगों को यह पता चलता रहे कि आख़िर किस हद तक हमारे सांसद ईमानदार हैं और हमारे प्रतिनिधि बनने के बाद हमारे और उनके जीवन में किस तरह से परिवर्तन आता है. लेकिन यह एक ऐसा मामला है जिस पर सांसदों को ही निर्णय लेना है और क्या आज के राजनैतिक तंत्र में इतनी इच्छा शक्ति और समर्पण बचा हुआ है कि वे यह सब आसानी से कर सकें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस काम को करने के लिए मंत्रियों के संसद के चुनाव लड़ते समय दिए जाने वाले ब्योरे को उनके मंत्री बनाये जाते समय ही उनके मंत्रालय और पीएमओ की वेबसाइट पर डाल दिया जाना चाहिए क्योंकि वहां पर संपत्ति का जो ब्यौरा दिया जाता है वह चुनाव आयोग के दबाव में होता है जिसमें कोई भी ग़लत जानकारी देकर खतरा मोल नहीं लेना चाहता है जो कि उनके मंत्री बनने तक कमोबेश वैसा ही रहता है और साल में एक बार इस जानकारी को मंत्रियों द्वारा दिए गए ब्योरे के अनुसार नवीनीकृत कर दिया जाना चाहिए. निश्चित तौर पर यह एक ऐसा कदम है जो जनता के बीच मंत्रियों की साख़ को बढ़ाएगा. यदि किसी मंत्री का कोई बड़ा व्यापार भी चल रहा है तो उसके काग़ज़ खुद ही सार्वजनिक हो जाते हैं फिर भी निजी संपत्ति के बारे में इस तरह के कदम बहुत अच्छे हैं. जिस तरह से आज देश के राजनैतिक ढांचे के सामने पहचान का संकट बना हुआ है उससे तो यही लगता है कि इस तरह के कदमों से जनता में इनके बारे में बनी हुई भ्रांतियां कुछ हद तक कम अवश्य हो जायेंगीं. अब यह नेताओं पर निर्भर करता है कि वे अपनी डूबती हुई साख़ को बचाना चाहते हैं या फिर उसे पूरी तरह से ही डुबाना चाहते हैं ?
अभी मंत्रियों को जिस तरह से यह जानकारी देने के लिए बाध्य किया जा रहा है ठीक उसी तरह से संसद को भी एक संकल्प पारित करके सभी सांसदों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने के आदेश जारी करने चाहिए. अपने हितों पर होने वाली हर चोट के समय यही सांसद हमेशा यही कहते हैं कि संसद ही सर्वोच्च है तो यह भी देखा जाना चाहिए कि इस सर्वोच्च संसद के लिए उनके मन में क्या आदर है ? सभी सांसदों की संपत्ति का ब्यौरा चुनावी वर्ष में उनके जीतने के बाद चुनाव आयोग से लेकर सार्वजनिक कर देना चाहिए और साल में एक बार उन्हें यह अवसर दिया जाना चाहिए कि वे उस तिथि तक अपने ब्योरे को फिर से सही करवा दें जिससे लोगों को यह पता चलता रहे कि आख़िर किस हद तक हमारे सांसद ईमानदार हैं और हमारे प्रतिनिधि बनने के बाद हमारे और उनके जीवन में किस तरह से परिवर्तन आता है. लेकिन यह एक ऐसा मामला है जिस पर सांसदों को ही निर्णय लेना है और क्या आज के राजनैतिक तंत्र में इतनी इच्छा शक्ति और समर्पण बचा हुआ है कि वे यह सब आसानी से कर सकें.
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ये लोग सार्वजनिक भी करते हैं तो मात्र 10 प्रतिशत सम्पत्ति। लेकिन चलो 10 प्रतिशत ही करें तो सही।
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