तमिलनाडु के कुडनकुलम में परमाणु ऊर्जा संयंत्र के विरोध में जो आन्दोलन चल रहा है उसमें पूर्व राष्ट्रपति और जाने माने वैज्ञानिक डा० अब्दुल कलाम ने हस्तक्षेप करते हुए कहा है कि वे स्थानीय नागरिकों की चिंताओं के बारे में वैज्ञानिकों से बाते करेंगें और १० दिनों में एक रिपोर्ट तैयार करके उसे वैज्ञानिकों को सौपेंगें जिसमें सारे पहलुओं का अध्ययन किया जायेगा. जापान में फुकुशिमा हादसे के बाद से यहाँ पर स्थानीय लोगों की चिंताएं बढ़ गयी हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उस तरह की कोई दुर्घटना यहाँ भी हो सकती है. यह सही है कि इस तरह की दुर्घटनाओं पर नियंत्रण रखने के लिए व्यापक सुरक्षा प्रबंध किये जाते हैं और उन पर पूरी तरह से सख्ती से ध्यान भी दिया जाता है पर किसी भी स्तर पर वैज्ञानिकों की समझ और आम नागरिकों की समझ में एक जैसा साम्य नहीं लाया जा सकता है जिस कारण से ही इस तरह की चिंताएं अपना सर उठाने लगती हैं इन्हें दबाने के स्थान अपर खली बैठक करके इन लोगों की शंकाओं का समाधान किया जाना चाहिए.
इस तरह के विवादों से भारत की ऊर्जा ज़रूरतों पर एक बार फिर से ब्रेक लग सकता है क्योंकि आने वाले समय में परमाणु ऊर्जा ही सबसे स्वच्छ ऊर्जा साबित होने वाली है और इस स्थिति में किसी भी तरह से इससे दूर नहीं रहा जा सकता है. वर्तमान में कोयले की खुदाई और ढुलाई में आई समस्या से पूरा उत्तर भारत बिजली की किल्लत से जूझ रहा है जो कि सभी को पता है पर केवल कोयले के भरोसे बिजली का उत्पादन करने की नीति से तो देश में आने वाले १० सालों में ही अँधेरा छा जायेगा और औद्योगिक गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ जायेंगीं ? इस समस्या के समाधान के लिए ही १२३ समझौते पर इतना ध्यान दिया गया था जिसका आने वाले २० वर्षों में देश के लिए योगदान सामने आने वाला है. फिलहाल सरकार और सभी दलों के नेताओं को यह बात समझनी ही होगी कि इस तरह के मालों में सुरक्षा की अनदेखी नहीं की जा सकती है और अन्य मसलों की तरह इसे निपटाया भी नहीं जा सकता है. इसे अलग स्तर अपर निपटा चाहिए और किसी भी तरह से इसके ख़िलाफ़ चलने वाले प्रदर्शनों में बल प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही एस एकं प्राथमिकता के आधार पर निपटाए जाने चहिये जिससे इनकी लगत भी न बढ़ने पाए.
