मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 28 सितंबर 2011

वोट और नेता

अपने वोट बैंक को बढ़ाने के चक्कर में नेता किस तरह से अपनी कही गयी बातों से पलट जाया करते हैं इसका ताज़ा उदाहरण पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती की बातों से मिल रहा है. राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में उन्होंने जो कुछ भी कहा था वह रिकॉर्ड में दर्ज है और अब वे अपनी उन कही गयी बातों से मुकरना चाहती हैं जो कि उनके लिए ऑन रिकॉर्ड होने के कारण परेशानी पैदा करने वाला साबित हो रहा है. क्या हो गया अगर उनकी चेन्नई यात्रा के दौरान किसी मुस्लिम ने मोदी की तारीफ़ कर दी और कौन सा पहाड़ टूट पड़ा अगर उन्होंने भारतीय सेना को विश्व की सबसे अनुशासित सेना बता दिया ? इन बातों पर ध्यान देने के स्थान पर अगर नेता लोग जनता की समस्याओं पर भी ध्यान देने लगें तो देश का वास्तव में बहुत भला हो जाये. यह सही है कि गुजरात दंगों को भाजपा समर्थक और विरोधी अपने अपने नज़रिए से देखना पसंद करते हैं क्योंकि उनके वोट उसी के हिसाब से बढ़ते हैं पर मोदी द्वारा किये जा रहे अच्छे कार्यों को अगर अच्छा कहने से पहले भी सोचना पड़े तो यह राजनीति के पतन का एक और गन्दा उदाहरण है.
    विकास का कार्य मोदी करें या शीला दीक्षित क्या इससे विकास की परिभाषा बदली जा सकती है ? किसी के चाहने या न चाहने से विकास की परिभाषा नहीं बदलने वाली है और आज के समय में जनता यह समझ चुकी है कि कौन वास्तव में विकास का पक्षधर है और कौन केवल बातें करके काम चलाना चाहता है ? देश के नेता आख़िर किसी के किसी बयान को अपने हित के लिए क्यों इस्तेमाल करना चाहते है और साथ ही अगर किसी नेता ने विकास की बात की है और उसके किसी विरोधी ने भी उसकी तारीफ़ कर दी तो उससे क्या होने वाला है ? देश के नेता केवल विरोध करने के लिए विरोध करने की अपनी नीति से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे हैं जबकि आज देश को ज़रुरत है समग्र विकास की जिसमें इस तरह की घटिया राजनीति का कोई स्थान नहीं होना चाहिए देश को जो चाहिए वह देने के लिए हमारे नेता तैयार नहीं हैं और जो वे देना चाहते हैं अब जनता को वह नहीं चाहिए ? महबूबा मुफ्ती को भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि अगर पूरा भारत अपने जवानों को कश्मीर घाटी में शांति के लिए भेजता है तो वह इसलिए नहीं कि उसे कश्मीरियों का दमन करना है बल्कि इसलिए कि कश्मीरी भी चैन से रह सकें वरना कश्मीर में इस्लाम के नाम पर खून ख़राब करने वाले देशों का क्या हाल है यह सब जानते हैं ?
   कश्मीर से भारत का अध्यात्मिक रिश्ता महबूबा को सुहाता है पर जब वहां से चुन चुन कर कश्मीरी पंडितों का सफाया किया जा रहा था तो आम कश्मीरी की ज़बान पर ताला लटका हुआ था ? क्यों शायद उन्हें यह लगता था कि ऐसा करने से पूरी घाटी में केवल मुसलमान ही रह जायेंगे और इस्लाम के नाम पर आगे कुछ भी करने में आसानी होगी. आज दुनिया में मुसलमान अगर कहीं सबसे ज़्यादा सुरक्षित हैं तो वह भारत है और भारत में भी कश्मीर में मुसलमान सबसे अच्छी स्थिति में रह रहे हैं सारी दुनिया में इस्लामी देशों में किस क़दर हिंसा होती रहती है यह किसी से छिपा नहीं है फिर भी अगर कश्मीर के मुसलमान यह कहते है कि वे भारतीय सेना के डर में जी रहे हैं तो इससे बड़ा झूठ और क्या हो सकता है ? जबकि कश्मीर में मुसलमान केवल भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों के कारण ही आराम से रह रहे हैं अगर वे अपने पाकिस्तानी आकाओं की बात सुनना छोड़ दें तो यह स्थान विश्व में सबसे सुरक्षित है. राजनीति करने के लिए और भी बहुत से मुद्दे हैं पर कश्मीर को इससे पूरी तरह से अलग ही रखना चाहिए.....  

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