एयर इण्डिया के लिए १११ नए विमानों की खरीद पर जिस तरह से कैग की रिपोर्ट आने के बाद से ही उस समय लिए गए फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाये जाने लगे हैं उससे यही लगता है कि अब देश में सरकारों के हर काम की टांग खींचने की आदत सी बनती जा रही है. जिस तरह से राष्ट्रीय विमानन कम्पनी लगातार घाटे के कारण संकट में फंसती जा रही है ऐसी स्थिति पिछले काफी समय से बनी हुई है फिर भी यदि किसी भी सरकार द्वारा उसको कुछ सुविधाएँ देने के लिए बड़े में बड़ी संख्या में नए विमान शामिल करने का फैसला लिया गया तो उसे एकदम से ग़लत नहीं ठहराया जा सकता है जब कोई फ़ैसला सामूहिकता के आधार पर लिया जाता है तो सरकार भी विचार करके ही कुछ करना चाहती है. आज के प्रतिस्पर्धा भरे युग में आख़िर कोई भी सरकार किस तरह से एयर इंडिया को बचा सकती है यह तो कोई विशेषज्ञ भी नहीं बता सकता है फिर भी इस तरह से हर निर्णय पर विवाद होने से सरकारें कुछ भी नए कदम उठाने से ही परहेज़ करने लगेंगीं.
यह सही है कि कमज़ोर प्रबंध तंत्र के कारण भी कई बार सरकारी कम्पनियों की हालत बहुत ख़राब हो जाया करती है क्योंकि जहाँ निजी कम्पनियों में कुछ लोगों को ही निर्णय लेना होता है वहीं सरकार में कई स्तरों से निर्णय हुआ करते हैं. उस समय जो फैसले लिए गए और उनका जो भी असर हुआ हो पर एयर इंडिया ने अपनी ग़लतियों से कुछ भी नहीं सीखा और एक बार फिर से वह बहुत बड़े घाटे में चल रही है. यहाँ पर सवाल यह होना चाहिए कि इस राष्ट्रीय विमान कम्पनी को आख़िर किस तरह से बचाया जाये क्योंकि अगर यह इसी तरह से घाटे में चलती रहती है तो सरकार को इसका भी विनिवेश कर देना चाहिए आम जनता के पैसे को आख़िर इस तरह की कुछ लोगों के इस्तेमाल में आने वाली सेवा के कारण कब तक बर्बाद किया जाता रहेगा ? अच्छा हो कि एयर इंडिया हर बार सरकार की तरफ मुंह ताकने के स्थान पर देश की अन्य निजी विमान कम्पनियों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना सीखे क्योंकि जब तक उसमें खुद ही जीने की इच्छा नहीं जागेगी तब तक कोई भी उसकी मदद नहीं कर सकता है.
आज जहाँ कुछ एक विमानों वाली निजी कम्पनी भी अपने खर्चे निकालने में सक्षम हैं वहीं एयर इंडिया को लगाता घाटा ही सहना पड़ रहा है आख़िर ऐसा क्यों है और इसके पीछे क्या कारण काम कर रहे हैं ? आज इस पर विचार करने की ज़रुरत है अब समय है कि एयर इंडिया को भी केवल कुछ सेक्टर्स को छोड़कर पूरे देश में लाभ वाले मार्गों की पहचान करनी ही होगी क्योंकि बिना इसके जब तक वह अपनी परिचालन लागत को नहीं निकाल पायेगी तब तक उसका सरकार के भरोसे जीना लगभग असंभव ही होगा. इसे भी अविलम्ब काम किराये वाली पूरी एक श्रंखला चलानी चाहिए क्योंकि निजी कम्पनियों के हाथ में यह एक ऐसा हथियार है जिसके माध्यम से वे नए यात्रियों को विमानन उद्योग से जोड़ने में सफल हो पा रही हैं. आज के प्रतिस्पर्धी युग में कहीं से भी बढ़ते हुए हवाई यातायात में केवल अपनी शर्तों पर काम नहीं किया जा सकता है समय के अनुसार नहीं चलने का खामियाज़ा आज एयर इण्डिया भुगत रही है और अगर अब भी इसके तौर तरीकों में बदलाव नहीं किया गया तो सके बिकने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि कमज़ोर प्रबंध तंत्र के कारण भी कई बार सरकारी कम्पनियों की हालत बहुत ख़राब हो जाया करती है क्योंकि जहाँ निजी कम्पनियों में कुछ लोगों को ही निर्णय लेना होता है वहीं सरकार में कई स्तरों से निर्णय हुआ करते हैं. उस समय जो फैसले लिए गए और उनका जो भी असर हुआ हो पर एयर इंडिया ने अपनी ग़लतियों से कुछ भी नहीं सीखा और एक बार फिर से वह बहुत बड़े घाटे में चल रही है. यहाँ पर सवाल यह होना चाहिए कि इस राष्ट्रीय विमान कम्पनी को आख़िर किस तरह से बचाया जाये क्योंकि अगर यह इसी तरह से घाटे में चलती रहती है तो सरकार को इसका भी विनिवेश कर देना चाहिए आम जनता के पैसे को आख़िर इस तरह की कुछ लोगों के इस्तेमाल में आने वाली सेवा के कारण कब तक बर्बाद किया जाता रहेगा ? अच्छा हो कि एयर इंडिया हर बार सरकार की तरफ मुंह ताकने के स्थान पर देश की अन्य निजी विमान कम्पनियों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना सीखे क्योंकि जब तक उसमें खुद ही जीने की इच्छा नहीं जागेगी तब तक कोई भी उसकी मदद नहीं कर सकता है.
आज जहाँ कुछ एक विमानों वाली निजी कम्पनी भी अपने खर्चे निकालने में सक्षम हैं वहीं एयर इंडिया को लगाता घाटा ही सहना पड़ रहा है आख़िर ऐसा क्यों है और इसके पीछे क्या कारण काम कर रहे हैं ? आज इस पर विचार करने की ज़रुरत है अब समय है कि एयर इंडिया को भी केवल कुछ सेक्टर्स को छोड़कर पूरे देश में लाभ वाले मार्गों की पहचान करनी ही होगी क्योंकि बिना इसके जब तक वह अपनी परिचालन लागत को नहीं निकाल पायेगी तब तक उसका सरकार के भरोसे जीना लगभग असंभव ही होगा. इसे भी अविलम्ब काम किराये वाली पूरी एक श्रंखला चलानी चाहिए क्योंकि निजी कम्पनियों के हाथ में यह एक ऐसा हथियार है जिसके माध्यम से वे नए यात्रियों को विमानन उद्योग से जोड़ने में सफल हो पा रही हैं. आज के प्रतिस्पर्धी युग में कहीं से भी बढ़ते हुए हवाई यातायात में केवल अपनी शर्तों पर काम नहीं किया जा सकता है समय के अनुसार नहीं चलने का खामियाज़ा आज एयर इण्डिया भुगत रही है और अगर अब भी इसके तौर तरीकों में बदलाव नहीं किया गया तो सके बिकने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा.
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