मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

नए ज़िलों की सियासत

   पूरे देश में अपने हर कार्यकाल में नए ज़िलों और तहसीलों को थोक के भाव बनाने की अपनी शैली को अपनाते हुए मायावती ने इस बार भी सरकार के कार्यकाल के आख़िरी चरण में लोक लुभावनी घोषणाएं करने में कसर नहीं छोड़ी है. अपनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे के समय जिस तरह से उन्होंने एक साथ ३ नए ज़िलों के गठन की बात कही है उससे यही लगता है कि इस तरह की बातें करने से जनता उनके कार्यकाल में पैदा होने वाली मुश्किलों को भूल जाएगी तो उनकी यह ग़लतफ़हमी चुनाव के बाद साफ़ हो जाएगी. यह सही है कि बड़े राज्यों में काम करने के लिए बहुत हिम्मत की ज़रुरत होती है पर यहाँ लखनऊ में बैठकर सरकार चलाने वाली मुख्यमंत्री को यह पता भी नहीं है कि कहाँ तक पूरा प्रदेश फैला हुआ है ? आज केवल राजधानी को ही प्रदेश मान लेने के कारण ही सरकारों की पकड़ पूरे प्रदेश पर नहीं पड़ती अहि और उन्हें वही दिखाई देता है जो अधिकारी दिखाना चाहते हैं.
   यदि उन्हें लगता है कि उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बाँट दिया जाना चाहिए तो अभी तक वे किस बात की प्रतीक्षा कर रही थीं इतने वर्षों से उनकी सरकार है और अभी तक उन्होंने विधान सभा में कोई संकल्प पारित करवाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है ? यह ऐसा काम था जो कि विधान सभा के स्तर पर ही होना था पर जब वोट लेने की बात सामने आती है तो उन्हें अच्छे शासन की सुध अचानक ही आ जाती है पर पूरे प्रदेश में जिस तरह से सरकारी तंत्र और नेताओं ने मिलकर लूट मचा रखी है वह किसी को भी दिखाई नहीं देती है. इस सरकार के सबसे अधिक मंत्री और अन्य नेताओं के खिलाफ लोकायुक्त ने कार्यवाही करने की संस्तुति कर रखी है पर जब तक वे बसपा के हितों को साधने का काम कर रहे हैं तब तक सब धर्मात्मा हैं और अचानक ही किसी वे पार्टी विरोधी घोषित करके पैदल कर दिए जाते हैं ?
   अच्छे शासन के लिए शीला दीक्षित, नरेन्द्र मोदी, नवीन पटनायक, रमण सिंह और नितीश कुमार जैसी कार्यशैली चाहिए होती है केवल राजधानी में दरबार लगाने से अगर सत्ता बची रहा करती तो आज भी देश में राजाओं और नवाबों का शासन होता ? अब जनता जाग चुकी है और काम न करने वाले नेता चाहे वे किसी भी प्रदेश में हो अब अगली बार सत्ता में आने का सपना छोड़ ही दें क्योंकि जब जनता उन्हें ज़िम्मेदारी देती है तब वे उसको बपौती मान लेते हैं और जब चुनाव आता है तो यही नेता नाक रगड़ते हुए जनता के पास बेशर्मी दिखाने पहुँच जाते हैं अब नेताओं को यह समझना ही होगा कि जोड़ तोड़ से सत्ता बचायी जा सकती है पर जनता से जुड़ाव नहीं पैदा किया जा सकता है अब समय है कि इन हथकंडों की जगह कुछ ठोस किया जाये और पूरे प्रदेश को राजनैतिक चश्में से देखने के स्थान पर धरातल पर उचित ढंग से शासन चलाने के लिए सही तंत्र विकसित किया जाये.     


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