मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

आतंक का साया

दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए आतंकी हमले के बारे में अधिक जानकारी तो जांच के बाद ही सामने आ पायेगी पर जिस तरह से हमेशा की तरह आतंकियों ने इस बार भी इस काम को अंजाम दिया उससे यही लगता है कि आतंकियों के मुकाबले हमारी तैयारियां काफी कमज़ोर सी हैं. यह बिलकुल सही बात है कि इस तरह के हमलों को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है जिसके कारण यह ख़तरा हमेशा ही बना रहेगा पर हमारी चौकस निगाहें इस तरह की घटनाओं की तीव्रता और संख्या में तो कमी कर ही सकती हैं. इस पूरी असफलता के लिए केवल पुलिस और कानून को ज़िम्मेदार मानने से काम नहीं चलने वाला है क्योंकि जब तक आम नागरिक अपने को आतंक के ख़िलाफ़ लड़ने और ऐसी किसी भी परिस्थिति में ज़िम्मेदारी से काम करने के लिए तैयार नहीं करेगा हमें ऐसी स्थितियों से निरंतर जूझना ही होगा. इस विस्फोट के बाद जिस तरह से आम लोगों ने कोर्ट और अस्पताल के बाहर भीड़ जमा की और पुलिस के लिए समस्या बह्दाने का काम किया वह नहीं होना चाहिए क्योंकि एक विस्फोट करने के बाद आतंकी अस्पताल में भी विस्फोट करके घटना को और वीभत्स रूप पहले भी देते रहे हैं ऐसे में किसी भी घटना के बाद अनावश्यक रूप से सड़कों और अस्पतालों के सामने भीड़ नहीं लगनी चाहिए.
    सबसे पहले पुलिस तंत्र को व्यापक और सक्रिय तंत्र में बदलने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरी पुलिस व्यवस्था को सुधारा नहीं जायेगा तब तक किसी भी परिस्थिति में इससे बेहतर परिणामों की आशा नहीं की जानी चाहिए. आज देश में जनसँख्या के अनुसार पुलिस होना सबसे बड़ी आवश्यकता है फिर भारत में पुलिस में जिस स्तर तक भ्रष्टाचार मचा हुआ है उससे इस तंत्र की मजबूती ही उसकी कमज़ोरी बनने में देर नहीं लगती है. आज देश में व्यापक पुलिस सुधारों को तत्काल प्रभाव से लागू किये जाने की आवश्यकता है. देश को जितने संसाधनों कि ज़रुरत है अगर सरकार एकदम से इनके लिए धन नहीं दे सकती है तो उसे सांसद / विधायक निधि से २५ % धनराशि स्थानीय पुलिस को देने की व्यवस्था तत्काल करनी चाहिए क्योंकि जब तक देश ही सुरक्षित नहीं होगा तब तक किसी भी विकास की बात ही बेमानी साबित हो जाएगी. यह धनराशि बिना किसी सांसद/ विधायक की अनुमति के सीधे ही जिले के पुलिस कप्तान या अन्य अधिकारी को स्थानांतरित की जानी चाहिए जिससे इसके लिए उन्हें अनावश्यक रूप से नेताओं के चक्कर नहीं काटने पड़ें और स्थानीय स्तर पर पुलिस के पास कुछ धन भी उपलब्ध रहे जिससे वह सुरक्षा सम्बन्धी ज़रूरतों और भवन आदि को भी बनवा सके. स्थानीय स्तर पर गाँवों में विकास के लिए बहुत सारी अन्य योजनायें भी आज आ चुकी हैं जिससे सरकार को अब देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए.
   जहाँ तक सुरक्षा से जुड़े मसलों की बात है तो उसके लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकारों से मिलकर पुलिस और समाज के लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास करने ही होंगें क्योंकि पुलिस बल की कमी को केवल विशेष पुलिस अधिकारी बनाकर ही फ़िलहाल पूरा किया जा सकता है. देश की सुरक्षा के लिए एक समयबद्ध योजना तैयार की जानी चाहिए जिस पर अमल करने के लिए पूरे संकल्प के साथ प्रयास भी किया जाने चाहिए. केवल बड़े शहरों की सुरक्षा सुधारने से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि शहरों में सख्ती होने से ये आतंकी तत्व आस पास के छोटे शहरों या गाँवों से अपने काम को अंजाम देना शुरू कर देंगें. देश की सुरक्षा के लिए किसी बड़े संगठन की आवश्यकता के स्थान पर पूरे समाज को सुरक्षा चिंताओं में शामिल करने से ही कुछ ज़मीनी हक़ीकत बदली जा सकती है वरना आतंकी समय पाकर अपने इस काम को हमेशा की तरह अंजाम देते ही रहेंगें. अब समय है सरकार भले ही जागे न जगे पर देश को तो जागना ही होगा और अपनी सुरक्षा के लिए सचेत रहना ही होगा.   

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. मेरे हिसाब से जनचेतना के बगाइर यह संभव नहीं जैसा की आपने खुद ही लिखा जब तक हर इंसान खुद इसे अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर नहीं चलेगा तब तक हमको यह सब झेलना ही होगा.....
    ताज़ा हालातों पर यह बढ़िया पोस्ट है आपकी कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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