देश में बढ़ती हुई अन्तरिक्ष ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री के स्तर से जो प्रयास शुरू किये गए हैं और उन्हें जिस तरह से दो साल के अन्दर पूरा करने के बारे में विचार विमर्श शुरू कर दिया गया है उससे आने वाले समय में देश को बहुत आगे तक जाने का मार्ग मिल जायेगा. आज हमारे देश में केवल दो ही अन्तरिक्ष प्रक्षेपण स्थल हैं जो मौसम के कारण कई बार अपना काम पूरी तरह से नहीं कर पाते हैं और देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों में देरी हो जाया करती है. भारत के इसरो ने जिस तरह से कम खर्च में उपग्रहों को अन्तरिक्ष में भेजना शुरू किया है उससे भी दुनिया भर के देशों से उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए मांग आने लगी है और आज के स्थापित ढांचे में इन ज़रूरतों को पूरा करने का इसरो के पास कोई उपाय नहीं है जिससे उसकी साख होते हुए भी वह इसे भुना नहीं पाता है. इस तरह के किसी भी प्रयास से आने वाले समय में देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रम को एक नयी दिशा मिल ही जाएगी.
देश के संसाधनों के सही इस्तेमाल और वैज्ञानिक मेधा का सही उपयोग करके देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाया जा सकता है और साथ ही बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी कमाई जा सकती है पर इस पूरे काम के लिए जिस व्यावसायिक सोच की आवश्यकता है उसको हमें खुद ही विकसित करना ही ओगा क्योंकि सरकारी विभाग की तरह हमेशा ही काम करने की मानसिकता हमें कई बार प्रतिस्पर्धा में बहुत पीछे छोड़ देती है. फिलहाल हमारे इसरो के काम काज को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वहां पर कामकाज में कोई ढिलाई बरती जाती है पर आने वाले समय में जब अन्तरिक्ष बाज़ार और बढेगा तो चीन की तरफ से इसरो को कड़ी टक्कर मिल सकती है. इसके लिए इसरो को अभी से पूरी तैयारी करनी चाहिए और यह अच्छी बात है की आने वाली ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए पीएमओ से इस तरह की पहल हो चुकी है. जिससे जब इस तरह की मांग आएगी तब हमारे पास उसे पूरा करने के लिए उचित तंत्र उपलब्ध होगा.
अन्तरिक्ष प्रक्षेपण स्थल के चुनाव से पहले बहुत सारी वैज्ञानिक ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता है जिसके बिना इस तरह के अभियान पूरी तरह से सफल नहीं हो सकते हैं. आज इस बारे में पूरी तरह से जुट कर काम करने का समय आ गया है क्योंकि जब हमारे पास इतने संसाधन होंगें और हम सफलता पूर्वक अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों को चला पाने में सफल हो जायेंगे तभी हमें विश्व भर के देश भी इस लायक समझने लगेंगें और भारत इस क्षेत्र में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर पायेगा. किसी भी काम को करने के लिए जिस तरह से संसाधनों की आवश्यकता होती है वह पीएमओ के बीच में आ जाने से समय से पूरी हो जाएगी और उसके बेहतर परिणाम भी देश को जल्द ही मिलने लगेंगें. आज पूरे देश में संचार सेवाओं के विस्तार के साथ जो हमारी आवश्यकताएं हैं वे भी पूरी नहीं हो पा रही हैं जिस कारण से कई बार हमें भी अपने उपग्रह विदेशी स्थलों से भेजने पड़ते हैं. आशा है कि आने वाले समय में कुछ इस तरह से संसाधन हमारे पास ही होंगें जिससे हम अपनी ज़रूरतों के साथ ही अन्य देशों को भी सस्ते अन्तरिक्ष कार्यक्रम में शामिल कर पाने में सफल होंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश के संसाधनों के सही इस्तेमाल और वैज्ञानिक मेधा का सही उपयोग करके देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाया जा सकता है और साथ ही बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी कमाई जा सकती है पर इस पूरे काम के लिए जिस व्यावसायिक सोच की आवश्यकता है उसको हमें खुद ही विकसित करना ही ओगा क्योंकि सरकारी विभाग की तरह हमेशा ही काम करने की मानसिकता हमें कई बार प्रतिस्पर्धा में बहुत पीछे छोड़ देती है. फिलहाल हमारे इसरो के काम काज को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वहां पर कामकाज में कोई ढिलाई बरती जाती है पर आने वाले समय में जब अन्तरिक्ष बाज़ार और बढेगा तो चीन की तरफ से इसरो को कड़ी टक्कर मिल सकती है. इसके लिए इसरो को अभी से पूरी तैयारी करनी चाहिए और यह अच्छी बात है की आने वाली ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए पीएमओ से इस तरह की पहल हो चुकी है. जिससे जब इस तरह की मांग आएगी तब हमारे पास उसे पूरा करने के लिए उचित तंत्र उपलब्ध होगा.
अन्तरिक्ष प्रक्षेपण स्थल के चुनाव से पहले बहुत सारी वैज्ञानिक ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता है जिसके बिना इस तरह के अभियान पूरी तरह से सफल नहीं हो सकते हैं. आज इस बारे में पूरी तरह से जुट कर काम करने का समय आ गया है क्योंकि जब हमारे पास इतने संसाधन होंगें और हम सफलता पूर्वक अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों को चला पाने में सफल हो जायेंगे तभी हमें विश्व भर के देश भी इस लायक समझने लगेंगें और भारत इस क्षेत्र में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर पायेगा. किसी भी काम को करने के लिए जिस तरह से संसाधनों की आवश्यकता होती है वह पीएमओ के बीच में आ जाने से समय से पूरी हो जाएगी और उसके बेहतर परिणाम भी देश को जल्द ही मिलने लगेंगें. आज पूरे देश में संचार सेवाओं के विस्तार के साथ जो हमारी आवश्यकताएं हैं वे भी पूरी नहीं हो पा रही हैं जिस कारण से कई बार हमें भी अपने उपग्रह विदेशी स्थलों से भेजने पड़ते हैं. आशा है कि आने वाले समय में कुछ इस तरह से संसाधन हमारे पास ही होंगें जिससे हम अपनी ज़रूरतों के साथ ही अन्य देशों को भी सस्ते अन्तरिक्ष कार्यक्रम में शामिल कर पाने में सफल होंगें.
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