मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 14 सितंबर 2011

अन्ना की सफाई

    भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जिस तरह से भाजपा ने यह मान ही लिया था कि वह जो कुछ भी कर रही है उसे पूरे देश का समर्थन खुद ही मिल जायेगा तो इसका उसे जवाब भी मिल ही गया है. अभी तक संप्रग सरकार के ख़िलाफ़ हमले करने में वह अन्ना का इस्तेमाल करना चाहती थी पर जिस तरह से अन्ना ने भाजपा के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट की है उससे यही लगता है कि भाजपा ने २००४ के बाद से अभी तक अपनी ग़लतियों से कुछ भी सीखना नहीं चाहा है. अन्ना को किसी भी राजनैतिक दल से कोई मतलब नहीं है उन्हें देश से भ्रष्टाचार हटाने और इसकी लिए कड़े कानून बनाने वाले हर दल/समूह से लगाव है पर आज कोई भी दल ऐसा हो यह तो दिखाई नहीं देता है ? अडवाणी ने जिस तरह से केवल यात्रा के ज़रिये संप्रग सरकार को घेरने की योजना बनायीं थी और यह सोचा था कि इस मुद्दे पर अन्ना का समर्थन तो मिल ही जायेगा तो उसकी आँखें अब तो खुल ही जानी चाहिए. अन्ना ने यह साफ़ कर दिया है कि अडवाणी को यात्रा के स्थान पर कुछ ठोस करना चाहिए जिससे भाजपा का यह भ्रम टूट ही जाना चाहिए कि वह कांग्रेस का एकमात्र विकल्प है ?
  भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भाषण बाज़ी करने और वास्तविकता में उस पर प्रहार करने में बहुत बड़ा अंतर होता है और भाजपा को आज भी यह समझ नहीं आ रहा है उसे लगता था कि शायद अन्ना के समर्थन से वह देश के कुछ हिस्सों में अपने समर्थन को फिर से हासिल कर सके ? भाजपा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बोलते समय यह भूल जाती है कि शुचिता की बात केवल उपदेशों में होने से काम नहीं चलता है जिस तरह से उसने अन्ना के अनशन के समय ही गुजरात में लोकायुक्त की राज्यपाल द्वारा नियुक्ति को लेकर उसने संसद में बखेड़ा खड़ा किया उससे क्या सन्देश जाता है ? क्या उसे लगता है कि अन्ना इस सब को देखते हुए भी उसके समर्थन में खड़े हो जायेंगे तो यह उसकी भूल ही है क्योंकि ८ साल तक गुजरात में भाजपा के संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी ने लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं होने दी जबकि भाजपा पूरे देश में मोदी के सुशासन का ढिंढोरा पीटती रहती है. विकास के आयामों को गढ़ने में मोदी ने वास्तव में काम किया है अपर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उन्होंने क्या किया है यह देश भी जनता है ? भाजपा को यह तो अच्छा लगता है कि विधायी कामों में कोर्ट दख़ल देकर संप्रग सरकार को आदेश जारी करे पर जब खुद उसके द्वारा विधायी कार्यों कि उपेक्षा की जाती है और राज्यपाल अपने मन से एक नियुक्ति कर देते हैं तो उसे राज्य सरकार के अधिकार याद आने लगते है ?
   भाजपा ने अन्ना को समझने में बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि अन्ना की तरफ से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि वे पूरे देश में किसी दल के पक्ष या विपक्ष में नहीं हैं उनका जनता से केवल यही आह्वाहन है कि दलों के स्थान पर साफ़ सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को जितायें जिससे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कड़े कानून बनाये जाने में मदद मिल सके. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा का तब तक समर्थन नहीं कर सकते हैं जब तक वह जनलोकपाल विधेयक को पूरा समर्थन देने के साथ ही उसके द्वारा शासित राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति कर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपने को पूरी तरह से मुस्तैद नहीं दिखाती है. अन्ना ग़ैर राजनातिक व्यक्ति हैं और उन्होंने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि वे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ईमानदारी से लड़ने वाले किसी को भी समर्थन दे सकते हैं. अन्ना ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया से भी यह आशा की है कि वे इंदिरा जी की तरह मजबूती का प्रदर्शन करें और अपने आस पास इकट्ठे होने वाले लोगों से सावधान रहें. इससे यही लगता है कि अन्ना देश की नब्ज़ जानते हैं और वे यह भी समझते हैं कि देश के दो मज़बूत राजनैतिक ध्रुवों को किस तरह से सुधारा जाना है. अन्ना को पार्टी नहीं देश के लिए काम करने वालों की आवश्यकता है पर भाजपा को शायद ख़ुद से ज्यादा देशभक्त कोई नज़र ही नहीं आता है ?

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल उसे कांग्रेस से शिक्षा लेने की जरूरत है.. यह भी बढ़ा दीजिये.

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  2. बहुत ही अच्छा लेख है - excellent |
    और हाँ - मुझे भी समझ नहीं आता कि चिकित्सक होने से सोच और लेखन क्यों नहीं हो सकता | लेख बहुत अच्छा है, सच है - अभी हम ऐसी स्थित में हैं जिसमे दोनों ही ओर कुछ आशा नज़र नहीं आ रही | ना बि.जे.पि. से, न ही कोंग्रेस से ... :(

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