देश को अपने संसाधनों से बिजली के भरपूर उत्पादन पर ध्यान देना ही होगा और साथ ही जिन स्थानों का इसके लिए चयन किया जाये वहां के निवासियों को पहले विश्वास में लिया जाना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि किसी भी स्तर पर कोई संयंत्र शुरू कर दिया जाये और बाद में उसका विरोध शुरू हो जाये तो उससे होने वाले लाभ को देश सही समय से नहीं उठा पायेगा जिससे विकास से सम्बंधित अन्य गतिविधियों पर भी असर पड़ने लगेगा. इस तरह के किसी भी प्रोजेक्ट के लिए एक सही कार्य योजना बनाये जाने की परंपरा विकसित किये जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि बिना उसके कोई भी कदम सही दिशा में नहीं जा सकते हैं. इन मामलों को राजनैतिक स्तर के स्थान पर वैज्ञानिक स्तर पर निपटा जाना चाहिए क्योंकि देश के वैज्ञानिकों का जनता बहुत सम्मान करती है और वे जो कुछ भी करते हैं उस पर जनता पूरा भरोसा भी करती पर इसमें जब राजनैतिक लोग अपनी टांग घुसा देते हैं तभी से मामला बिगड़ने लगता है. अगर संसाधनों के हिसाब से उपयुक्त जगह पर इन संयंत्रों का विरोध होने लगेगा तो आखिर इन्हें कहाँ पर लगाया जायेगा ? अच्छा ही है कि डा० कलाम ने इस मामले में हस्तक्षेप कर दिया है जिससे यह मामला अब आसानी से सुलझ सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस तरह के विवादों से भारत की ऊर्जा ज़रूरतों पर एक बार फिर से ब्रेक लग सकता है क्योंकि आने वाले समय में परमाणु ऊर्जा ही सबसे स्वच्छ ऊर्जा साबित होने वाली है और इस स्थिति में किसी भी तरह से इससे दूर नहीं रहा जा सकता है. वर्तमान में कोयले की खुदाई और ढुलाई में आई समस्या से पूरा उत्तर भारत बिजली की किल्लत से जूझ रहा है जो कि सभी को पता है पर केवल कोयले के भरोसे बिजली का उत्पादन करने की नीति से तो देश में आने वाले १० सालों में ही अँधेरा छा जायेगा और औद्योगिक गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ जायेंगीं ? इस समस्या के समाधान के लिए ही १२३ समझौते पर इतना ध्यान दिया गया था जिसका आने वाले २० वर्षों में देश के लिए योगदान सामने आने वाला है. फिलहाल सरकार और सभी दलों के नेताओं को यह बात समझनी ही होगी कि इस तरह के मालों में सुरक्षा की अनदेखी नहीं की जा सकती है और अन्य मसलों की तरह इसे निपटाया भी नहीं जा सकता है. इसे अलग स्तर अपर निपटा चाहिए और किसी भी तरह से इसके ख़िलाफ़ चलने वाले प्रदर्शनों में बल प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही एस एकं प्राथमिकता के आधार पर निपटाए जाने चहिये जिससे इनकी लगत भी न बढ़ने पाए.
देश को अपने संसाधनों से बिजली के भरपूर उत्पादन पर ध्यान देना ही होगा और साथ ही जिन स्थानों का इसके लिए चयन किया जाये वहां के निवासियों को पहले विश्वास में लिया जाना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि किसी भी स्तर पर कोई संयंत्र शुरू कर दिया जाये और बाद में उसका विरोध शुरू हो जाये तो उससे होने वाले लाभ को देश सही समय से नहीं उठा पायेगा जिससे विकास से सम्बंधित अन्य गतिविधियों पर भी असर पड़ने लगेगा. इस तरह के किसी भी प्रोजेक्ट के लिए एक सही कार्य योजना बनाये जाने की परंपरा विकसित किये जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि बिना उसके कोई भी कदम सही दिशा में नहीं जा सकते हैं. इन मामलों को राजनैतिक स्तर के स्थान पर वैज्ञानिक स्तर पर निपटा जाना चाहिए क्योंकि देश के वैज्ञानिकों का जनता बहुत सम्मान करती है और वे जो कुछ भी करते हैं उस पर जनता पूरा भरोसा भी करती पर इसमें जब राजनैतिक लोग अपनी टांग घुसा देते हैं तभी से मामला बिगड़ने लगता है. अगर संसाधनों के हिसाब से उपयुक्त जगह पर इन संयंत्रों का विरोध होने लगेगा तो आखिर इन्हें कहाँ पर लगाया जायेगा ? अच्छा ही है कि डा० कलाम ने इस मामले में हस्तक्षेप कर दिया है जिससे यह मामला अब आसानी से सुलझ सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
एक बार सबको यह विश्वास हो जाये कि यह विनाश में नहीं बदलेगा।
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