मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

महत्वाकांक्षाओं की राजनीति

   खुद को दूसरों से अलग बताने में नहीं चूकने वाली भाजपा के लिए उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कई मुसीबतें साथ में लेकर आई है जहाँ पार्टी के निरंतर प्रयासों के बाद उसके स्टार मुख्यमंत्री मोदी बैठक से गायब रहे हैं वह निश्चित तौर पर यह संकेत तो देता ही है कि मोदी और आडवानी के बीच में भेद बढ़ता ही जा रहा है और आज के समय में भाजपा में कोई अन्य ऐसा नेता नहीं बचा है जो इन बड़ों पर दबाव बनाकर इस तरह के संदेशों को जनता के सामने जाने से रोक सके. इसके साथ ही येदुरप्पा और निशंक के भी ग़ायब होने से भाजपा की बेचैनी बढ़ती ही जा रही है क्योंकि इन सभी के बैठक में न आने से यह तो स्पष्ट होता जा रहा है कि भाजपा की अंदरूनी राजनीति में सब कुछ सामान्य तो नहीं चल रहा है ? जिस तरह से अटल के भाजपा के मुख्य परिदृश्य से गायब होने के बाद निरंतर कलह में फंसती जा रही है उससे यही लगता है कि उसे अटल की कमी बहुत खलने वाली है.
   तीन दिन पहले तक जो भाजपा कांग्रेस में प्रणब- चिदंबरम मसले पर मज़े ले रही थी और कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में ख़ुद को उलझाने का प्रयास कर रही थी आज उसे ख़ुद ही यह समझ नहीं आ रहा है कि मोदी के तथाकथित नवरात्रि उपवास से कैसे निपटा जाये ?  जिस तरह से मोदी ने अपने यहाँ तीन दिनों तक उपवास किया और इस पूरे प्रकरण में आडवानी या उनकी मण्डली को भाव नहीं दिए उससे ही नाराज़ होकर अब आडवानी ने बिहार से अपनी यात्रा शुरू करने का मन बनाया पिछले बीस वर्षों में यह पहली बार हुआ है कि आडवानी का गुजरात से कटाव दिखाई देने लगा है. आज भाजपा के सामने अनुशासन और उस पहचान का संकट खड़ा हो गया है जिसके दम पर वह पानी पी कर दूसरे राजनैतिक दलों को कोसती रहती है, यह सही है कि भाजपा ने ही मोदी को इतने अधिकार दिए जिससे वे पार्टी से ऊपर उठ गए हैं और आज के समय में भाजपा चाहकर या एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी गुजरात में मोदी के तंत्र से नहीं निकल सकती है क्योंकि गुजरात में भाजपा के स्थान पर आज मोदी की भाजपा हावी है और कर्णाटक या उत्तराखंड की तरह वहां से मोदी को हटाने के बारे में भाजपा सपने में भी नहीं सोच सकती है.
   यह सही है कि जब कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र में होता है तो उसे वहां के शीर्ष तक पहुँचने की चाह भी होती है जिससे नेताओं के अहम् आपस में टकराने लगते हैं आज जब भाजपा में मोदी को अगला पीएम बताये जाने की दिशा में काम चल रहा है तो खुद आडवानी गुट अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है क्योंकि अटल के बाद उसे यही लग रहा था कि भाजपा या राजग के सत्ता में आने पर आडवानी ही पीएम होंगें और अब अचानक मोदी गाँधी का रूप धरने की कोशिश करते नज़र आने लगे हैं तो आडवानी का जीवन भर का सपना ही टूटता दिखाई देने लगा है. अच्छा हो कि देश का मुख्य विपक्षी दल इस बात को आसानी से ही ले क्योंकि १९८४ इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी पीएम पद के सबसे प्रबल दावेदार थे और आज तक वे कांग्रेस के लिए सब कुछ करने के लिए तत्पर हैं तो उनकी तरह देश के सभी नेता क्यों नहीं बर्ताव करते हैं ? अपनी कमियों पर ध्यान देने के स्थान पर बात को दूसरों की तरफ़ घुमा देने से समाधान नहीं मिला करते और समस्याएं फिर से पलट वार करती हैं अब प्रबुद्ध लोगों की पार्टी को भी यह समझ नहीं आ रहा तो क्या किया जाये ?      
 


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