असोम में शांति लाने के केंद्र सरकार के प्रयास अब रंग लाने लगे हैं जिसके तहत उल्फा ने और सरकार में एक शांति समझौता हो गया है. कई दशकों से असोम में अशांति का कारण बने इस संगठन और सरकार के बीच जो भी बातचीत प्रारंभ हुई थी अब उसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं. जहाँ इस समझौते में संघर्ष को रोकने की बात कहीं गयी है साथ ही यह भी व्यवस्था की गयी है कि इस संगठन के लगभग ६०० सदस्यों को एक नव निर्माण केंद्र में रखा जायेगा जहाँ पर उनको फिर से देश की मुख्य धारा में शामिल करने की कोशिश की जाएगी. इस समझौते के तहत अब उल्फा बातचीत चलने और कोई स्थायी समाधान निकलने तक किसी भी तरह की हिंसक गतिविधि में भाग नहीं लेगा और सुरक्षा बल भी उसके सदस्यों के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं करेंगें. अच्छा होता अगर इस तरह के संघर्ष विराम को किसी समय सीमा में भी बाँध दिया जाता जिससे उल्फा को कहीं से भी यह नहीं लगता कि उसके साथ धोखा किया जा रहा है क्योंकि वार्ता लम्बी खिंचने और कोई परिणाम न आने पर उल्फा के शांति विरोधी तत्व फिर से संघर्ष को भड़काने का काम कर सकते हैं.
देखने में इस तरह के समझौते बहुत अच्छे लगते हैं पर अधिकांश बार ईमानदारी से प्रयास न किये जाने पर इनका स्वरुप बहुत बिगड़ जाया करता है और एक बार फिर से संघर्ष शुरू हो जाता है. सरकार को अब थोड़े संयम के साथ बातचीत को तेज़ी से सही दिशा में बढ़ाना चाहिए क्योंकि जब तक यह काम नहीं किया जायेगा इस संघर्ष विराम का कोई लाभ किसी को भी नहीं मिल पायेगा. देश के प्राकृतिक संसाधनों में राज्यों को उचित हिस्सा और लोगों की सही भागीदारी सुनिश्चित करना अब सरकार पर होगा क्योंकि अभी तक ऐसे किसी भी संघर्ष को हवा तभी मिलती है जब लोग प्राकृतिक रूप से साधन संपन्न होने के बाद भी गरीब होते चले जाते हैं और चंद लोग इन संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेते है. स्थानीय जनता का सही प्रतिनिधित्व भी इस तरह की स्थिति में बहुत आवश्यक होता है क्योंकि इसके अभाव में लोगों को कुछ देश विरोधी तत्व बहका लेते हैं जिसका फल कई दशकों तक झेलना पड़ता है और देश व राज्य की प्रगति में बाधा भी आती है. संघर्ष विराम के समझौते के किसी ठीक बिंदु तक पहुँचने और स्थायी समाधान होने तक सभी पक्षों को अधिक संयम से काम लेना होगा.
यह सही ही है कि केंद्र सरकार ने समझौते के बिन्दुओं को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है क्योंकि इसके सार्वजनिक होने से कई बार लोग इनमें कमियां ढूँढने का काम करने लगते हैं जिसका पूरे समझौते पर ही बुरा असर होता है. उल्फा ने केवल संघर्ष विराम की बात की है और अभी तक शस्त्र समर्पण की बात सामने नहीं आई है जिससे यह ख़तरा हमेशा ही बना रहेगा कि कहीं न कहीं समझौते के विफल रहने पर संघर्ष और कड़ा हो सकता है ? इसके लिए जनपद स्तर पर कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे किसी भी पक्ष से संघर्ष विराम टूटने की स्थिति में तुरंत बात की जाये और इस अवसर को संवादहीनता के कारण बेकार न कर दिया जाये. अब पूरे पूर्वोत्तर में शांति बनाये रखने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से दोनों पक्षों पर ही आ गयी है जिससे किसी भी पक्ष के एक पक्षीय व्यवहार के कारण अब कोई समस्या उत्पन्न नहीं हो ऐसी ही कामना की जा सकती है और पूरे पूर्वोत्तर एक बार पुनः शांत किया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देखने में इस तरह के समझौते बहुत अच्छे लगते हैं पर अधिकांश बार ईमानदारी से प्रयास न किये जाने पर इनका स्वरुप बहुत बिगड़ जाया करता है और एक बार फिर से संघर्ष शुरू हो जाता है. सरकार को अब थोड़े संयम के साथ बातचीत को तेज़ी से सही दिशा में बढ़ाना चाहिए क्योंकि जब तक यह काम नहीं किया जायेगा इस संघर्ष विराम का कोई लाभ किसी को भी नहीं मिल पायेगा. देश के प्राकृतिक संसाधनों में राज्यों को उचित हिस्सा और लोगों की सही भागीदारी सुनिश्चित करना अब सरकार पर होगा क्योंकि अभी तक ऐसे किसी भी संघर्ष को हवा तभी मिलती है जब लोग प्राकृतिक रूप से साधन संपन्न होने के बाद भी गरीब होते चले जाते हैं और चंद लोग इन संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेते है. स्थानीय जनता का सही प्रतिनिधित्व भी इस तरह की स्थिति में बहुत आवश्यक होता है क्योंकि इसके अभाव में लोगों को कुछ देश विरोधी तत्व बहका लेते हैं जिसका फल कई दशकों तक झेलना पड़ता है और देश व राज्य की प्रगति में बाधा भी आती है. संघर्ष विराम के समझौते के किसी ठीक बिंदु तक पहुँचने और स्थायी समाधान होने तक सभी पक्षों को अधिक संयम से काम लेना होगा.
यह सही ही है कि केंद्र सरकार ने समझौते के बिन्दुओं को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है क्योंकि इसके सार्वजनिक होने से कई बार लोग इनमें कमियां ढूँढने का काम करने लगते हैं जिसका पूरे समझौते पर ही बुरा असर होता है. उल्फा ने केवल संघर्ष विराम की बात की है और अभी तक शस्त्र समर्पण की बात सामने नहीं आई है जिससे यह ख़तरा हमेशा ही बना रहेगा कि कहीं न कहीं समझौते के विफल रहने पर संघर्ष और कड़ा हो सकता है ? इसके लिए जनपद स्तर पर कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे किसी भी पक्ष से संघर्ष विराम टूटने की स्थिति में तुरंत बात की जाये और इस अवसर को संवादहीनता के कारण बेकार न कर दिया जाये. अब पूरे पूर्वोत्तर में शांति बनाये रखने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से दोनों पक्षों पर ही आ गयी है जिससे किसी भी पक्ष के एक पक्षीय व्यवहार के कारण अब कोई समस्या उत्पन्न नहीं हो ऐसी ही कामना की जा सकती है और पूरे पूर्वोत्तर एक बार पुनः शांत किया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
Nice post .
जवाब देंहटाएंमुग़ले आज़म और उमराव जान को भी हिंदी फ़िल्म ही का प्रमाण पत्र दे देते हैं।
क्या है हिंदी ?
कहां है हिंदी ?
शुक्रिया !
तर्क मज़बूत और शैली शालीन रखें ब्लॉगर्स :-
हमारा संवाद नवभारत टाइम्स की साइट पर ,
दो पोस्ट्स पर ये कुछ कमेंट्स हमने अलग अलग लोगों के सवालों जवाब में दिए हैं। रिकॉर्ड रखने की ग़र्ज़ से इन्हें एक पोस्ट की शक्ल दी जा रही है।